व्यंजन (व्याकरण)

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  • स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण 'व्यंजन' कहलाते हैं।
  • परंपरागत रूप से व्यंजनों की संख्या 33 मानी जाती है।
  • द्विगुण व्यंजन ड़, ढ़ को जोड़ देने पर इनकी संख्या 35 हो जाती है।
हिन्दी के व्यंजन
ड़ ढ़

संयुक्त व्यंजन

  • दो व्यंजनों के योग से बने हुए व्यंजनों को 'संयुक्त-व्यंजन कहते हैं।
  • हिन्दी में निम्नलिखित तीन व्यंजन ऐसे हैं, जो दो-दो व्यंजनों के योग से बने हैं, किन्तु एक व्यंजन के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
  1. क् और ष के योग से बना हुआ- क्ष
  2. त् और र के योग से बना हुआ- त्र
  3. ज् और ञ के योग से बना हुआ- ज्ञ

व्यंजन के भेद

व्यंजन के 4 भेद होते हैं।

1.स्पर्श

वर्ग उच्चारण स्थान अघोष अल्पप्राण अघोष महाप्राण सघोष अल्पप्राण सघोष महाप्राण नासिक्य
कंठ्य गला ड़
मूर्धन्य तालु का मूर्धा भाग
दंत्य दाँत
ओष्ठ्य दोनों होठ

2.स्पर्श- संघर्षी

वर्ग उच्चारण स्थान अघोष अल्पप्राण अघोष महाप्राण सघोष अल्पप्राण सघोष महाप्राण नासिक्य
तालव्य तालु

3.अंत:स्थ व्यंजन

  • य- (सघोष अल्पप्राण, तालव्य, उच्चारण स्थान- तालु)
  • र- (सघोष अल्पप्राण, वर्त्स्य, उच्चारण स्थान- दंतमूल)
  • ल- (सघोष अल्पप्राण, वर्त्स्य, उच्चारण स्थान- दंतमूल)
  • व- (सघोष अल्पप्राण, दंतोष्ठ्य, उच्चारण स्थान- निचले होंठ और ऊपर के दाँत)

4.ऊष्म (संघर्षी) व्यंजन

  • श- (अघोष, तालव्य, उच्चारण स्थान- तालु)
  • ष- (अघोष, मूर्धन्य, उच्चारण स्थान- तालु का मूर्धा भाग)
  • स- (अघोष, वर्त्स्य, उच्चारण स्थान- दंतमूल)
  • ह- (सघोष, स्वरयंत्रीय, उच्चारण स्थान- स्वरयंत्र)


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