कबीर पट्टन कारिवाँ -कबीर
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कबीर पट्टन कारिवाँ, पंच चोर दस द्वार। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! जीव (सौदागर) इस शरीर रूपी नगर को एक सुरक्षित स्थान समझकर सारा सांसारिक व्यवहार अर्थात् व्यापार टिका हुआ है। किन्तु उसे यह ज्ञात नहीं कि इस शरीर रूपी नगर में पाँच चोर (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) विद्यमान हैं और इसमें दस द्वार भी हैं। यह वैसा सुरक्षित और अभेद्य दुर्ग नहीं है, जैसा कि अज्ञानी जीवों ने समझ रखा है। इस दुर्ग पर यमराज का आक्रमण भी होगा और वह क्षण भर में इस गढ़ को ध्वस्त कर देगा। इसलिए हे जीवों! सृष्टा का स्मरण कर लो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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