झल बाँवे झल दाँहिनैं -कबीर
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झल बाँवे झल दाँहिनैं, झलहि मांहि व्यौंहार। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! संसार में जीव दाहिने-बाएँ, आगे-पीछे चारों ओर ज्वाला अर्थात त्रिताप (आधिभौतिक-आध्यात्मिक और आधिदैविक) से घिरा हुआ है और उसका सारा व्यवहार इसी ज्वाला के भीतर ही सम्पन्न होते हैं। ऐसी परिस्थिति में प्रभु ही उसकी रक्षा कर सकते हैं। उसमें स्वयं बचने की सामर्थ्य नहीं है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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