पुरातत्वीय संग्रहालय, नागार्जुनकोंडा
पुरातत्वीय संग्रहालय, नागार्जुनकोंडा (अक्षांश 16° 31' उत्तर, देशांतर 79° 14' पूर्व) आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले के मचेर्ला मंडल में स्थित है। 24 किलोमीटर की दूरी पर मचेर्ला निकटतम रेलवे स्टेशन है। यह संग्रहालय नागार्जुनसागर बांध में स्थित एक द्वीप पर मौजूद है। द्वीप पर पहुँचने के लिए नागार्जुनसागर बांध के दक्षिण में विजयपुरी में एक जेटी स्थान है।
इतिहास
नागार्जुनकोंडा का नाम बौद्ध विद्वान और पंडित आचार्य नागार्जुन बौद्धाचार्य के नाम पर पड़ा था जिसका अर्थ नागार्जुन पर्वत होता है। यह एक महान धार्मिक केन्द्र था जहाँ से ब्राह्मण और बौद्ध मतों का प्रचार किया जाता था और उनसे जुड़ी कला और वास्तुकला के प्रारंभिक चरणों को स्वरूप प्रदान किया गया। यह एक विस्तृत बौद्ध स्थापना थी जहाँ बौद्धमत के अनेक सम्प्रदायों का पोषण हुआ जो एक पूर्ण विकसित महायान सम्प्रदाय के रूप में परिणत हुए। वर्तमान में यह भारत में मौजूद एक अद्भुत द्वीप है जिसमें एक पुरातत्वीय संग्रहालय और पूर्व ऐतिहासिक काल से परवर्ती मध्यकालों के नागार्जुनकोंडा घाटी के स्थानांतरित और पुनर्निर्मित स्मारक मौजूद हैं जिनके नागार्जुनसागर परियोजना के अन्तर्गत डूबने का खतरा पैदा हो गया था।
विशेषताएँ
- खुदाइयों से प्राप्त पुरावस्तुओं के संग्रह, परिरक्षण और प्रदर्शन के लिए स्थापित यह संग्रहालय संरचना में एक बौद्ध विहार जैसी दिखने वाली एक विशाल इमारत में स्थित है।
- यह लगभग 2.5 किलोमीटर पूर्व-पश्चिम और 1 किलोमीटर उत्तर-दक्षिण में फैले हुए द्वीप के उत्तरी भाग में एक मध्यकालीन किलेबन्दी के अवशेषों के बीच स्थित है।
- यह संग्रहालय उन सभी सांस्कृतिक अवधियों की बहुमूल्य कलावस्तुएं प्रस्तुत करता है जिनसे यह घाटी और क्षेत्र गुजरे हैं।
- पाँच दीर्घाओं में प्रदर्शित वस्तुओं में चूना पत्थर के पटिये, मूर्तियाँ, अभिलेख तथा अन्य पुरावस्तुएं शामिल हैं जो सभी तीसरी-चौथी शताब्दी ई. से सम्बन्धित हैं और प्रदर्शित वस्तुओं में अधिकांश संख्या इनकी ही है।
- मुख्य दीर्घा सर्वव्यापक शान्त बुद्ध, सुन्दर मूर्तिकला वाले अयाका पटियों, अयाका चबूतरों की आड़ी कड़ियों, जिनमें महात्मा बुद्ध के जीवन के सारे प्रकरणों को बहुत सुन्दरता से दर्शाया गया है और प्रसन्न मिथुनों और वैभवशाली वृक्ष परियों इत्यादि के साथ और प्रभावी बनाया गया है इत्यादि स्वरूप के इक्ष्वाकु कला और वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियों के लिए प्रसिद्ध है।
- पूरी दीवारों पर लगी प्रदर्शन मंजूषाओं वाले एक पृथक खण्ड में उत्खनित कलावस्तुओं और पर्याप्त दृष्टान्तों के माध्यम से पाषाण-युग से महा-पाषाण युग तक इस क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास को उजागर किया गया है। टेराकोटा और गचकारी की मूर्तिकाओं, मुद्राओं और सिक्कों जैसी प्रतिनिधि लघु पुरावस्तुएं भी प्रदर्शित की गई हैं।
- एक विशाल कक्ष में स्थित दो दीर्घाओं में इक्ष्वाकु और परवर्ती अविधयों के विभिन्न किस्म के मृदभांड के अलावा सज्जित ड्रम पटिये, गुम्बज के पटिये, कारनिस कड़ियां तथा स्तूप की अन्य पुरातत्वीय यूनिटें और कुछ ब्राह्मण मत की मूर्तियां प्रदर्शित हैं।
- उत्कीर्णित पुरातत्वीय मूर्तियों, जो कभी विभिन्न स्तूपों की शोभा बढ़ाती थी, महात्मा के जन्म से लेकर उनके महा-प्रस्थान, साधना, ज्ञानोदय और उपदेश से होते हुए महापरिनिर्वाण तक उनके सम्पूर्ण जीवन को दर्शाती हैं।
- अपने जीवनकाल में इनके द्वारा किए गए प्रसिद्ध चमत्कार तथा जातकों के रूप में प्रसिद्ध उनके पूर्व जन्मों की कथाएं यथा ससा-जातक, चंपेय-जातक, सिबि-जातक, मंधथू-जातक, इत्यादि भी उत्कीर्णित विषय है।
- यहां प्रदर्शित आकर्षक ब्राह्मणमत की मूर्तियों में कार्तिकेय और उनकी पत्नी देवसेना, शिवलिंग, सती का एक अद्भुत निरूपण और विधाधरों की कुछ मूर्तियां शामिल हैं।
- खेलते हुए बच्चों की प्रसन्न मुद्राओं, युद्ध के दृश्यों तथा अन्य धर्म-निरपेक्ष भावों को दर्शाने वाले उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित मंडप स्तंभ, वैभवशाली भंगिमाओं में हाथियों को दर्शाने वाले गोलाकार फलक तथा एक पटिये पर हस्तलेखा का एक उदाहरण भी प्रदर्शित किया गया है।
- खुदाइयों से प्राप्त (सिरेमिक) चीनी मिट्टी का रंगपटल भी प्रदर्शित वस्तुओं के एक अन्य पहलू का निर्माण करता है। नदियों की चिकनी मिट्टी और केओलिन से बनाई गई उपयोगी घरेलू वस्तुएं चाक पर निर्मित, पालिश की हुई, विशेष आकारों वाली ओर अभिलिखित है और ये कुम्हारों की तकनीकी और कला उत्कृष्टता को दर्शाती हैं।
- तृतीय दीर्घा में धर्म-निरपेक्ष और धार्मिक भवनों के नमूना मॉडलों के साथ-साथ निमज्जित घाटी के मॉडल भी मौजूद हैं। कक्ष के तल पर घाटी और 120 खुदाई स्थलों पर मौजूद इसके स्थलीय परिवेश का मॉडल मौजूद है।
- चारों ओर दीवारों पर लगी प्रदर्शन मंजूषाओं में महत्वपूर्ण खुदाई स्थलों और अवशेषों के मॉडल स्थित हैं। इनमें नव-पाषाण और महा-पाषाण कब्रिस्तान; महास्तूप समेत विभिन्न संरचनाओं वाले स्तूप, महिषासक बहुश्रुतीय और कुमार नन्दी-विहार जैसे विहार; सर्वदेव, कार्तिकेय, पुष्पभद्रस्वामी, अष्टभुज स्वामी इत्यादि को समर्पित ब्राह्मण मन्दिर और रंगमंच (स्टेडियम), स्नान-घाट इत्यादि जैसी धर्म निरपेक्ष संरचनाएं शामिल हैं।
- एक दीर्घा में पुरालेखों, सुसज्जित पुरातत्वीय अवशेषों और मध्यकालीन मूर्तियों के चयनित नमूने प्रदर्शित हैं। स्तंभों पर अभिलेख लिखे हैं जो संरचनात्मक परिसरों, मूर्तियों, पीठिकाओं, स्मारक स्तंभों और टूटे हुए पटियों के हिस्से हैं। अधिकांशत:, इनकी लिपि 3-4 शताब्दी ईसवी की अलंकृत ब्राह्मी लिपि है। इनमें से अधिकांशत: प्राकृत भाषा में है और कुछ संस्कृत में लिखे गए हैं।
- प्रदर्शित वस्तुओं में विजय शतकर्णी के अभिलेख, राजा वशिष्ठीपुत्र चाम्तामुला को दर्शाने वाला स्मारक स्तंभ, चाम्ता श्री का अयाका स्तंभ, बुद्धपद अभिलेख और भगवान पुष्पभद्रस्वामी का आह्वान करने वाला स्तंभ पर लिखा संस्कृत अभिलेख उल्लेखनीय है।
- उड़ीसा के राजा पुरुषोत्तम द्वारा जारी एक तेलुगु अभिलेख भी प्रदर्शित किया गया है। प्रदर्शित मध्य-कालीन मूर्तियों में 14-17वीं शताब्दी ई. की अलंकृत योग नरसिंह, महिषमर्दिनी, दुर्गा, शिव और योगमुद्रा में बैठे एक जैन तीर्थंकर की मूर्तियां शामिल हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Error on call to Template:cite web: Parameters url and title must be specified (हिन्दी) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण। अभिगमन तिथि: 7 फ़रवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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