थैलेसिमिया
थैलेसिमिया एक अनुवांशिक बीमारी है, जो माता-पिता से उसकी संतान को होती है। इस बीमारी से ग्रस्त हो जाने पर शरीर में लाल रक्त कण बनने बंद हो जाते हैं। शरीर में रक्त की कमी आ जाती है। बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। थैलेसिमिया बीमारी अधिकांशत: शिशुओं में देखने को मिलती है।
अनुवांशिक रोग
थैलेसिमिया में शरीर का रंग पीला पड़ जाता है। इस रोग के बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है। यह बीमारी आनुवांशिक है, रिश्तेदारी के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। बीमारी का जन्म शिशु के साथ होता है, जो उम्र भर साथ नहीं छोड़ती। इसका सिर्फ एक समाधान है और वह है- 'रिश्तों में सावधानी बरतना"। यह बीमारी कुछ विशेष समुदायों में है। उन समुदायों के रिवाज ही इस बीमारी को रोक सकते हैं।
रोकथाम एवं निदान
चिकित्सकों के अनुसार थैलेसिमिया वंशानुगत बीमारी है, लेकिन इसकी रोकथाम आसानी से की जा सकती है। यदि विवाह से पूर्व सभी इसकी जांच करवा लें तो निदान आसानी से और कम कीमत पर हो जाता है। गर्भावस्था में जांच करने पर यदि इस बीमारी के लक्षण पाये जाते हैं तो डॉक्टर महिला को गर्भपात की सलाह देते हैं। मुख्यतः यह बीमारी सिंधियों, राजपूतों एवं मुस्लिमों में पाई जाती है। डॉक्टरों का यह भी कहना है कि इस बीमारी को छिपाना नहीं चाहिए।
थैलेसिमिया का टेस्ट
इस बीमारी से बचने के लिए लड़के-लड़की का विवाह पूर्व थैलेसिमिया वाहक का टेस्ट करवाना चाहिये। साथ ही गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दसवें तथा 11वें सप्ताह में कोरियोनिक विलाई सैम्पलिंग टेस्ट करवाना चाहिये। थैलेसिमिया रोग का स्थाई समाधान बोन मेरो ट्रांसप्लांट अथवा स्टेमसेल ट्रांसप्लांट द्वारा संभव है, जो वर्तमान में भारत में भी उपलब्ध है। थैलेसिमिया रोकथाम के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आम जनता, सभी चिकित्सा संस्थान, स्वयंसेवी संस्थान, प्रचार माध्यम तथा सरकारी तंत्र मिलकर सहयोग कर सकते हैं।
सावधानियाँ
थैलेसिमिया रोग के मरीज को निम्न सावधानिया बरतनी चाहिए-
- रोगियों को वही पदार्थ खाने चाहियें, जिनमें आयरन की मात्रा कम हो, किंतु यह भी ध्यान रखें कि हिमोग्लोबिन की कमी न होने पाये। इसके लिए अधिक से अधिक चाय का सेवन करना चाहिए।
- भोज्य पदार्थों में दूध-दही का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
- लोहे के बर्तन में खाना नहीं पकाना चाहिए।
- प्रोटीन युक्त पदार्थ खाने से बचना चाहिए।
- मटर, पालक, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, तरबूज, किशमिश, खजूर नहीं खाना चाहिए।
- अचार, सिरका एवं एल्कोहल को कम से कम मात्रा में लें।
- सब्जी एवं मीट उबालने की जगह भाप से तैयार करना चाहिए।
- आटा ब्रेड का प्रयोग करें तथा बच्चों को चॉकलेट खाने से बचायें, क्योंकि इसमें आयरन की मात्रा अधिक होती है।
भारत में स्थिति
भारत में प्रति वर्ष लगभग 8 से 10 थैलेसिमिया रोगी जन्म लेते हैं। वर्तमान में भारत में लगभग 2,25,000 बच्चे थैलेसिमिया रोग से ग्रस्त हैं। सामान्यत: बच्चे में 6 माह, 18 माह के भीतर थैलेसिमिया का लक्षण प्रकट होने लगता है। बच्चा पीला पड़ जाता है, पूरी नींद नहीं लेता, खाना-पीना अच्छा नहीं लगता है, बच्चे उल्टियां, दस्त और बुखार से पीडि़त हो जाता है। डॉक्टरों के अनुसार आनुवांशिक मार्गदर्शन और थैलेसिमिया माइनर का दवाइयों से उपचार संभव है। थैलेसिमिया रोग से बचने के लिए माता-पिता का डीएनए टैस्ट कराना अनिवार्य है। साथ ही रिश्तेदारों का भी डीएनए टैस्ट करवाकर रोग पर प्रभावी नियंत्रण संभव है। विवाह से पूर्व जन्मपत्री मिलाने के साथ-साथ दूल्हे और दुल्हन का एचबीए-2 का टेस्ट भी कराना चाहिए।
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