जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क
जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क दिल्ली से 240 कि.मी. उत्तर-पूर्व में स्थित एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यह राष्ट्रीय अभयारण्य उत्तरांचल राज्य के नैनीताल ज़िले में रामनगर शहर के निकट एक विशाल क्षेत्र को घेर कर बनाया गया है। यह गढ़वाल और कुमाऊँ के बीच रामगंगा नदी के किनारे लगभग 1316 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इस पार्क का मुख्य कार्यालय रामनगर में है और यहाँ से परमिट लेकर पर्यटक इस उद्यान में प्रवेश करते हैं। जब पर्यटक पूर्वी द्वार से उद्यान में प्रवेश करते हैं तो छोटे-छोटे नदी-नाले, शाल के छायादार वृक्ष और फूल-पौधों की एक अनजानी सी सुगन्ध उनका मन मोह लेती है। पर्यटक इस प्राकृतिक सुन्दरता में सम्मोहित सा महसूस करता है।
इतिहास
इस पार्क का इतिहास काफ़ी समृद्ध है। कभी यह पार्क टिहरी गढ़वाल के शासकों की निजी सम्पत्ति हुआ करता था। 'गोरखा आन्दोलन' के दौरान 1820 ई. के आसपास राज्य के इस हिस्से को ब्रिटिश शासकों को उसके सहयोग के लिए सौंप दिया गया था। अंग्रेज़ों ने इस पार्क का लकड़ी के लिए काफ़ी दोहन किया और रेलगाड़ियों की सीटों के लिए टीक के पेड़ों को भारी संख्या में काटा। पहली बार मेजर रैमसेई ने इसके संरक्षण की व्यापक योजना तैयार की। 1879 में वन विभाग ने इसे अपने अधिकार में ले लिया और संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया। 1934 में संयुक्त प्रान्त के गवर्नर मैलकम हैली ने इस संरक्षित वन को जैविक उद्यान घोषित कर दिया। इस पार्क को 1936 में गवर्नर मैलकम हैली के नाम पर 'हैली नेशनल पार्क' का नाम दिया गया था। यह भारत का पहला राष्ट्रीय पार्क और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पार्क बना।
नामकरण
'जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क' से होकर रामगंगा नदी बहती है। आज़ादी के बाद इस पार्क का नाम इसी नदी के नाम पर 'रामगंगा राष्ट्रीय पार्क' रखा गया था, लेकिन 1957 में पार्क का नाम 'जिम कार्बेट नेशनल पार्क' कर दिया गया। जिस जिम कार्बेट के नाम पर पार्क का नामकरण किया गया, वह एक शिकारी था, लेकिन पर्यावरण में उसकी काफ़ी दिलचस्पी थी और उसने इस पार्क को विकसित करने में काफ़ी सहयोग दिया था।
पर्यटकों की सुविधाएँ
इस अभयारण्य में पर्यटन विभाग द्वारा ठहरने और उद्यान में भ्रमण करने की व्यवस्था है। उद्यान के अन्दर ही लॉज, कैन्टीन व लाइब्रेरी हैं। उद्यान कर्मचारियों के आवास भी यहीं हैं। लाइब्रेरी में वन्य जीवों से संबंधित अनेक पुस्तकें रखी हैं। पशु-पक्षी प्रेमी यहाँ बैठे घंटों अध्ययन करते रहते हैं। यहाँ के लॉजों के सामने लकड़ी के मचान बने हैं, जिनमें लकड़ियों की सीढियों द्वारा चढ़ा जाता है और बैठने के लिए कुर्सियों की व्यवस्था है। शाम के समय सैलानी यहाँ बैठकर दूरबीन से दूर-दूर तक फैले प्राकृतिक सौन्दर्य तथा अभयारण्य में स्वच्छंद विचरण करते वन्य जीवों को देख सकते हैं। सैलानी यहाँ आकर प्राकृतिक सौन्दर्य का जी भर कर आनन्द उठा सकते हैं। यहाँ के वनरक्षक ताकीद कर जाते हैं कि देर रात तक बाहर न रहें और न ही रात के समय कमरों से बाहर निकलें। ऐसी ही हिदायतें यहाँ जगह-जगह पर लिखी हुई भी हैं। इसकी वजह है कभी-कभी रात के समय अक्सर जंगली हाथियों के झुंड या कोई खूंखार जंगली जानवर यहाँ तक आ जाते हैं।[1]
जैव विविधता
भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण 'प्रोजेक्ट टाइगर' के अधीन आने वाला यह पार्क देश का पहला राष्ट्रीय पार्क है। बाघों की घटती संख्या पर रोक लगाने के उद्देश्य से 1973 में इसे 'प्रोजेक्ट टाइगर' के अधीन लाया गया। बाघ, तेंदुआ और हाथियों की संख्या के कारण यह पार्क दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहाँ पक्षियों की 600 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
सम्पर्क
इस राष्ट्रीय पार्क तक पहुँचने के लिए दो रेलवे स्टेशन है- रामनगर और हलद्वानी। रामनगर से 'धिकाला'[2] के लिए 47 कि.मी. की पक्की सड़क है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राष्ट्रीय उद्यान (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 दिसम्बर, 2012।
- ↑ पार्क का मुख्य विश्राम गृह
बाहरी कड़ियाँ
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