सतीश चंद्र दासगुप्ता

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सतीश चंद्र दासगुप्ता
सतीश चंद्र दासगुप्ता
सतीश चंद्र दासगुप्ता
पूरा नाम सतीश चंद्र दासगुप्ता
जन्म 14 जून, 1880
जन्म भूमि रंगपुर, कूरिग्राम गांव, बंगाल
मृत्यु 24 दिसम्बर, 1979
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र रसायनशास्त्र
शिक्षा स्नातकोत्तर, रसायन विज्ञान
विद्यालय प्रेसीडेन्सी कॉलेज, कोलकाता
प्रसिद्धि रसायन वैज्ञानिक
विशेष योगदान 20वीं शताब्दी के पूर्व में महंगा एवं बहुत सारा माल विदेश से आयात किया जाता था। सतीश चंद्र दासगुप्ता ने ऐसी कई तकनीक ढूंढ़ निकालीं, जिससे उस माल का उत्पादन भारत में ही होने लगे।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सतीश चंद्र दासगुप्ता ने 86 वर्ष की उम्र में, गोगरा गांव में कृषि रिसर्च फॉर्म की स्थापना भी की। जिसका उद्देश्य पानी जो मिट्टी को बहाकर ले जाता था, उसको रोकना था।

सतीश चंद्र दासगुप्ता (अंग्रेज़ी: Satish Chandra Dasgupta, जन्म- 14 जून, 1880; मृत्यु- 24 दिसम्बर, 1979) भारतीय राष्ट्रवादी, वैज्ञानिक और आविष्कारक थे। वह जितना सम्मान रसायन विज्ञान का करते थे, उतना ही सम्मान बढ़ई एवं लोहार के कामों का भी करते थे। विज्ञान के साथ-साथ वे व्यावहारिक जीवन में भी सफल व्यक्ति थे।

परिचय

सतीश चंद्र दासगुप्ता का जन्म 14 जून, 1880 को बंगाल स्थित कूरिग्राम गांव के रंगपुर में हुआ था। यह गांव अभी बांग्लादेश के इलाके में आता है। सतीश चंद्र बहुत गरीब परिवार में जन्मे थे। वह महात्मा गाँधी के सहयोगियों में सबसे अन्त तक जीवित रहने वाले व्यक्तियों में से एक थे।

शिक्षा

सतीश चंद्र दासगुप्ता ने अपना स्नातक अपने गांव से पूर्ण करने के बाद, रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर कोलकाता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज से 1906 में पूर्ण किया। उन्होंने यह डिग्री जाने-माने वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के मार्गदर्शन में पूर्ण की। डिग्री पूर्ण करने के बाद वह आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की लेबोरेट्री में ही काम करने लगे। सतीश चंद्र दासगुप्ता की लगन को देखकर आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय ने उन्हें अपने ही द्वारा स्थापित उद्योग में फैक्ट्री सुपरवाइजर का पद दे दिया। प्रफुल्ल चंद्र राय की फैक्ट्री का नाम ‘बंगाल केमिकल वर्क्स’ था। यहां पर श्री सतीश चंद्र दासगुप्ता ने 18 वर्ष तक अपनी सेवाएँ दीं। इन 18 वर्षों में उन्होंने कई आविष्कार एवं नवाचार किए।

महत्त्वपूर्ण योगदान

बीसवीं शताब्दी के पूर्व में महंगा एवं बहुत सारा माल विदेश से आयात किया जाता था। सतीश चंद्र दासगुप्ता ने ऐसी कई तकनीक ढूंढ़ निकालीं, जिससे उस माल का उत्पादन भारत में ही होने लगे। स्ट्राइसनाईन अल्कलॉइड्स का आविष्कार, चाय के खराब पत्तों से कैफीन निकाला, कई तरह की प्राकृतिक स्याही का आविष्कार, तेल जैसे कई आविष्कारों को सतीश चंद्र दासगुप्ता ने अंजाम दिया। इसके अलावा उन्होंने कई रासायनिक औजारों का भी आविष्कार किया, जिनमें से मुख्य था- फायर एक्सटिंग्विशर का आविष्कार। 20वीं शताब्दी के शुरुआती दशक में फायर एक्सटिंग्विशर बेहद महंगा आता था।

सतीश चंद्र दासगुप्ता ने एक फायर एक्सटिंग्विशर खरीद कर, उसको खोल कर, उसकी जांच की और अपनी बुद्धि लगाकर ऐसा फायर एक्सटिंग्विशर बनाया जो कि पहले वाले फायर एक्सटिंग्विशर की कीमत का एक चौथाई था, वह भी नफा मिलाकर। इस फायर एक्सटिंग्विशर को सन 1919 के समय मेसोपोटामिया में हो रहे पहले विश्व युद्ध में बेचा गया। इसकी बिक्री के दौरान फैक्ट्री को सब कुछ मिला करके ₹ 4,00,000 का फायदा हुआ। इसमें से आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय ने ₹ 2,00,000 सतीश चंद्र दास गुप्ता को दे दिए।

सतीश चंद्र दासगुप्ता और गाँधीजी

बात सन 1921 की है। सतीश चंद्र दासगुप्ता ने महात्मा गाँधी के बारे में सुना तो खूब था, पर उनके दर्शन उन्होंने पहली बार सन 1921 में किए। महात्मा गाँधी से बातचीत होने के पश्चात वे महात्मा गाँधी के भक्त हो चुके थे। वे चाहते थे कि अपनी पूरी कमाई महात्मा गाँधी के द्वारा किए जा रहे रचनात्मक कार्यों में दान दे दें। महात्मा गाँधी ऐसा नहीं चाह रहे थे। वे चाहते थे कि सतीश जी आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के साथ में रहकर वैज्ञानिक क्षेत्र में ही आगे बढ़ें। फैक्ट्री के कर्मचारियों ने भी सतीश चंद्र दासगुप्ता को रोकने का प्रयत्न किया। पर एक दिन सतीश जी फैक्ट्री को छोड़कर महात्मा गाँधी के साथ चल दिए। यह सन बात 1923 की है। महात्मा गाँधी ने सतीश जी से कहा कि यदि आप भारत की सेवा करना चाहते हैं तो आपको खादी की सेवा करनी चाहिए। यह बात सतीश जी को जंच गई।

सोडेपुर खादी प्रतिष्ठान की स्थापना

सतीश चंद्र दासगुप्ता ने कुछ ही दिनों के अंतराल में कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) की सरहद पर ‘सोडेपुर खादी प्रतिष्ठान’ की स्थापना की। महात्मा गाँधी यहां पर कई बार आते-जाते रहते थे। जैसे कि 1939 में कांग्रेस सभा जिसमें सुभाष चंद्र बोस ने भी भाग लिया था, सभा के बाद ही सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से बाहर जाने का इरादा कर लिया था। 9 अगस्त से 13 अगस्त, 1947 तक भी महात्मा गाँधी यहां पर रहे थे। सोडेपुर को गाँधीजी अपना दूसरा घर मानते थे। महात्मा गाँधी कहते थे कि, “मैं साबरमती को सोडेपुर से अलग रखना चाहूँगा। सोडेपुर में जबकि खादी की विद्या दी जाती है तो साबरमती में आध्यात्मिक विद्या दी जाती है। दोनों बराबर ही जरूरी हैं”।

गाँधीजी के अग्रिम सहयोगी

‘बंगाल दांडी यात्रा’, ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ ऐसे अनेकों आंदोलनों में हिस्सा लेकर सतीश चंद्र दासगुप्ता जेल भी गए।

आज़ादी के बाद

आज़ादी के बाद सतीश चंद्र दासगुप्ता को सरकार ने कई पद देने चाहे, जैसे कि कौंसिल ऑफ़ डेका। फिर सतीश चंद्र दासगुप्ता को ताम्रपत्र एवं वे स्वतंत्रता सेनानी जो जेल जाते हैं, उसकी पेंशन मिलनी थी। वह भी सरकार ने उन्हें देनी चाही; पर सतीश जी ने इसे भी अस्वीकार कर दिया। उनका कहना था कि जेल में बिताया हुआ वक्त, मेरे लिए खुशी का वक्त था। तब मैंने बहुत सारे रचनात्मक कामों को अंजाम दिया। फिर सतीश जी को पहली ‘केविक’ (kvic) की सदस्यता भी मिली। इसे उन्होंने स्वीकार किया, पर इस संघ ने ‘गाँधी चरखा’ को बदलकर ‘अंबर चरखा’ को लाने का उपक्रम किया तो सतीश चंद्र दासगुप्ता ने इस पद से भी इस्तीफा दे दिया।

सतीश चंद्र दासगुप्ता ने 86 वर्ष की उम्र में, गोगरा गांव में कृषि रिसर्च फॉर्म की स्थापना भी की। जिसका उद्देश्य पानी जो मिट्टी को बहाकर ले जाता था, उसको रोकना था। यदि इसमें में सफल हो जाते तो किसानों को बहुत फायदा मिलता। इसी दौरान उन्होंने गाय के गोबर की खाद बनाना व टंकी निर्माण के कार्यों को प्रोत्साहित किया, जिससे किसानों को बहुत मदद मिली।

मृत्यु

सतीश चंद दासगुप्ता जी की मृत्यु 24 दिसम्बर, 1989 को हुई। आज भी भारत ऐसे रसायनशास्त्री, स्वतंत्रता सेनानी, गाँधीवादी और खादीवादी को याद रखेगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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