इस कुँआरी झील में झांको
किनारे किनारे
कंकरों के साथ खनकती
तारों की रेज़गारी
सुनो
लहरों पर तैरता आ रहा
किश्तों में चाँद
छलकता थपोरियाँ बजाता
तलुओं और टखनों पर
पानी में घुल रही
सैंकड़ों अनाम खनिजों की तासीर
सैंकड़ों अदृश्य वनस्पतियाँ
महक रही हवा मे
महसूस करो
वह शीतल विरल वनैली छुअन
कहो
कह ही डालो
वह सबसे कठिन कनकनी बात
पच्चीस हज़ार वॉट की धुन पर
दरकते पहाड़
चटकते पठार
रो लो
नाच लो
जी लो
आज तुम मालामाल हो
पहुँच जाएंगी यहाँ
कल को
वही सब बेहूदी पाबन्दियाँ !
चन्द्र्ताल , 11.07.2006