मृणाल सेन
मृणाल सेन
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पूरा नाम | मृणाल सेन |
जन्म | 14 मई, 1923 |
जन्म भूमि | फरीदपुर (बांग्लादेश) |
कर्म-क्षेत्र | फ़िल्म निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | नील आकाशेर नीचे, पदातिक, इंटरव्यू, जेनेसिस, भुवन शोम, अकालेर संधान, खंडहर, एक दिन अचानक |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मृणाल सेन ने सिनेमा पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित कीं, जिनमें शामिल हैं- ‘न्यूज ऑन सिनेमा’ (1977) तथा ‘सिनेमा, आधुनिकता’ (1992)। |
अद्यतन | 19:20, 17 फ़रवरी 2013 (IST)
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मृणाल सेन (अंग्रेज़ी:Mrinal Sen, जन्म: 14 मई 1923) भारतीय फ़िल्मों के प्रसिद्ध निर्माता व निर्देशक हैं। इनकी अधिकतर फ़िल्में बांग्ला भाषा में हैं। बंगाली, उड़िया, तेलुगु और हिंदी फिल्मों में समान रूप से सक्रिय रहे मृणाल सेन भारत में समानांतार सिनेमा आंदोलन के अग्रणी माने जाते हैं।
जीवन परिचय
अपने समय के सक्रिय वामपंथी रहे मृणाल सेन का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के फरीदपुर में 4 मई, 1923 को हुआ। कलकत्ता से भौतिकशास्त्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मेडिकल रिप्रेंजेंटेटिव, पत्रकारिता और साउंड रिकॉर्डिंग सरीखे कई काम किये। फिल्मों में जीवन के यथार्थ को रचने से जुड़े और पढने के शौकीन मृणाल सेन ने फिल्मों के बारे में गहराई से अध्ययन किया और सिनेमा पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित कीं, जिनमें शामिल हैं- ‘न्यूज ऑन सिनेमा’ (1977) तथा ‘सिनेमा, आधुनिकता’ (1992)।
फ़िल्मी सफर
मृणाल सेन ने फिल्मों में निर्देशन की शुरुआत 1956 में बंगाली फिल्म ‘रात भोरे’ से की। 1958 में उनकी दूसरी सफल फिल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ आई। इस महत्वाकांक्षी फिल्म में उन्होंने भारतीय स्वंतत्रता आंदोलन में चीनियों के जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष से की। 1960 की उनकी फिल्म ‘बाइशे श्रावण,’ जो कि 1943 में बंगाल में आये भयंकर अकाल पर आधारित थी और ‘आकाश कुसुम’ (1965) ने एक महान निर्देशक के रूप में मृणाल सेन की छवि को विस्तार दिया। मृणाल की अन्य सफल बंगाली फिल्में रहीं- ‘इंटरव्यू’ (1970), ‘कलकत्ता ‘71’ (1972) और ‘पदातिक’ (1973), जिन्हें ‘कलकत्ता ट्रायोलॉजी’ कहा जाता है। बंगाली फिल्मों की तरह ही मृणाल सेन हिंदी फिल्मों में भी समान रूप से सक्रिय दिखते हैं। इनकी पहली हिंदी फिल्म 1969 की कम बजट वाली फिल्म ‘भुवन शोम’ थी। फिल्म एक अडियल रईसजादे की पिछड़ी हुई ग्रामीण महिला द्वारा सुधार की हास्य-कथा है। साथ ही, यह फिल्म वर्ग-संघर्ष और सामाजिक बाधाओं की कहानी भी प्रस्तुत करती है। फिल्म की संकीर्णता से परे नये स्टाइल का दृश्य चयन और संपादन भारत में समानांतर सिनेमा के उद्भव पर गहरा प्रभाव छोड़ता है।[1]
प्रसिद्ध फिल्में
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सम्मान और पुरस्कार
मृणाल सेन को भारत सरकार द्वारा 1981 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त 2005 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी प्रदान किया। उनको 1998 से 2000 तक मानक संसद सदस्यता भी मिली। फिल्मों के सृजन संसार को आजीवन समर्पित मृणाल सेन ने कई सम्मान और पुरस्कार बटोरे। जिनमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल है जो उन्हें चार बार मिला। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी इन्हें कई पुरस्कार मिले। इनमें फिल्म ‘खारिज’ के लिए कान्स में ‘द प्रिक्स ड्यू ज्यूरी’ सम्मान शामिल है। 2004 में मृणाल सेन ने अपनी आत्मकथा 'आलवेज बिंग बोर्न' पूरा किया। 2008 में उन्हें ओसियन सिने फैन फेस्टिवल और इंटर नेसनल फिल्म फेस्टिवल द्वारा लाइफ टाइम अचिएवेमेंट सम्मान से सम्मानित किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- मृणाल सेन
- कदमों का रूक जाना जिंदगी नहीं: मृणाल सेन
- बुरी हालत में है मृणाल के फिल्मों की प्रिंट
- मृणाल सेन को फाल्के पुरस्कार
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