मेरा मन सुमिरै राम को -कबीर
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मेरा मन सुमिरै राम को, मेरा मन रामहि आहि। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि मेरा मन राम का स्मरण करते-करते राममय हो गया। ऐसी स्थिति में अब मैं किसको नमस्कार करूँ?
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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