आर. के. स्टूडियो
आर. के. स्टूडियो (अंग्रेज़ी: R. K. Studio) की स्थापना सन 1948 में 'द शो मैन' कहे जाने वाले राज कपूर ने की थी। उन्होंने अपना प्रोड्क्शन हाऊस खोलने के साथ ही साथ आर. के. स्टूडियो भी खोला था। आर. के. स्टूडियो की पहली फ़िल्म 'आग' थी। इसके अलावा 'बरसात', 'आवारा', 'श्री 420', 'मेरा नाम जोकर', 'सत्यम शिवम सुंदरम' और 'आ अब लौट चलें' जैसी फ़िल्मों के निशां यहां बाकी हैं।
राज कपूर का निर्देशन और संपादन
भारतीय सिनेमा के इतिहास का सबसे बड़ा शो मैन, महान कलाकार और निर्माता-निर्देशक राज कपूर ने आर. के. फिल्म्स की स्थापना करके इस बैनर की पहली फ़िल्म 'आग' रिलीज़ की। राज कपूर स्वयं एक मंझे हुए अभिनेता थे, जिन्होंने फ़िल्म निर्देशन, निर्माण संबंधी संयोजन कौशल को अपने पिता पृथ्वीराज कपूर से ग्रहण किया था। उन्हें विरासत में नाट्यकला–कौशल पृथ्वीराज कपूर से प्राप्त हुआ था। पृथ्वी थियेटर में पिता के नेतृत्व में छोटे-छोटे कामों को करते, सीखते हुए वे एक महान कलाकार बने थे। अभिनय के साथ-साथ, निर्देशन और संपादन कला में भी वे पारंगत थे। इसीलिए उनके द्वारा निर्मित सारी फ़िल्मों का निर्देशन और संपादन वे स्वयं करते थे।[1]
यथार्थपूर्ण फ़िल्मों का निर्माण
राज कपूर के लिए फ़िल्म में गीत और संगीत का महत्व अत्यधिक हुआ करता था। विषय एवं कथा चयन में वे सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना को प्राथमिकता देते थे। सामान्य और निम्न वर्ग के सपनों को उन्होंने देश के नवनिर्माण की स्थितियों से जोड़कर यथार्थपूर्ण फ़िल्मों का निर्माण किया। उनकी प्रारम्भिक फ़िल्में अधिकतर निम्न वर्ग और निम्न मध्य वर्ग के भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों के प्रति सुधारवादी दृष्टि को प्रस्तुत करती हैं। इन फ़िल्मों में मानवीय संवेदनाएँ एवं स्त्री-पुरुष संबंधों के आधुनिक स्वरूप को बदलते भारतीय परिदृश्य में कलात्मक ढंग से प्रदर्शित किया गया था।
प्रमुख फ़िल्में
राज कपूर द्वारा निर्मित 'आग', 'जागते रहो', 'बरसात', 'आवारा', 'श्री 420', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'आशिक', 'संगम', 'मेरा नाम जोकर', 'कल आज और कल', 'धरम करम' तक की फ़िल्मों में उन्होंने स्वयं नायक की भूमिका की थी।
फ़िल्म 'बॉबी' के साथ राज कपूर ने पुत्र ऋषि कपूर को अपने निर्देशन में बनी फ़िल्मों में नायक के रूप में हिंदी सिनेमा में प्रवेश दिलाया। 'हिना', 'राम तेरी गंगा मैली' और 'आ अब लौट चलें' फ़िल्में राज कपूर के बाद आर. के. बैनर की शेष फ़िल्में हैं, जिनमें उनके पुत्र रणधीर कपूर ने भी निर्देशन का दायित्व सँभाला। आर. के. स्टूडियो और निर्माण संस्था आज भी मौजूद है, किन्तु अब वह उस भव्यता और सक्रियता से दूर हो चुका है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी सिनेमा के विकास में फ़िल्म निर्माण संस्थाओं की भूमिका (हिंदी) sahityakunj.net। अभिगमन तिथि: 05 जुलाई, 2017।