चिश्ती सम्प्रदाय
चिश्ती सम्प्रदाय भारत का सबसे प्राचीन सिलसिला है। यह 'बा-शर सिलसिला' की एक शाखा था। भारत में यह सम्प्रदाय सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इनके आध्यात्मिक केन्द्र भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में फैले हुए हैं। ख़्वाजा अबू ईसहाक़ सामी चिश्ती (मृत्यु 940 ई.) या उनके शिष्य ख़्वाजा अबू अहमद अब्दाल चिश्त (874-965 ई.) का नाम इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक के रूप में लिया जाता है। अफ़ग़ानिस्तान के 'चिश्त' नामक नगर में इस सम्प्रदाय की नींव रखी गई थी। यह नगर हेरात के निकट हरी-रोद के घाट पर स्थित है।
संत परंपरा
हज़रत अबू इसहाक़ सीरिया के रहने वाले थे। सद्गुरु की तलाश में वे बग़दाद पहुँचे और वहाँ वे ख़्वाजा मुमशाद दीनूरी के शिष्य बन गये। उनकी देख-रेख में वे साधना की पराकाष्ठा पर पहुँचे। इसके बाद 873 ई. में वे चिश्त वापस आ गए। 940 ई. में उनके स्वर्गवास के बाद उनके शिष्य ख़्वाजा अबू अहमद ने गुरु की दरगाह को सूफ़ी-साधना का महत्वपूर्ण केन्द्र बनाया और उसका विकास किया। बाद में ख़्वाजा अबू मुहम्मद, ख़्वाज़ा यूसुफ़, ख़्वाज़ा मौदूद चिश्ती ख़्वाजा अहमद, ख़्वाजा रुक्नउद्दीन, ख़्वाज़ा मुहम्मद संजानी और ख़्वाज़ा हाजी शरीफ़ प्रसिद्ध सूफ़ी संत हुए। किंतु इस परंपरा का अपनी मातृभूमि चिश्त में अधिक विकास नहीं हुआ और इन संतों के साथ ही यह आध्यात्मिक परंपरा चिश्त में ही समाप्त हो गई।
आध्यात्मिक केन्द्र
चिश्त की ख़ानक़ाह के सूफ़ी फ़क़ीरों ने रमते दरवेश बनकर चिश्त को सदा के लिए त्याग दिया। ख़्वाज़ा हाजी शरीफ़ के शिष्य ख़्वाजा उस्मान हारूनी ने ईरान के नीशापुर में अपना आध्यात्मिक केन्द्र स्थापित किया। चिश्तिया परंपरा के अधिकांश सूफ़ी ख़ानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते थे। कुछ ही दिनों के बाद यह जगह तुर्क क़बीलों के युद्ध और संघर्ष के कारण अशांत हो गई। ग़यासुद्दीन मुहम्म्मद के शासन काल (1163-1203) में यहाँ शांति लौटी। उसके भाई का नाम मुईज़उद्दीन साम था, जिसे मुहम्मद ग़ोरी के नाम से जाना जाता है। उसने भारत में संसबानी वंश के शासन की स्थापना की थी। उसकी राजधानी फ़ीरोज़कोह थी। हालाँकि यहाँ धर्म-चर्चा आदि होते थे, लेकिन चिश्ती सूफ़ियों को यह जगह रास नहीं आई। इसके फलस्वरूप ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेर आकर बस गए।
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