मणिपुर की कृषि
कृषि मणिपुर राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। 70 प्रतिशत लोग कृषि पर ही निर्भर हैं। राज्य में कृषि कुल क्षेत्र 10.48 प्रतिशत ही है। कुल कृषि क्षेत्र का 13.24 प्रतिशत क्षेत्र, लगभग 30,980 हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र है। राज्य में अन्न उत्पादन मामूली सा कम है लेकिन तिलहन और दलहन का उत्पादन बहुत ही कम होता है।
- राज्य का कृषि विभाग 11वीं योजना में कृषि की बढ़त को बनाए रखने और उसके व्यवसायीकरण की योजना पर कार्य कर रहा है। इसके लिए राज्य कुछ बातों पर विशेष ध्यान दे रहा है-
- कुल कृषि क्षेत्र का प्रतिशत बढ़ाना
- 11वीं योजना में फ़सल का घनत्व बढाना
- फ़सल उत्पादन दर को बढाकर 11वीं योजना के अंत तक 39.85 प्रतिशत तक करना
- इस उद्देश्य के लिए निम्न बातों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है -
- गुणवत्ता पूर्ण बीजों का उत्पादन,
- सिंचाई के साधनों का विस्तार,
- कृषि फार्मों का आधुनिकीकरण,
- मृदा प्रबंधन,
- जैविक फार्मों का विकास,
- उच्चस्तरीय फ़सल उगाना,
- कटाई के बाद फ़सल का प्रबंधन,
- बाज़ार उपलब्ध कराना
- जैव प्रौद्योगिकी और कृषि प्रसंस्करण का विकास और अनुसंधान
- कृषि में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग,
- प्रौद्योगिक हस्तांतरण-
- हर ज़िले में किसान फील्ड स्कूल को स्थापित करना
- किसान फील्ड स्कूल के विस्तार का प्रबंधन करना।
वन
राज्य में कुल 17,219 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। इनमें 6,536 वर्ग किलोमीटर में घने वन है। इसके अतिरिक्त राज्य में 10,681 वर्ग किलोमीटर में खुले वन है, ये राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 77.12 प्रतिशत हैं। मणिपुर के उखरूल ज़िले के शिराय ग्राम में स्वर्गपुष्प कहे जाने वाले शिराय लिली (लिलियम मैक्लीनी) नामक फूल मिलते हैं, जो विश्व में किसी दूसरे स्थान पर नहीं पाये जाते। जूको घाटी में दुर्लभ प्रजाति के जूको लिली (लिलियम चित्रांगद) भी पाए जाते हैं। मणिपुर राज्य अपनी जैव सम्पदा के लिए विख्यात है। यहाँ अनेक प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियाँ और जीव-जंतु पाए जाते हैं। यहाँ ‘संगाई’ हिरण (सेरवस इल्डी इल्डी) भी पाया जाता है, जो पायी जाने वाली नस्ल में दुर्लभ है। यह केइबुल लामजाओ के प्राकृतिक वन क्षेत्र में पाया जाता है। केइबुल लामजाओ लगभग 40 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
1977 में इसको 'राष्ट्रीय उद्यान' घोषित किया गया। इसकी विशेषता इसमें तैरता हुआ उद्यान है जिसमें ’फुमडी’ नामक वनस्पति पायी जाती है। संगाई हिरण इसी वनस्पति पर निर्भर होते हैं। राज्य सरकार के संरक्षण के उपायों से 2003 से ‘संगाई’ की संख्या बढ़कर 180 हो गई है। 1975 में यह मात्र 14 थे।
'केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय पार्क' के अतिरिक्त एक 184.40 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 'भांगोपोकपी लोकचाओ वन्यप्राणी अभयारण्य' भी संरक्षित क्षेत्र है। यह उद्यान चंदेल ज़िले में है। इस अभारण्य में 'मलायान भालू' पाए जाते हैं।
राज्य में जैव संपदा का विशाल भंडार है। वनों का बड़ा हिस्सा संरक्षित है। इनमें टेक्सस बकाटा, जिनसेंग नामक दुर्लभ औषधीय पौधों की प्रजातियाँ पायी जाती हैं। यह राज्य अनेक दुर्लभ वनस्पतियों का घर है।
सिंचाई
राज्यों में सिंचाई परियोजनाओं का आरम्भ 1980 में हुआ। तब से जिन सिंचाई परियोजनाओं का कार्य हुआ है, वे इस प्रकार हैं-
- लोकतक लिफ्ट सिंचाई परियोजना,
- कोफुम बांध, सेकमाइ बौराज,
- इंफाल बेराज,
- सिंगडा बहुउद्देश्यीय योजना,
- खूगा बहुउद्देश्यीय परियोजना,
- थोबल बहुउद्देश्यीय परियोजना और
- दोलईथबी बांध बहुउद्देश्यीय परियोजना।
- इनमें से कोफुम बांध, इंफाल बैराज, लोकतक लिफ्ट सिंचाई तथा सिंगडा परियोजना के सिंचाई वाले भाग तथा केथलमानबी के बैराज तथा थोबल बहुउद्देश्यीय योजना को आठवीं परियोजना के अंतर्गत सम्पन्न कर लिया है।
- नवीं परियोजना तक इनकी सिंचाई क्षमता 28,500 हेक्टेयर थी जिसमें से 21,850 क्षेत्र में सिंचाई हो रही थीं। इसके अतिरिक्त लुअसीपट तथा पोइरोपट के जल भराव वाले 1200 और 900 हेक्टेयर क्षेत्र को थोबुल परियोजना में कृषि योग्य बनाया गया है।
- सिंगडा बांध से राज्य जन स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग को 4 एम.जी.डी. कच्चे पानी की आपूर्ति होती है। वर्ष 2007 से खुगा बहुउद्देश्यीय परियोजना से राज्य को 5 एम.जी.डी. कच्चे पानी की आपूर्ति होती है।
- खुगा बहुउद्देश्यीय परियोजना, थोबुल बहुउद्देश्यीय परियोजना तथा डोलाईथबी बैराज परियोजना का कार्य प्रगति पर है तथा इसे दसवीं योजना के दौरान पूरा कर लेने का लक्ष्य है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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