नाँ गुर मिल्या न सिष भया -कबीर
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नाँ गुर मिल्या न सिष भया, लालच खेल्याडाव। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि साधना की सफलता के लिए ज्ञानी गुरु तथा निष्ठावान साधक का संयोग आवश्यक है। ऐसा संयोग न होने पर दोनों की ही दुर्गति होती है। जैसे कोई पत्थर की नाव पर चढ़ कर नदी पार करना चाहे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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