शकीला बानो का कॅरियर
शकीला बानो भारत की प्रसिद्ध महिला क़व्वाल थीं। क़व्वाली के क्षेत्र में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ने वाली और इस विधा को एक नई गरिमा देने वाली शख़्सियत थीं शकीला बानो भोपाली। एक ज़माना था, जब किसी महिला क़व्वाल की कल्पना ही दूर की बात थी। उस ज़माने में किसी महिला क़व्वाल का मंच पर आना पहले तो लोगों को हैरानी की बात लगी, लेकिन शकीला बानो ने अपने बेबाक अंदाज़ और दबंग व्यक्तित्व के ज़रिए अपनी एक अलग ही धाक जमाई।
कॅरियर
पचास के दशक में शकीला बानो प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार के आमंत्रण पर मुंबई आईं। क़व्वाली के शौक़ीनों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी आवाज़ का जादू दिया। सन 1957 में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें विशेष रूप से अपनी फ़िल्म 'जागीर' में अभिनय करने का अवसर दिया। इसके बाद उन्हें सह-अभिनेत्री, चरित्र अभिनेत्री की भूमिका निभाने के अनेक अवसर मिले। एचएमवी कंपनी ने 1971 में उनका पहला रिकॉर्ड बनाया और पूरे भारत में शकीला बानो अपने हुस्न और हुनर की बदौलत पहचानी जाने लगीं। उन्होंने 'सांझ की बेला', 'आलमआरा', 'फौलादी मुक्का', 'रांग नम्बर', 'टैक्सी ड्राइवर', 'परियों की शहजादी', 'गद्दार चोरों की बारात', 'सरहदी लुटेरा', 'आज और कल', 'डाकू मानसिंह', 'दस्तक', 'मुंबई का बाबू', 'जीनत' और 'सीआईडी' जैसी मशहूर फ़िल्मों के लिए अपनी आवाज़ दी थी।[1]
ख्याति
शकीला बानो की ख्याति भारत के अलावा दूसरे देशों में भी फैली। उन्होंने सन 1960 में पूर्वी अफ़्रीका में लगभग 44 कार्यक्रम प्रस्तुत किए। सन 1966 में उन्होंने इंग्लैण्ड के विभिन्न शहरों में 32 कार्यक्रम और कुवैत यात्रा के दौरान 12 कार्यक्रम पेश किए। 1978 में अमेरिका और कनाडा के कई शहरों में आठ कार्यक्रम पेश किए। वर्ष 1980 में उन्होंने पाकिस्तान का दौरा किया। वे पहली महिला क़व्वाल थीं, जो विदेशों में पसंद की गईं और उन्हें आदर-सम्मान मिला।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ क़व्वाली क्वीन नहीं रहीं (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 28 जून, 2017।
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