वायु प्रदूषण

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वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसकी महत्त का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल के बिना कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है। मनुष्य दिन भर मे जो कुछ लेता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। ध्यातव्य है कि प्रतिदिन मनुष्य 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन मे वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइ ऑक्साइड पाया जाता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओज़ोन तथा जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसो की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमे जरा-सा भी अन्तर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी वायु को प्रदूषित वायु तथा इस प्रकार के प्रदूषण को वायु प्रदूषण कहते हैं।

दूसरे शब्दों में, प्राकृतिक तथा मानव जनित स्रोतो से उत्पन्न बाहरी तत्वों के वायु मिश्रण के कारण वायु असन्तुलित दशा को वायु प्रदूषण कहते हैं तथा जिन कारकों से वायु प्रदूषित होती है उन्हें वायु प्रदूषक कहते है। इस तरह असंतुलित वायु की गुणवत्ता मे हृास हो जाता है और यह जीव-जंतुओ और पादपों के लिए हानिकारक हो जाती है।

वायु प्रदूषण के स्रोत

वायु प्रदूषण के स्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है-

  1. प्राकृतिक स्रोत
  2. मानवीय स्रोत
प्राकृतिक स्रोत

प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न वायु को प्रदूषित करने वाले प्रदूषकों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. आंधी, तूफान के समय उड़ती धूल
  2. वनों में लगी आग से उत्पन्न धुआं एवं कार्बन डाई ऑक्साइड
  3. दलदल एवं अनूपो में अपघटित होने वाले पदार्थों से निकलने वाली मीथेन गैस
  4. बैक्टीरिया से मिर्मुक्त कार्बन डाई ऑक्साइड
  5. कवक से उत्पन्न जीवाणु एवं वायरस आदि
  6. फूलों के परागकण से निर्मुक्त कार्बन डाईऑक्साइड
  7. धूमकेतु, क्षुद्र ग्रह तथा उल्काओं आदि के पृथ्वी से टकराने के कारण उत्पन्न कास्मिक धूल
मानवीय स्रोत

मानव जनित प्रदूषक हैं-

  1. कार्बन डाई ऑक्साइड
  2. कार्बन मानो ऑक्साइड
  3. सल्फर के ऑक्साइड
  4. नाइट्रोजन के ऑक्साइड
  5. क्लोरीन
  6. सीसा
  7. अमोनिया
  8. कैडमियम
  9. बेंजीपाइस
  10. हाइड्रोकार्बन
  11. धूल

मानवीय कारणो से उत्पन्न वायु प्रदूषण को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • दहन प्रक्रिया द्वारा
  1. घरेलू कार्यों में दहन
  2. वाहनों में दहन
  3. ताप विद्युत ऊर्जा हेतु दहन
  • कृषि कार्यों द्वारा
  • औद्योगिक निर्माणों द्वारा
  • विलायकों के उपयोग द्वारा
  • आणविक ऊर्जा सम्बन्धी परियोजनाओं द्वारा
  • अन्य कारण।

दहन प्रक्रिया द्वारा

ऊर्जा आज के जीवन की महती आवश्यकता है। ऊर्जा के बिना वर्तमान के क्रिया कलाप सम्भव नहीं है। खाना पकाने से लेकर ईंट, सीमेंट आदि के निर्माण मे ऊर्जा की जरूरत होती है। वाहनों एवं मशीनों आदि के चालन में भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा विभिन्न प्रकार के ईंधनों के दहन से प्राप्त होती है। घरेलू कार्यों के लिए जो ऊर्जा प्रयोग की जाती है वह कोयले, लकड़ी, कुकिंग गैस, उपलों, मिट्टी के तेल आदि से प्राप्त होती है। इन ईंधनों के दहन से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड आदि गैसें उत्पन्न होतीं हैं तथा ईंधनों के अपूर्ण दहन से कई प्रकार के हाइड्रोकार्बन्स एवं साइक्लिक पाइरिन यौगिक उत्पन्न होते है। इस प्रकार के दहन से वायुमण्डल में दो प्रकार से प्रभाव पड़ता है। एक तो यह अनेक हानिकारक गैसें वायु में मिलकर उसे प्रदूषित करती हैं तथा दूसरी तरफ वायु में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा मे कमी आती है, जो कि जीवन के लिए खतरनाक है। देश की कुल ऊर्जा का आधा भाग केवल रसोई घरों में खर्च होता है तथा देश के कुल प्रदूषण का 123 भाग केवल रसोई घरों से उत्पन्न होता है।

वायु प्रदूषण के लिए वाहन भी कम उत्तरदायी नहीं हैं। बसों, कारा, ट्रकों, मोटर साइकिलों, स्कूटर, डीजल, रेलों आदि सभी में दहन के लिए पेट्रोल अथवा डीजल ईंधन के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। इनसे भारी मात्रा में दम घोंटने वाला काला धुआं निकलता है, जो वायु को प्रदूषित करता है। डीजल वाहनों से जो धुआं निकलता है उनमें हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड तथा सूक्ष्म कार्बनमयी कणिकाएं मौजूद रहती हैं। पेट्रोल चलित वाहनो के धुएं में कार्बन मोनो ऑक्साइड व लेड मौजूद होते हैं। लेड एक वायु प्रदूषक पदार्थ है। ज्ञातव्य है कि डीजल चालित वाहनों की अपेक्षा पेट्रोल चालित वाहनों से प्रदूषण अधिक होता है। एक अनुमान के अनुसार, एक मोटरगाड़ी एक मिनट में इतनी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन खर्च करती है जितनी कि 1135 व्यक्ति सांस लेने में खर्च करते हैं। डीजल एवं पेट्रोल चालित वाहनों में होने वाले दहन से नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड भी उत्पन्न होती है जो सूर्य के प्रकाश में हाइड्रोकार्बन से करके रासयनिक धूम कुहरे को जन्म देते है। यह रासायनिक धूम कोहरा मानव के लिए बहुत खतरनाक है। सन् 1952 में पांच दिन तक लन्दन शहर रासायनिक धूम कुहरे से घिरा रहा, जिससे 4000 लोग मौत के शिकार हो गये एवं करोड़ों लोग हृदय रोग तथा ब्रोंकाइटिस के शिकार हो गये थे।

दिल्ली विश्व का तीसरा और भारत का सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। इसकी गम्भीरता को देखते हुए उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ. ए. एस. आनन्द, न्यायमूर्ति श्री बी. एन. कृपाल और न्यायमूर्ति श्री ए. के. खरे की खण्डपीठ ने महेश चन्द्र मेहता की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 22 सितम्बर 1988 को दिल्ली सरकार को यह निर्देश दिया कि सरकार लास एंजिल्स की तर्ज पर दिल्ली में ऑक्साइड स्तर को नियंत्रित करे।

भारत मे वाहनों से प्रतिदिन 60 टन सूक्ष्म कण, 630 टन सल्फर डाइ ऑक्साइड, 270 टन नाइट्रोजन आक्साइड ताकि 2040 टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित होता है।

भारत के अधिकांश ताप विद्युत गृहों में ईंधन के रूप में कोयला प्रयुक्त किया जाता है जिसके जलने से कार्बन डाई आक्साइड, धुआं तथा कुछ अन्य गैसें उत्पन्न होती हैं। भारतीय कोयले में अन्य देशों के कोयले की तुलना में 25 से 40 प्रतिशत तक फ्लाई ऐश होता है और गंधक की मात्रा एक प्रतिशत कम होती है, जिसकी वजह से 200 मेगावाट का भारतीय बिजलीघर लगभग 50 टन सल्फर डाई ऑक्साइड तथा 50 टन से अधिक कालिख बाहर फेंकता है। कोयले को जलाने पर अपशिष्ट के रूप में जो राख उत्पन्न होती है, वह बाहर फेंक दी जाती है। यह राख हवा के माध्यम से उड़कर वायुमण्डल को प्रदूषित करती है।

कृषि कार्यों द्वारा वायु प्रदूषण

कृषि कार्यों मे कीटनाशी एवं जीवाणुनाशी दवा का उपयोग दिनो दिन बढ़ता जा रहा है। तीसरे विश्व में भारत सर्वाधिक पेस्टीसाइड उत्पादक देश है। एक अनुमान के अनुसार- 1993 में देश में लगभग 84045 टन कीटनाशक दवाओं का उपयाग किया गया था। जब ये कीटनाशक दवाएं छिड़की जाती हैं तो ये उड़कर वायु में मिल जाती हैं और वायु प्रदूषणा का कारण बनती हैं। कभी-कभी इनका छिड़काव वायुयानों द्वारा भी किया जाता है।

औद्योगिक निर्माणों द्वारा

कल कारखानों से धुआं, गैसें तथा कुछ कण युक्त पदार्थ निकलते हैं, जो वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। वायु प्रदूषण कपड़ा बनाने के कारखानों, रासायनिक उद्योगों, तेल शोधक कारखानों, चीनी बनाने के कारखानों, धातुकर्म एवं गत्ता निर्माण करने वाले कारखानों से सर्वाधिक होता है। इन कारखानों से कार्बन डाईआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर, सीसा, बेरेलियम, जिंक, कैडमियम, पारा तथा धूल वायुमण्डल में पहुंचती है, जिससे वायु प्रदूषण होता है।

पूर्वी अमेरिका तथा उत्तर पश्चिमी यूरोप आदि के औद्योगिक क्षेत्रों के वायुमण्डल में इतनी अधिक मात्रा मे सल्फर डाई आक्साइड मौजूद है कि वर्षा के समय गिरने वाला जल जल न होकर सल्फ्यूरिक अम्ल होता है। इसे ही तेजाबी वर्षा कहते हैं।

वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी गम्भीर है कि विभिन्न देशों में इसके घातक परिणामो से बचाव के लिए चेतावनी दी जा रही है। संयुक्त राज्य अमरीका के लॉस एंजिल्स की स्थिति इतनी भयावह है कि वहां के स्कूलों के क्रीड़ा मैदानों में यह चेतावनी लिखी गयी है कि सावधान, अत्यधिक धुएं की स्थिति में व्यायाम न करें और न गहरी सांस लें।

भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक है। यहां के वायुमण्डल में सल्फर डाईआक्साइड एवं धूल कणों की मात्रा बहुत अधिक है। भारत के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई, चेन्नई, कानपुर आदि हैं। दिल्ली की वायु धूलकणों की सान्द्रता 700 माइक्रोग्राम/घन मीटर आंकी गई है, जो देश के अन्य महानगरों की तुलना में सबसे अधिक है। अहमदाबाद मे कपड़े की मिलें हैं जिनसे कपास धूल निकलती है। इसके अतिरिक्त यहां धुएं के बादल छाए रहते हैं। यहां के लाग दमा और तपेदिक बीमारियो से ज्यादा पीडि़त होते हैं। मुंबई की अधिकांश औद्योगिक इकाइयां चेम्बूर-ट्राम्बे क्षेत्र में स्थित हैं। यहां वायुमण्डल में धूल काणों की सान्द्रता 238 माइक्रोग्राम/घन सेमी है। कानपुर में चर्मशालाएं, कपड़ा मिलें, रसायन व दवा बनाने वाले कारखाने अधिक हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार शहर के स्वच्छ वायु क्षेत्रों की तुलना में वायु प्रदूषित क्षेत्रों में एक बच्चे की लम्बाई 4 सेमी तथा वजन 3 किग्रा कम पाया गया है।

विलायको के उपयोग द्वारा

फर्नीचरों पर की जाने वाली पाॅलिश और स्प्रे पेंट बनाने में जो विलायक इस्तेमाल किए जाते हैं उनमें अधिकतर उड़नशील हाइड्रोकार्बन होते है। जब फर्नीचर की पॉलिश अथवा स्प्रे पेंट किया जाता है तो ये हाइड्रोकार्बन उड़कर वायु में मिल जाते हैं।

आणविक ऊर्जा सम्बंधी परियोजनाओं द्वारा

परमाणु बमों एवं परमाणु विद्युत उत्पन्न करने जिन समस्थानिकों का उपयोग किया जाता है, उनकी प्रकृति अस्थाई होती है। विस्फोट के समय ये समस्थानिक वायुमण्डल में दूर-दूर तक फैल जाते हैं तथा बाद में पृथ्वी पर अवपात के रूप में गिरते हैं, जो अपना घातक प्रभाव छोड़ते है। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराये गये परमाणु बमों का प्रभाव वहां लम्बे समय तक रहा।

वायु प्रदूषण के अन्य कारण

जानवरों के शवों द्वारा

भारत में मृत जानवरों की खाल निकालने की परंपरा है। मृत जानवरों को लोग बस्तियों से उठाकर ले जाते है तथा खाल निकालकर शेष भाग को खुले में छोड़ देते है। जब ये शव सड़ते हैं तो अत्यधिक दुर्गन्ध निकलती है, जो वायु प्रदूषण का कारण बनती है।

शौचालयों की सफाई न होना

सार्वजनिक और व्यक्तिगत शौचालयो की समुचित सफाई न होने से क्षेत्र विशेष की वायु प्रदूषित होती है।

कूड़े कचरे का सड़ना एवं नालियों की सफाई न होना

लोग बहुध अपने घरों के बाहर सड़क पर अथवा नालियों में कूड़ा कचरा फेंक देते हैं जो दुर्गंध फैलाता है तथा नालियों के बजबजाने से भी दुर्गन्ध पैदा होती है जिससे विभिन्न बीमारियों के विषाणु पनपते हैं और मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है।

धूम्रपान, धूल, कूड़े कचरे का जलाया जाना आदि भी वायु प्रदूषण के कारण हैं।


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