राजकुमारी दुबे की फ़िल्मी शुरुआत
राजकुमारी दुबे की फ़िल्मी शुरुआत
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पूरा नाम | राजकुमारी दुबे |
प्रसिद्ध नाम | राजकुमारी |
जन्म | 1924 |
जन्म भूमि | बनारस, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 18 मार्च, 2000 |
पति/पत्नी | बी.के. दुबे |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | गायन |
मुख्य फ़िल्में | 'बॉम्बे मेल', 'गोरख आया', 'नौकर', 'नील कमल', 'महल', 'बावरे नैन', 'हलचल', 'आसमान', 'पाकीजा' आदि। |
प्रसिद्धि | पार्श्वगायिका |
नागरिकता | भारतीय |
गायन काल | 1934-1977 |
अन्य जानकारी | 1941 में राजकुमारी दुबे का कॅरियर ऊँचे परवान चढ़ने लगा था। इस साल उन्होंने पन्नालाल घोष, सरस्वती देवी, रामचन्द्र पाल, एस. एन. त्रिपाठी, ज्ञानदत्त, ख़ान मस्ताना, माधुलाल मास्टर, रफ़ीक गज़नवी एवं खेमचन्द प्रकाश जैसे दिग्गजों के लिए गीत गाए। |
कहते हैं कि एक बार राजकुमारी सार्वजनिक मंच पर गाना गा रही थीं। वहीं उनकी मुलाकात फ़िल्म निर्माता प्रकाश भट्ट से हो गई। उन्होंने राजकुमारी को 'प्रकाश पिक्चर' से जुड़ने का न्यौता दे दिया। इस बैनर के तहत बनने वाली गुजराती फ़िल्म 'संसार लीला' में कई गाने पेश किए। इस फ़िल्म को हिन्दी में भी 'संसार' नाम से फ़िल्माया गया। इसमें राजकुमारी जी ने गीत पेश किया 'आंख गुलाबी जैसे मद की प्यालियां, जागी हुई आंखों में है शरम की लालियां।' इसके बाद तो उनकी प्रतिभा बॉलीवुड में सिर चढ़कर बोलने लगी।
वर्ष 1933 में फ़िल्म 'आंख का तारा', 'भक्त और भगवान', 1934 में 'लाल चिट्ठी', 'मुंबई की रानी' और 'शमशरे अलम' में गीत पेश कर राजकुमारी दुबे ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। इस दौरान उनके कई कालजयी गीतों ने लोगों को गुनगुनाने के लिए बाध्य कर दिया। जैसे 'चले जइयो बेदर्दा मैं रो पडूंगी, 'काली काली रतिया कैसे बिताऊं, बिरहा के सपने देख डर जाऊं।' इसके बाद 'नजरिया की मारी-मरी मोरी दइया' ने तो उन्हें बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इसी दौरान उन्होंने पंजाबी और बांग्ला में भी कई गीत पेश किए। इतना ही नहीं, उन्होंने मशहूर गायक मुकेश के साथ भी गीत गाए। 'मुझे सच सच बता दो कब मेरे दिल में समाए थे, जब तुम पहली बार देखकर मुस्कराए थे'। इसी दौरान वाराणसी निवासी बी.के. दुबे से राजकुमारी ने शादी कर ली।[1]
उस समय की शीर्ष गायिकाएँ मुख्यत: पंजाब, बंगाल एवं महाराष्ट्र मूल की थीं। इन सबसे अलग राजकुमारी उत्तर प्रदेश के बनारस से आईं थीं और अपने साथ उसके पान की मिठास अपने कंठ में संग लाईं थीं। उन्हें तीस के आखिरी भाग में राजकुमारी 'बनारस वाली' या राजकुमारी 'बनारस' के नाम से भी जाना जाता था। कुछ साल ऐसे पृथक् तरीके से बुलाने का कारण था कि उस समय एक अन्य गायिका भी थीं- राजकुमारी 'कलकत्ते वाली' जो ज़ाहिर है कलकत्ते से थीं और उनका असली नाम पुलोबाई था। फिल्म 'गोरख आया' (1938) में जैसे दोनों ने ही गीत गाए थे। उसका एक रेकॉर्ड तो ऐसा भी था, जिसमें दोनों के गीत थे।
अभिनय
अधिकतर सुनने वालों को याद नहीं होगा कि पार्श्वगायन से पहले राजकुमारी अभिनय से भी जुड़ी हुईं थीं। वे जब तीस के दशक में बम्बई आईं तो वे एक ग्रामोफोन कम्पनी में आईं। वहाँ उन्होंने उस समय रेकॉर्डों में गाने भी गाए और कुछ ड्रामों में भी बोला जो आज उपलब्द्ध नहीं हैं। उन्हें नाटक में काम करने का शौक हुआ और वे स्टेज पर आ गईं। वह अच्छा गा लेती थीं, इसलिए उन्हें बुलाया गया कि आप रोल भी कीजिए और गाने भी गाईए। इस तरह से उन्होंने पहली बार अभिनय किया। अभिनय एवं गायन के लिए वह मश्हूर होने लगीं। एक बार 'प्रकाश पिक्चर्स' के विजय भट्ट उनका नाटक देखने आए। उन्हें राजकुमारी का अभिनय एवं गायन बहुत पसंद आया। उनका स्टूडियो तब एक नई फिल्म की तैयारी कर रहा था और उसमें काम करने के लिए उन्होंने राजकुमारी को न्यौता दिया। उस ज़माने में स्टेज के ऊपर माईक नहीं होता था। याद से हर डायलौग ज़ोर-ज़ोर से चीख-चीख कर बोलना पड़ता था और गाने भी इसी प्रकार से चिल्ला-चिल्ला कर गाने पड़ते थे। उनकी अदायगी के चाहने वालों के चलते कई बार 'वन्स मोर' की गुहार भी हो जाती और कभी-कभी उन्हें एक गीत 8-9 बार गाना पड़ता था। उनके शुभचिन्तकों ने उन्हें बोला अपनी आवाज़ स्टेज पर खराब करना छोड़ो और भट्ट साहब का निवेदन स्वीकार कर लो। फिल्मों का उन्हें शौक भी था और यह सब सोचकर उन्होंने हाँ कर दी। कई लोग नहीं जानते होंगे कि राजकुमारी दुबे 1932 में कमला मूवीटोन, लाहौर की फिल्म 'राधेश्याम' में बालिका का किरदार पहले ही निभा चुकी थीं। हीरोइन बनने के लिए राजकुमारी दुबे अब तैयार थीं।[1]
यह प्रस्तावित फिल्म 'प्रकाश पिक्चर्स' हिन्दी एवं गुजराती दोनों में बना रहा था और वर्ष था 1934। गुजराती संस्करण का नाम था 'संसारलीला'। हिन्दी संस्करण को 'नई दुनिया' नाम दिया गया था, जिसका एक नाम 'Sacred Scandal' भी था। नायिका मालती का किरदार राजकुमारी ने ही निभाया। इस फिल्म में प्रकाश की अभिनेत्री गुलाब के अलावा मुख्य भूमिका में काशीनाथ एवं ऊमाकान्त देसाई थे। इस फिल्म के संगीतकार ने खुद इस फिल्म में अभिनय भी किया था और वे उस समय की चर्चित हस्ती थे। ये संगीतकार थे लल्लूभाई नायक, जिनके साथ ही राजकुमारी को अपने प्रारम्भिक दौर में अधिकांश गीत गाने थे। 'नई दुनिया' में अपने ऊपर फिल्माए ‘प्रीत की रीत सिखा जा बलम’ और ‘प्रीतम तुम घन बन जाओ’ जैसे गीत राजकुमारी दुबे ने गाए थे। लल्लूभाई नायक प्रकाश के मूख्य संगीतकार थे।[2] अभिनेता जयन्त भी उस समय प्रभात में थे, जिनके साथ राजकुमारी ने अभिनय किया और संगीतकार तो लल्लूभाई ही थे। ये फिल्में थीं- 1935 में आई 'बम्बई की सेठानी', 'बाम्बे मेल', 'लाल चिट्ठी', 'शमशीर-ए-अरब' और 1936 की 'स्नेहलता'।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 गायिकाओं की रानी : राजकुमारी (हिन्दी) anmolfankaar.com। अभिगमन तिथि: 08 जुलाई, 2017।
- ↑ हालांकि बाद में उनकी जगह शंकरराव व्यास और फिर नौशाद ने ले ली थी। सालों बाद वे गुमनाम हो गए और फिल्म 'पटरानी' में शंकर-जयकिशन की सहायता के लिए बुलाए गए थे।
बाहरी कड़ियाँ
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