ऋतुपर्णो घोष
ऋतुपर्णो घोष
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पूरा नाम | ऋतुपर्णो घोष |
प्रसिद्ध नाम | ऋतु दा |
जन्म | 31 अगस्त, 1963 |
जन्म भूमि | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत |
मृत्यु | 30 मई, 2013 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | फ़िल्म निर्देशन |
मुख्य फ़िल्में | 'हिरेर आंग्टी', 'उनिशे एप्रिल', 'रेनकोट', 'द लास्ट लीअर', 'अबोहोमन', 'चोखेर बाली', 'चित्रांगदा', 'सनग्लास' आदि। |
शिक्षा | अर्थशास्त्र की डिग्री |
विद्यालय | 'साउथ पॉइंट हाईस्कूल', 'जादवपुर यूनिवर्सिटी', कोलकाता |
पुरस्कार-उपाधि | बारह बार 'राष्ट्रीय पुरस्कार', 'स्पेशल ज्यूरी अवार्ड' |
प्रसिद्धि | फ़िल्म निर्देशक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ऋतुपर्णो घोष ने हिन्दी फ़िल्मों की मशहूर अभिनेत्री ऐश्वर्या राय को लेकर फ़िल्म 'चोखेर बाली' (2003) बनाई थी। यह फ़िल्म रवीन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास पर आधारित थी। |
ऋतुपर्णो घोष (अंग्रेज़ी: Rituparno-Ghosh; जन्म- 31 अगस्त, 1963, कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत; मृत्यु- 30 मई, 2013, कोलकाता) बंगाली फ़िल्मों के प्रसिद्ध निर्देशक, लेखक और अभिनेता थे। 'चोखेर बाली', 'रेनकोट' और 'अबोहोमन' जैसी फ़िल्मों के लिए 'राष्ट्रीय पुरस्कार' विजेता ऋतुपर्णो घोष घोष की ख्याति राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जगत में थी। उन्होंने और उनकी फ़िल्मों ने रिकॉर्ड बारह 'राष्ट्रीय पुरस्कार' जीते थे। ऋतुपर्णो घोष उन निर्देशकों में से एक थे, जो फ़िल्म को एक कला मानते थे। व्यवसाय या बॉक्स ऑफिस को ध्यान में रखकर उन्होंने कभी फ़िल्में नहीं बनाईं। उनकी अपनी सोच थी, शैली थी और अपने मिजाज के अनुरूप ही वे फ़िल्में बनाते थे। बहुत कम समय में ही उन्होंने अपनी एक ख़ास पहचान बना ली थी। घोष ने विज्ञापन की दुनिया से अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया था और जल्द ही फ़िल्मों की ओर मुड़ गए थे। अपने 19 साल के फ़िल्मी करियर में ऋतुपर्णो घोष ने 19 फ़िल्मों का निर्देशन और तीन फ़िल्मों में अभिनय किया।
जन्म तथा शिक्षा
ऋतुपर्णो घोष का जन्म 31 अगस्त, 1963 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। इनके पिता का नाम सुनील घोष था। सुनील घोष डॉक्युमेंट्री फ़िल्म मेकर और पैंटर थे। ऋतुपर्णो घोष को फ़िल्म मेकिंग की प्रेरणा अपने पिता से ही मिली थी। ऋतुपर्णो घोष ने अपनी प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा 'साउथ पॉइंट हाईस्कूल' से प्राप्त की। उन्होंने अपनी अर्थशास्त्र की डिग्री 'जादवपुर यूनिवर्सिटी', कोलकाता से प्राप्त की थी। आगे चलकर अपने आधुनिक विचारों को उन्होंने फ़िल्मों के जरिये पेश किया और जल्दी ही अपनी पहचान एक ऐसे फ़िल्म मेकर के रूप में बना ली, जिसने 'भारतीय सिनेमा' को समृद्ध किया।
फ़िल्म निर्माण
विज्ञापने की दुनिया से अपना कैरियर शुरू करने वाले ऋतुपर्णो घोष ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत बाल फ़िल्मों के निर्माण से की। वर्ष 1994 में बाल फ़िल्म 'हिरेर आंग्टी' के निर्देशन से उन्हें शोहरत मिलने लगी थी। इसके बाद 'उनिशे एप्रिल' के लिए उन्हें 1995 में 'राष्ट्रीय पुरस्कार' से नवाज़ा गया था। यह फ़िल्म प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक इंगमार बर्गमन की 'ऑटम सोनाटा' से प्रेरित थी। इस फ़िल्म में ऋतुपर्णो घोष ने माँ-बेटी के तनावपूर्ण रिश्तों को बारीकी से रेखांकित किया था। एक कामकाजी महिला अपने व्यावसायिक कैरियर में सफल है, लेकिन अपनी पारिवारिक जिंदगी में वह असफल रहती है। इसका असर उसकी बेटी पर होता है और बेटी अपनी माँ से इस बात को लेकर नाराज है कि वह अपने व्यावसाय को कुछ ज़्यादा ही महत्त्व देती है। इस फ़िल्म में अपर्णा सेन, देबश्री राय और प्रसन्नजीत चटर्जी ने अभिनय किया था। इस फ़िल्म को सिने प्रेमियों ने खूब सराहा था। उनके जानने-पहचानने वाले लोग उन्हें 'ऋतु दा' के नाम से पुकारने लगे थे।[1]
लोकप्रियता
अपनी फ़िल्मों के माध्यम से ऋतुपर्णो घोष ने बहुत लोकप्रियता प्राप्त की। सारे बड़े फ़िल्मी कलाकार उनके साथ काम करने के लिए तुरंत राजी हो जाते थे, क्योंकि उनकी फ़िल्मों में काम करना गर्व की बात थी। रिश्तों की जटिलता और लीक से हट कर विषय उनकी फ़िल्मों की ख़ासियत होते थे। बांग्ला उनकी मातृभाषा थी और इस भाषा में वे सहज महसूस करते थे। इसलिए अधिकतर फ़िल्में उन्होंने बांग्ला भाषा में ही बनाईं। फ़िल्म फेस्टिवल में सिनेमा देखने वाले दर्शक और ऑफबीट फ़िल्मों के शौकीन ऋतु दा की फ़िल्मों का बेसब्री से इंतजार करते थे।
राष्ट्रीय पुरस्कार
फ़िल्म 'हिरेर आंग्टी', जो कि एक बाल फ़िल्म थी, उसकी सफलता के बाद से ही ऋतुपर्णो घोष की फ़िल्मों को 'राष्ट्रीय पुरस्कार' मिलना आम बात हो गई। कभी कलाकारों को, कभी लेखकों तो कभी फ़िल्म को 'राष्ट्रीय पुरस्कार' मिलता। वर्ष 1999 में ऋतुपर्णो घोष द्वारा निर्देशित फ़िल्म 'बारीवाली' के लिए अभिनेत्री किरण खेर ने श्रेष्ठ अभिनेत्री का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' हासिल किया था। 'बारीवाली' एक ऐसी महिला की कहानी थी, जिसके होने वाले पति की विवाह के एक दिन पहले ही मौत हो जाती है और इसके बाद वह एकांकी जीवन बिताती है। ऋतुपर्णो घोष ने कुल 19 फ़िल्में बनाईं और 12 'राष्ट्रीय पुरस्कार' जीते। ये पुरस्कार उनकी काबलियत को जाहिर करते हैं।[1]
उल्लेखनीय तथ्य
- 'उत्सव' (2000), 'तितली' (2002), 'शुभो महुर्त' (2003) जैसी बांग्ला भाषा में बनी फ़िल्मों ने ऋतुपर्णो घोष की ख्याति को बढ़ाया। इसके बाद ऋतुपर्णो ने हिन्दी फ़िल्मों की मशहूर अभिनेत्री ऐश्वर्या राय को लेकर 'चोखेर बाली' (2003) बनाई। यह फ़िल्म रवीन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास पर आधारित थी। इस फ़िल्म में महिला किरदारों को बखूबी पेश किया गया था।
- वर्ष 2004 में ऋतुपर्णो घोष ने हिन्दी भाषा में फ़िल्म 'रेनकोट' बनाई। 'रेनकोट' ऐसे दो प्रेमियों की कहानी है, जो वर्षों बाद बरसात की एक रात में मिलते हैं। इस फ़िल्म को ऐश्वर्या राय के कैरियर की श्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक माना जाता है। अभिनेता अजय देवगन ने भी इस फ़िल्म में शानदार अभिनय किया।
- वर्ष 2007 में ऋतुपर्णो घोष ने सिनेमा के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन के साथ किया और फ़िल्म 'द लास्ट लियर' बनाई।
- ऋतुपर्णो घोष की दूसरी हिन्दी फ़िल्म 'सनग्लास' थी, जो 2012 में रिलीज हुई थी।
प्रमुख फ़िल्में
वर्ष | फ़िल्म | भाषा |
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1994 | हिरेर आंग्टी | बंगाली |
1995 | उनिशे एप्रिल | बंगाली |
1997 | दहन | बंगाली |
1999 | बेरीवाली | बंगाली |
2003 | चोखेर बाली | बंगाली |
2004 | रेनकोट | हिन्दी |
2005 | अंतरमहल | बंगाली |
2006 | दोसर | बंगाली |
2007 | द लास्ट लीअर | अंग्रेज़ी |
2008 | शोभ चरित्रो काल्पोनिक | बंगाली |
2010 | अबोहोमन | बंगाली |
2010 | नौकाडूबी | बंगाली |
2012 | चित्रांगदा | बंगाली |
2012 | सनग्लास | हिन्दी |
समलैंगिक फ़िल्में
चाहे हिन्दी फ़िल्म 'रेनकोट' में ऐश्वर्या राय और अजय देवगन से संवेदनशील अभिनय करवाना हो या फिर बांग्ला और हिन्दी में 'चोखेरबाली' हो, ऋतुपर्णो घोष ने न केवल महिलाओं से जुड़े मुद्दों को उठाया, बल्कि समलैंगिक मुद्दों को भी वे उठाते रहे। उनकी फ़िल्मों में समलैंगिक विषयों का काफ़ी संजीदा तरीके से चित्रण हुआ है। सर्वश्रेष्ठ अंग्रेज़ी फ़िल्म के लिए 'राष्ट्रीय पुरस्कार' जीतने वाली फ़िल्म 'मेमरीज़ इन मार्च' भी समलैंगिक विषय पर बनाई गई थी, जिसमें ऋतुपर्णो के अभिनय को काफ़ी सराहा गया था। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ऋतुपर्णो ने कभी भी बॉलीवुड की मुख्य धारा का रुख नहीं किया और कोलकाता में ही रह कर अलग-अलग विषयों पर अर्थपूर्ण फ़िल्में बनाते रहे। इस बात का अंदाजा़ इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें सिर्फ 49 वर्ष की आयु में ही बारह 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके थे। सिर्फ़ 21 वर्ष में बहुत कम ही फ़िल्मकारों को इतने पुरस्कार नसीब हुए हैं, लेकिन ऋतुपर्णो घोष अपने आप में ख़ास किस्म के निर्देशक और अभिनेता रहे थे।[2]
पुरस्कार व सम्मान
ऋतुपर्णो घोष ने कई श्रेणियों में बारह 'राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार' जीते थे। उन्हें 'चोखेर बाली', 'उन्नीशे अप्रैल', 'रेनकोट' और 'द लास्ट लीअर' जैसी फ़िल्मों के लिए याद किया जाता है। वर्ष 2012 में आई उनकी आखिरी फ़िल्म 'चित्रांगदा' के लिए उन्हें 60वें 'राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार' समारोह में 'स्पेशल ज्यूरी अवार्ड' दिया गया था। घोष ने अपनी फ़िल्मों 'अरेक्ती प्रेमेर गोल्पो' 'मेमोरीज इन मार्च' और 'चित्रांगदा' में अपना अभिनय कौशल भी दिखाया था।
निधन
'भारतीय सिनेमा' को अपनी सूझबूझ और फ़िल्मों के माध्यम से समृद्ध बनाने वाले ऋतुपर्णो घोष पैन्क्रियाटाइटिस से पीड़ित थे। 30 मई, 2013 को कोलकाता में सुबह के समय साढ़े सात बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। उनकी आखिरी फ़िल्म 'चित्रांगदा' थी, जो हाल ही में मुंबई में हुए समलैंगिक फ़िल्म महोत्सव की क्लोज़िग फ़िल्म थी। इस महोत्सव के निर्देशक श्रीधर रंगायन का कहना था कि- "हमने एक ऐसा निर्देशक खोया है, जो समलैंगिक विषयों पर खुलकर, बिना डरे और बेहद ही संजीदगी से फ़िल्में बनाता था।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 भारतीय सिनेमा को समृद्ध करने वाले फ़िल्मकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 05 जून, 2013।
- ↑ ऋतु अपनी सेक्शुअलिटी को लेकर शर्मिन्दा नहीं थे (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 05 जून, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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