एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया।
बोल है कि वेद की ऋचायें,
सांसों में सूरज उग आयें,
आँखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे,
मन सारा नील गगन हो गया।
गंध गुंथी बाहों का घेरा,
जैसे मधुमास का सवेरा,
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी,
पूजा का एक जतन हो गया।
पानी पर खीचकर लकीरें,
काट नहीं सकते जंजीरें,
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं,
अग्निबिंदु और सघन हो गया।
एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया।