मद्रास विश्वविद्यालय

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मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई

मद्रास विश्वविद्यालय को दो सिद्धांतों ने विलक्षण बनाया है, वे हैं शोध, और सभी के लिए शिक्षा। चेन्नै के मरीना समुद्र तट पर अन्ना मेमोरियल और एमजीआर मेमोरियल के सामने स्थित विक्टोरिया काल की खूबसूरत इमारत में इस विश्वविद्यालय को अंग्रेजों ने 1857 में स्थापित किया था। 1912 में इस विश्वविद्यालय में केवल 17 विभाग, 30 अध्यापक और 69 शोध छात्र थे, लेकिन आज यह विशाल शिक्षा केन्द्र बन गया है, जहाँ 18 स्कूल, पोस्ट ग्रेजुएट पढ़ाई व शोध के 72 विभाग, 152 संबद्ध कालेज और 52 स्वीकृत शोध संस्थान हैं। यहाँ अध्यापक-छात्र अनुपात भी बहुत अच्छा है-1,75,000 छात्रों के लिए 4,000 से ज्यादा अध्यापक हैं। यहाँ 4,000 से ज्यादा छात्र शोध कर रहे हैं। इसलिए ताज़्ज़ुब की बात नहीं कि यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से वैज्ञानिक कार्यों के मामले में 35 सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय संस्थानों में यह 15वें नम्बर पर है। इसके कुलपति कर्नल डा. जी. तिरुवासगम कहते हैं, "शोध और विकास के क्षेत्र में विलक्षणता हमारी ताकत है, हम शोध पर ज़ोर देते हैं और यहाँ हर अध्यापक को कम-से-कम आठ शोध छात्रों को लेना होता है। हम कम क़ीमत पर कैंसर और पर्किसन जैसी भयानक बीमारियों के लिए दवाओं की खोज करके स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।"

परिचय

मद्रास विश्वविद्यालय ने 21 उद्योग और सेवा संगठनों के अलावा 85 विदेशी और 18 भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ सहमति पत्र पर दस्तख़त किए हैं। क़रीब 95 प्रायोजित शोध कार्यक्रम, जिन्हें विभिन्न एजेंसियों से आर्थिक सहायता मिल रही है, विभिन्न विभागों में चलाए जा रहे हैं।

मद्रास विश्विविद्यालय इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कैसे कोई विश्वविद्यालय सरकारी नियंत्रण में होते हुए भी शोध और विकास के मामले में क़माल कर सकता है। 152 वर्ष पुराने इस विश्वविद्यालय ने ज्ञान के क्षेत्र में लाज़वाब उपलब्धियाँ हासिल की हैं। यहाँ पर सभी के लिए, ख़ासकर ग्रामीण छात्रों के लिए शैक्षणिक विकास पर ज़ोर देने के लिए नियमित रूप से पाठ्यक्रम को संवर्धित किया जाता है। विश्वविद्यालय ने निःशुल्क शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया है। जिसके तहत् आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों के लिए विभिन्न कालेजों में 10 प्रतिशत अतिरिक्त सीटें आरक्षित होती हैं। विश्वविद्यालय की ओर से चलाए जा रहे रोजग़ारपरक पाठ्यक्रमों में छात्रों के बहुमुखी विकास पर ज़ोर दिया जाता है, ताकि उनके अन्दर की प्रतिभा को निख़ारा जा सके। यहाँ के छात्र भी ज्ञान की पिपासा रखते हैं। विश्वविद्यालय पाठ्यक्रमों से जुड़ी सामान्य परीक्षा प्रणाली पर ज़ोर नहीं देता है। इस विश्वविद्यालय की स्पष्ट धारणा है कि पढ़ाई से छात्र की स्वाभाविक प्रतिभा बढ़ती है और यहाँ से निकले विद्वानों, वैज्ञानिकों और नेताओं की लम्बी सूची पर नज़र डाले तो यह बात अकाट्य सत्य साबित होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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