विनोद मेहरा का फ़िल्मी सफ़र
विनोद मेहरा का फ़िल्मी सफ़र
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पूरा नाम | विनोद मेहरा |
जन्म | 13 फरवरी, 1945 |
जन्म भूमि | अमृतसर |
मृत्यु | 30 अक्टूबर, 1990 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता |
मुख्य फ़िल्में | इंसानियत (1994), प्रतीक्षा (1993), पत्थर के फूल (1991), प्यार का कर्ज़ (1990) |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 06:18, 19 जुलाई 2017 (IST) |
विनोद मेहरा भारतीय सिनेमा के जाने माने अभिनेता थे। वर्ष 1958 फ़िल्म (रजनी) में एक बाल कलाकार के रूप में किशोर कुमार की भूमिका निभाने वाले चरित्र के छोटे संस्करण के रूप में मेहरा की शुरुआत हुई।
फ़िल्म करियर की शुरुआत
विनोद मेहरा के फ़िल्म करियर के मौसम को खुशनुमा बनाने में अभिनेत्री मौसमी चटर्जी का योगदान रहा है। शक्ति सामंत की फ़िल्म अनुराग (1972) में मौसमी चटर्जी और विनोद मेहरा पहली बार साथ आए। मौसमी ने एक दृष्टिहीन युवती का रोल संजीदगी के साथ किया था। विनोद एक आदर्शवादी नायक थे और अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध वह मौसमी से शादी करना चाहते थे। इसके बाद फ़िल्म उस पार (बसु चटर्जी), दो झूठ (जीतू ठाकुर) तथा स्वर्ग नरक (दसारी नारायण राव) में मौसमी के नायक बने। विनोद को स्वतंत्र रूप से नायक बनने और हीरोइन से रोमांस लड़ाने अथवा पेड़ों के इर्दगिर्द गाना गाने के अवसर ए ग्रेड के बजाय बी ग्रेड फ़िल्मों में ज्यादा मिले क्योंकि बड़े निर्देशकों की फ़िल्मों में उन्हें ज्यादातर दूसरी लीड का नायक माना गया।
विनोद मेहरा के करियर की यह ट्रेजेडी मानी जाएगी कि उन्हें बड़े बैनर्स से ज्यादा ऑफर नहीं आए। बी.आर. चोपड़ा की फ़िल्म द बर्निंग ट्रेन में वे सवार थे। लेकिन इस फ़िल्म में ट्रेन के मुसाफ़िरों की भीड़ के समान कलाकार थे। इसके बावजूद बर्निंग ट्रेन बॉक्स ऑफ़िस पर भी बुरी तरह जल गई थी। कोई सफल सितारा अपने इंटरव्यू में बर्निंग ट्रेन का जिक्र तक नहीं करना चाहता। लिहाजा इस फ़िल्म में विनोद मेहरा का होना नहीं जैसा था। उन्हें दक्षिण भारतीय फ़िल्म डायरेक्टर्स ने भी मौके दिए जो उन दिनों हिन्दी फ़िल्में लगातार निर्देशित कर रहे थे। ऐसे फ़िल्मकारों में कृष्णन पंजू (शानदार), आर.कृष्णमूर्ति (अमरदीप) एस. रामानाथन् (दो फूल तथा सबसे बड़ा रुपैया) तथा दसारी नारायण राव (स्वर्ग नरक) के नाम उल्लेखनीय हैं।
फ़िल्मों मे अभिनय
अस्सी के दशक में विनोद मेहरा को वैरायटी की फ़िल्में और वैरायटी भरे रोल मिले, लेकिन इन फ़िल्मों में जो मुख्य नायक-नायिका थे, वे सारी लोकप्रियता बटोर कर ले गए। मोहन सहगल निर्देशित फ़िल्म कर्तव्य की सफलता धर्मेन्द्र और रेखा के खाते में लिखी गई।
बेमिसाल (ऋषिकेश मुखर्जी) और खुद्दार (रवि टंडन) की कामयाबी का लाभ अमिताभ को मिला। लाल पत्थर में राजकुमार-हेमा मालिनी का स्क्रीन प्रजेंस विनोद पर भारी पड़ा। शोले के गब्बरसिंह उर्फ अमजद खान को जब अपार लोकप्रियता मिली, तो उन्होंने चोर पुलिस फ़िल्म बनाकर हाथ साफ किए। इसमें विनोद को उन्होंने मौका दिया मगर वह कोई काम नहीं आ सका।[1]
- फ़िल्म निर्देशन का आरम्भ
भारतीय सिनेमा में अपनी प्रतिभा को प्रतिष्ठा नहीं मिलने से विनोद अक्सर उदास रहा करते थे। जब अभिनेता के रूप में उनके पास ज्यादा कुछ करने को नहीं रहा तो वे निर्देशन के मैदान में उतरे। उन्होंने ऋषि कपूर-अनिल कपूर और श्रीदेवी को लेकर फ़िल्म 'गुरुदेव' शुरू की जो उस वक्त के कामयाब सितारे थे, लेकिन गुरुदेव को बनने में लंबा वक्त लगा। कहा जाता है कि इन सितारों ने डेट्स देने में विनोद को बेहद सताया और विनोद तनाव में रहने लगे। फ़िल्म के रिलीज होने के पूर्व ही वे चल बसे। 30 अक्टूबर 1990 को अचानक दिल का दौरा पड़ने के कारण उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के बाद सरफ़िरा (1992), इंसानियत (1994) टोनी जुनेजा) जैसी कुछ फ़िल्में रिलीज हुईं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विनोद मेहरा : हाशिए में कैद (हिंदी) बेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 20 जुलाई, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
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