वह जब थी
तो कुछ इस तरह थी
जैसे कोई भी बीमार बुढ़िया होती है
शहर के किसी भी घर में
अपने दिन गिनती
वह जब थी
इस शहर को
और इस घर को
नहीं था कोई सरोकार
कि अपनी पीड़ाओं और संघर्षों के साथ
वह कितनी अकेली थी
कहाँ शामिल था खुद मैं भी
उस तरह से
उस के होने में
जिस तरह से कि इस अंतिम यात्रा में हूँ ?
आज जब जा रही है वह
तो रो रहा है घर
स्तब्ध है शहर
खड़ा है कोई हाथ जोड़ कर
और कोई सरक गया है दुकान मे मुँह फेर कर
आज जब वह जा रही है
भीड़ ने रास्ता दे दिया है उसे सहम कर
भारी भरकम गाड़ियाँ गुर्राना छोड़
दो पल के लिए एक तरफ हो गई हैं
चौराहे पर उस वर्दी धारी सिपाही ने भी
अदब से सलाम ठोक दिया है !
आज जब वह जा रही है
तो लगने लगा है सहसा
मुझे
इस घर को
और पूरे शहर को
कि वह थी .......
वह थी
और अब नहीं रही !
21.06.2007