मन्ना डे
मन्ना डे
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पूरा नाम | प्रबोध चन्द्र डे |
प्रसिद्ध नाम | मन्ना डे |
जन्म | 1 मई, 1920 |
जन्म भूमि | कोलकाता |
पति/पत्नी | सुलोचना कुमारन |
संतान | शूरोमा, सुमिता (पुत्री) |
कर्म भूमि | मुंबई |
कर्म-क्षेत्र | पार्श्व गायक |
पुरस्कार-उपाधि | 1971 पद्मश्री पुरस्कार, 2005 पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्ध गीत | ये रात भीगी-भीगी (श्री 420), कस्मे वादे प्यार वफा सब (उपकार), लागा चुनरी में दाग (दिल ही तो है), ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय (आनंद), प्यार हुआ इकरार हुआ (श्री 420) आदि |
अन्य जानकारी | मन्ना डे ने अपने पांच दशक के कॅरियर में लगभग 3500 गीत गाए। |
बाहरी कड़ियाँ | मन्ना डे |
अद्यतन | 14:28, 27 अप्रॅल 2012 (IST)
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मन्ना डे (पूरा नाम- प्रबोध चन्द्र डे) (जन्म: 1 मई, 1920 कोलकाता) भारतीय सिनेमा जगत में हिन्दी एवं बांग्ला फिल्मों के सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक हैं। 1950 से 1970 के दशकों में इनकी प्रसिद्धि चरम पर थी। इनके गाए गीतों की संख्या 3400 से भी अधिक है। इन्हें 2007 के प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया है। भारत सरकार ने इन्हें सन 2005 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। इन्होंने अपने जीवन के 50 साल मुंबई में बिताये।
जीवन परिचय
प्रबोध चन्द्र डे उर्फ मन्ना डे का जन्म एक मई 1920 को कोलकाता में हुआ। मन्ना डे के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, लेकिन मन्ना डे का रुझान संगीत की ओर था। वह इसी क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाना चाहते थे। 'उस्ताद अब्दुल रहमान खान' और 'उस्ताद अमन अली खान' से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा। मन्ना डे ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा 'के सी डे' से हासिल की।
बचपन
मन्ना डे के बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है। उस्ताद बादल खान और मन्ना डे के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे। तभी बादल खान ने मन्ना डे की आवाज सुनी और उनके चाचा से पूछा, यह कौन गा रहा है। जब मन्ना डे को बुलाया गया तो उन्होंने कहा कि बस, ऐसे ही गा लेता हूं। लेकिन बादल खान ने मन्ना डे में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे।[1]
शिक्षा
मन्ना डे ने अपने बचपन की पढ़ाई एक छोटे से स्कूल 'इंदु बाबुर पाठशाला' से की। 'स्कॉटिश चर्च कॉलिजियेट स्कूल' व 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कोलकाता के 'विद्यासागर कॉलेज' से स्नातक की शिक्षा पूरी की।
अपने स्कॉटिश चर्च कॉलेज के दिनों में उनकी गायकी की प्रतिभा लोगों के सामने आयी। तब वे अपने साथ के विद्यार्थियों को गाकर सुनाया करते थे और उनका मनोरंजन किया करते थे। यही वो समय था जब उन्होंने तीन साल तक लगातार 'अंतर-महाविद्यालय गायन-प्रतियोगिताओं' में प्रथम स्थान पाया।
कुश्ती
अपने बचपन से ही मन्ना को कुश्ती और मुक्केबाजी का शौक रहा और उन्होंने इन दोनों खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उनका काफी हँसमुख छवि वाला व्यक्तित्व रहा है और अपने दोस्तों व साथियों से के साथ मजाक करते रहते हैं।
परिवार
संगीत ने ही मन्ना डे को अपनी जीवनसाथी 'सुलोचना कुमारन' से मिलवाया था। 18 दिसम्बर 1953 को मन्ना डे ने केरल की सुलोचना कुमारन से विवाह किया। इनकी दो बेटियाँ हुईं। सुरोमा का जन्म 19 अक्टूबर 1956 और सुमिता का 20 जून 1958 को हुआ। दोनों बेटियां सुरोमा और सुमिता गायन के क्षेत्र में नहीं आईं। एक बेटी अमरीका में बसी है।
आजकल
पांच दशकों तक मुंबई में रहने के बाद मन्ना डे ने बंगलौर को अपना घर बनाया। मन्ना डे आज बंगलौर के कल्याणनगर में रहते हैं। आज भी उनका कोलकाता में घर है और वे आज भी विश्व भर में संगीत के कार्यक्रम करते रहते हैं।
संगीत निर्देशन
पहले वे के.सी डे के साथ थे फिर बाद में सचिन देव बर्मन के सहायक बने। बाद में उन्होंने और भी कईं संगीत निर्देशकों के साथ काम किया और फिर अकेले ही संगीत निर्देशन करने लगे। कईं फिल्मों में संगीत निर्देशन का काम अकेले करते हुए भी मन्ना डे ने उस्ताद अमान अली और उस्ताद अब्दुल रहमान खान से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना जारी रखा।
गायन का प्रारम्भ
मन्ना डे 1940 के दशक में अपने चाचा के साथ संगीत के क्षेत्र में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आ गए। वर्ष 1943 में फिल्म 'तमन्ना' में बतौर पार्श्व गायक उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि इससे पहले वह फिल्म 'रामराज्य' में कोरस के रूप में गा चुके थे। दिलचस्प बात है कि यही एक एकमात्र फिल्म थी जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था। मन्ना डे की प्रतिभा को पहचानने वालों में संगीतकार शंकर जयकिशन का नाम खास तौर पर उल्लेखनीय है। इस जोडी़ ने मन्ना डे से अलग-अलग शैली में गीत गवाए। उन्होंने मन्ना डे से 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम...' जैसे रुमानी गीत और 'केतकी गुलाब जूही...' जैसे शास्त्रीय राग पर आधारित गीत भी गवाए। दिलचस्प बात है कि शुरुआत में मन्ना डे ने यह गीत गाने से मना कर दिया था।[1]
पहला गाना
मन्ना डे ने १९४३ की "तमन्ना" से पार्श्व गायन के क्षेत्र में कदम रखा। संगीत का निर्देशन किया था कॄष्णचंद्र डे ने और मन्ना के साथ थीं सुरैया। १९५० की "मशाल" में उन्होंने एकल गीत "ऊपर गगन विशाल" गाया जिसको संगीत की मधुर धुनों से सजाया था सचिन देव बर्मन ने। १९५२ में मन्ना डे ने बंगाली और मराठी फिल्म में गाना गाया। ये दोनों फिल्म एक ही नाम "अमर भूपाली" और एक ही कहानी पर आधारित थीं। इसके बाद उन्होंने पार्श्वगायन में अपने पैर जमा लिये।
गायन में विभिन्नता
मन्ना डे को अपने कॅरियर के शुरुआती दौर में अधिक प्रसिद्धी नहीं मिली। इसकी मुख्य वजह यह रही कि उनकी सधी हुई आवाज किसी गायक पर फिट नहीं बैठती थी। यही कारण है कि एक जमाने में वह हास्य अभिनेता महमूद और चरित्र अभिनेता प्राण के लिए गीत गाने को मजबूर थे। प्राण के लिए उन्होंने फिल्म 'उपकार' में 'कस्मे वादे प्यार वफा...' और ज़ंजीर में 'यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी...' जैसे गीत गाए। उसी दौर में उन्होंने फिल्म 'पडो़सन' में हास्य अभिनेता महमूद के लिए एक चतुर नार... गीत गाया तो उन्हें महमूद की आवाज समझा जाने लगा। आमतौर पर पहले माना जाता था कि मन्ना डे केवल शास्त्रीय गीत ही गा सकते हैं, लेकिन बाद में उन्होंने 'ऐ मेरे प्यारे वतन'..., 'ओ मेरी जोहरा जबीं'..., 'ये रात भीगी भीगी'..., 'ना तो कारवां की तलाश है'... और 'ए भाई जरा देख के चलो'... जैसे गीत गाकर आलोचकों का मुंह सदा के लिए बंद कर दिया।
आत्मकथा
वर्ष 2005 में 'आनंदा प्रकाशन' ने बंगाली उनकी आत्मकथा "जिबोनेर जलासोघोरे" प्रकाशित की। उनकी आत्मकथा को अंग्रेज़ी में पैंगुइन बुक्स ने "Memories Alive" के नाम से छापा तो हिन्दी में इसी प्रकाशन की ओर से "यादें जी उठी" के नाम से प्रकाशित की। मराठी संस्करण "जिबोनेर जलासाघोरे" साहित्य प्रसार केंद्र, पुणे द्वारा प्रकाशित किया गया।
वृतचित्र
मन्ना डे के जीवन पर आधारित "जिबोनेरे जलासोघोरे" नामक एक अंग्रेज़ी वृतचित्र 30 अप्रॅल 2008 को नंदन, कोलकाता में रिलीज़ हुआ। इसका निर्माण "मन्ना डे संगीत अकादमी द्वारा" किया गया। इसका निर्देशन किया डा. सारूपा सान्याल और विपणन का काम सम्भाला सा रे ग म (एच.एम.वी) ने। [2]
गाने
हिंदी के अलावा बांग्ला और मराठी गीत भी गाए हैं। मन्ना ने अंतिम फिल्मी गीत प्रहार फ़िल्म के लिए गाया था। मन्ना दा ने हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' को भी अपनी आवाज दी है जो काफी लोकप्रिय है। अब बढ़ती उम्र की वजह मन्ना डे उतने सक्रिय तो तो नहीं है, लेकिन उनकी आवाज का जादू बरक़रार है।
पुरस्कार
भारत सरकार ने मन्ना डे को संगीत के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान के लिए पद्म भूषण और पद्मश्री सम्मान से नवाजा। इसके अलावा 1969 में 'मेरे हज़ूर' और 1971 में बांग्ला फिल्म 'निशि पद्मा' के लिए 'सर्वश्रेष्ठ गायक' का राष्ट्रीय पुरस्कार भी उन्हें दिया गया। उन्हें मध्यप्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा और बांग्लादेश की सरकारों ने भी विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा है।[3]
प्रसिद्ध गीत
- ये रात भीगी-भीगी (श्री 420)
- कस्मे वादे प्यार वफा सब (उपकार)
- लागा चुनरी में दाग (दिल ही तो है)
- ज़िंदगी कैसी है पहली हाय (आनंद)
- प्यार हुआ इकरार हुआ (श्री 420)
- ऐ मेरी जोहरां जबी (वक़्त)
- ऐ मेरे प्यारे वतन (काबुलीवाला)
- पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई (मेरी सूरत तेरी आँखें)
- इक चतुर नार करके सिंगार (पड़ोसन)
- तू प्यार का सागर है (सीमा)। [4]
मन्ना डे की गायकी के मुरीद
कुछ लोगों को प्रतिभाशाली होने के बावजूद वो मान-सम्मान या श्रेय नहीं मिलता, जिसके कि वे हकदार होते हैं। हिंदी फिल्म संगीत में इस दृष्टि से देखा जाए तो मन्ना डे का नाम सबसे पहले आता है। मन्ना ने जिस दौर में गीत गाए, उस दौर में हर संगीतकार का कोई न कोई प्रिय गायक था, जो फिल्म के अधिकांश गीत उससे गवाता था। मन्ना डे की प्रतिभा के सभी कायल थे, लेकिन सहायक हीरो, कॉमेडियन, भिखारी, साधु पर कोई गीत फिल्माना हो तो मन्ना डे को याद किया जाता था। मन्ना डे ठहरे सीधे-सरल आदमी, जो गाना मिलता उसे गा देते। ये उनकी प्रतिभा का कमाल है कि उन गीतों को भी लोकप्रियता मिली। [4]
- प्रसिद्ध गीतकार प्रेम धवन ने मन्ना डे के बारे में कहा था कि 'मन्ना डे हर रेंज में गीत गाने में सक्षम है। जब वह ऊंचा सुर लगाते है तो ऐसा लगता है कि सारा आसमान उनके साथ गा रहा है, जब वो नीचा सुर लगाते है तो लगता है उसमें पाताल जितनी गहराई है और यदि वह मध्यम सुर लगाते है तो लगता है उनके साथ सारी धरती झूम रही है।' मन्ना डे केवल शब्दों को ही नही गाते थे, अपने गायन से वह शब्द के पीछे छिपे भाव को भी खूबसूरती से सामने लाते हैं। शायद यही कारण है कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिए मन्ना डे का चयन किया।
- प्रसिद्ध संगीतकार अनिल विश्वास ने एक बार कहा था कि 'मन्ना डे हर वह गीत गा सकते हैं जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाए हों। लेकिन इनमें कोई भी मन्ना डे के हर गीत को नहीं गा सकता।'
- आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी ने एक बार कहा था कि 'आप लोग मेरे गीत सुनते हैं, लेकिन यदि मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतों को ही सुनता हूं।'
- महेंद्र कपूर ने कहा 'हम सभी उन्हें आज भी मन्ना दा के नाम से ही पुकारते हैं। शास्त्रीय गायकी में उनका कोई सानी नहीं। निर्माता को जब भी शास्त्रीय गायक की जरूरत होती थी, वे सबसे पहले गीत मन्ना दा से ही गवाना चाहते थे। यह अलग बात है कि दादा बहुत ज्यादा गीत नहीं गाते थे। मुझे भी उनके साथ बहुत ज्यादा गीत गाने का अवसर नहीं मिला, लेकिन जो अभी गाया, सभी हिट हुए।'
सम्मान और पुरस्कार
मन्ना डे ने अपने पांच दशक के कॅरियर में लगभग 3500 गीत गाए। मन्ना डे को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1971 में पद्मश्री पुरस्कार और 2005 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मन्ना डे के संगीत के सुरीले सफर में एक नया अध्याय तब जुड़ गया जब फिल्मों में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 सबसे जुदा है मन्ना डे की गायकी का अंदाज (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) लाइव हिन्दुस्तान डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 26 अप्रॅल, 2011।
- ↑ यादें जी उठी....मन्ना डे के संग (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 22 अप्रॅल, 2012।
- ↑ रफी भी मुरीद थे मन्ना डे की गायिकी के (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 22 अप्रॅल, 2012।
- ↑ 4.0 4.1 मन्ना डे : तू प्यार का सागर है (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 26 अप्रॅल, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
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