दशरथ

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दशरथ पुराणों और रामायण में वर्णित इक्ष्वाकु वंशी महाराज अज के पुत्र और अयोध्या के राजा थे। इनकी माता का नाम इन्दुमती था। इन्होंने देवताओं की ओर से कई बार असुरों को युद्ध में पराजित किया था। वैवस्वत मनु के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुये थे, जिनमें से दशरथ भी एक थे। समस्त भारत में पुरुषों के आदर्श और मर्यादापुरोत्तम श्रीराम राजा दशरथ के ही ज्येष्ठ पुत्र थे। राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं- कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। रानी कैकेयी की हठधर्मिता के कारण ही राम को पत्नी सीता सहित वन में जाना पड़ा। राम के वियोग में ही राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिये। दशरथ के चरित्र में आदर्श महाराजा, पुत्रों को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति को दर्शाया गया है।

जन्म

दशरथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश के तेजस्वी राजा अज के यहाँ रानी इन्दुमती के गर्भ से हुआ था। कौशल प्रदेश, जिसकी स्थापना वैवस्वत मनु ने की थी, पवित्र सरयू नदी के तट पर स्थित था। सुन्दर एवं समृद्ध अयोध्या नगरी इस प्रदेश की राजधानी थी। राजा दशरथ वेदों के मर्मज्ञ, धर्मप्राण, दयालु, रणकुशल, और प्रजा पालक थे। उनके राज्य में प्रजा कष्टरहित, सत्यनिष्ठ एवं ईश्वमर भक्तत थी। उनके राज्य में किसी के भी मन में किसी के प्रति द्वेषभाव का सर्वथा अभाव था।

पूर्व कथा

प्राचीन काल में मनु और शतरूपा ने वृद्धावस्था आने पर घोर तपस्या की। दोनों एक पैर पर खड़े रहकर 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वर माँगने को कहा। दोनों ने कहा- "प्रभु! आपके दर्शन पाकर हमारा जीवन धन्य हो गया। अब हमें कुछ नहीं चाहिए।" इन शब्दों को कहते-कहते दोनों की आँखों से प्रेमधारा प्रवाहित होने लगी। भगवान बोले- "तुम्हारी भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हूँ वत्स! इस ब्रह्माण्ड में ऐसा कुछ नहीं, जो मैं तुम्हें न दे सकूँ।" भगवान ने कहा- "तुम निस्संकोच होकर अपने मन की बात कहो।" भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर मनु ने बड़े संकोच से अपने मन की बात कही- "प्रभु! हम दोनों की इच्छा है कि किसी जन्म में आप हमारे पुत्र रूप में जन्म लें।" 'ऐसा ही होगा वत्स!' भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा- "त्रेता युग में तुम अयोध्या के राजा दशरथ के रूप में जन्म लोगे और तुम्हारी पत्नी शतरूपा तुम्हारी पटरानी कौशल्या होगी। तब मैं दुष्ट रावण का संहार करने माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लूँगा।" मनु और शतरूपा ने प्रभु की वन्दना की। भगवान विष्णु उन्हें आशीष देकर अंतर्धान हो गए।

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि श्यामवर्ण, अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अद्भुीत सौन्दर्यशाली था। उस शिशु को देखने वाले ठगे से रह जाते थे। इसके पश्चात शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ। इस प्रकार क्रमशः राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। इनकी शांता नाम की एक पुत्री थी, जिसे इनके मित्र राजा रोमपाद ने गोद लिया था।

अपने बड़े पुत्र राम के राज्याभिषेक की इच्छा दशरथ पूरी नहीं कर पाए और कैकयी के हठ के कारण उन्हें राम को 14 वर्ष के लिए बनवास पर भेजना पड़ा। इसी पुत्र-वियोग में दशरथ का देहांत हो गया। इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेख मिलता है कि हाथी के पानी पीने के समान आवाज़ सुनकर दशरथ ने शब्द-भेदी बाण चला दिया था। उससे अंधे माता-पिता के लिए पानी भर रहे श्रवणकुमार की मृत्यु हो गई। पुत्र की मृत्यु के बाद तड़पकर मरते हुए श्रवणकुमार के माता-पिता ने दशरथ को शाप दिया था कि तुम भी हमारी तरह पुत्र के शोक में मरोगे। वही शाप राम के वन-गमन के वियोग में दशरथ की मृत्यु का कारण बना।


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