जयकिशन
जयकिशन
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पूरा नाम | जयकिशन |
प्रसिद्ध नाम | शंकर जयकिशन |
जन्म | 4 नवम्बर, 1932 |
जन्म भूमि | गुजरात |
मृत्यु | 12 सितम्बर, 1971 (आयु 41 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | संगीतकार |
मुख्य रचनाएँ | 'मेरी आंखों में बस गया कोई रे', 'जिया बेकरार है छाई बहार है', 'मुझे किसी से प्यार हो गया', 'हवा में उडता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का', 'अब मेरा कौन सहारा', 'बरसात में हमसे मिले तुम सजन', 'तुमसे मिले हम', 'बिछड गई मैं घायल हिरनी' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | जयकिशन और शंकर की जोड़ी ने लगभग 170 से भी ज्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया। |
जयकिशन दयाभाई पंकल (अंग्रेज़ी: Jaikishan Dayabhai Pankal, जन्म: 4 नवम्बर, 1932; मृत्यु:- 12 सितम्बर 1971) भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इन्होंने अपनी जोड़ी संगीतकार शंकर सिंह रघुवंशी के साथ मिलकर बनाई और शंकर-जयकिशन नाम से प्रसिद्ध हुए।
जीवन परिचय
4 नवम्बर, 1932 को जन्मे जयकिशन मूलत: गुजरात के वलसाड़ ज़िले के बासंदा गाँव के लकड़ी का सामान बनाने वाले परिवार से थे। परिवार गरीब था और जयकिशन के बड़े भाई बलवंत भजन मंडली में गा-बजाकर कुछ योगदान करते थे। प्रारम्भिक संगीत की शिक्षा बाड़ीलाल और प्रेमशंकर नायक से मिली। बासंदा की ही प्रताप सिल्वर जुबली गायनशाला में उस वक़्त के मंदिरों के त्यौहार-संगीत और गुजराती आदिवासियों के नृत्य संगीत के तत्त्व उन्हीं दिनों जयकिशन के मन में घर कर गये जिसके कई रंग बाद में उनके संगीत में भी समय समय पर झलके। भाई बलवंत की नशे की लत से मौत के बाद जयकिशन अपनी बहन रुक्मिणी के पास वलसाड़ आ गये और अपने बहनोई दलपत के साथ कारखाने में कुछ दिन काम किया, फिर दलपत के साढू के पास बम्बई में ग्रांट रोड के पास रहते हुए एक कपड़े के कारखाने में काम करने के साथ साथ ऑपेरा हाउस के स्थित विनायक राव तांबे की संगीतशाला में हारमोनियम का रियाज़ जारी रखा।[1]
शंकर से मुलाक़ात
शंकर-जयकिशन की मुलाक़ात भी अजीब ढंग से हुई। ऑपेरा हाउस थियेटर के पास की व्यायामशाला में कसरत के लिए शंकर जाया करते थे और वहीं दत्ताराम से उनकी मुलाक़ात हुई। दत्ताराम शंकर से तबले और ढोलक की बारीकियाँ सीखने लगे, और एक दिन उन्हें फ़िल्मों में संगीत का काम दिलाने के लिए दादर में गुजराती फ़िल्मकार चंद्रवदन भट्ट के पास ले गये। वहीं जयकिशन भी फ़िल्मों में काम की तलाश में आये हुए थे। इंतज़ार के क्षणों में ही बातों में शंकर को पता चला कि जयकिशन हारमोनियम बजाते थे। उस समय सौभाग्य से पृथ्वी थियेटर में हारमोनियम मास्टर की जगह ख़ाली थी। शंकर ने प्रस्ताव रखा तो जयकिशन झट से मान गये और इस तरह पृथ्वी थियेटर्स के परचम तले शंकर और जयकिशन साथ-साथ काम करने लगे। 'पठान' में दोनों ने साथ-साथ अभिनय भी किया। काम के साथ-साथ दोस्ती भी प्रगाढ़ होती गयी। शंकर साथ-साथ हुस्नलाल भगतराम के लिए भी तबला बजाने का काम करते थे और दोनों भाइयों से भी संगीत की कई बारीकियाँ उन्होंने सीखीं।
फ़िल्म 'बरसात' के संगीतकार
पृथ्वी थियेटर्स में ही काम करते करते शंकर और जयकिशन राजकपूर के भी क़रीबी हो गए। हालाँकि राज कपूर की पहली फ़िल्म के संगीतकार थे पृथ्वी थियेटर्स के वरिष्ठ संगीतकार राम गाँगुली और शंकर जयकिशन उनके सहायक थे, लेकिन बरसात के लिए संगीत की रिकार्डिंग के शुरुआती दौर में जब राजकपूर को पता चला कि बरसात के लिए बनायी एक धुन राम गाँगुली उसी समय बन रही एक दूसरी फ़िल्म के लिए प्रयुक्त कर रहे हैं तो वे आपा खो बैठे। शंकर जयकिशन की प्रतिभा के तो वो कायल थे ही और जब उन्होंने शंकर के द्वारा उनकी लिखी कम्पोज़िशन 'अम्बुआ का पेड़ है, वही मुडेर है, मेरे बालमा, अब काहे की देर है' की बनायी धुन सुनी तो उन्होंने राम गाँगुली की जगह शंकर जयकिशन को ही बरसात का संगीत सौंप दिया। यही धुन बाद में 'जिया बेकरार है, छायी बहार है' के रूप में 'बरसात' में आयी। फ़िल्म बरसात में उनकी जोड़ी ने जिया बेकरार है और बरसात में हमसे मिले तुम सजन जैसा सुपरहिट संगीत दिया। फ़िल्म की कामयाबी के बाद शंकर जयकिशन बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये। इसे महज एक संयोग ही कहा जायेगा कि फ़िल्म बरसात से ही गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने भी अपने सिने कैरियर की शुरूआत की थी। फ़िल्म बरसात की सफलता के बाद शंकर जयकिशन राजकपूर के चहेते संगीतकार बन गये। इसके बाद राजकपूर की फ़िल्मों के लिये शंकर जयकिशन ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 शंकर जयकिशन के संगीत का आज भी नहीं है मुकाबला (हिंदी) लाइव हिंदुस्तान। अभिगमन तिथि: 24 जुलाई, 2013।