शिवरामकृष्णन अय्यर पद्मावती

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एस. आई. पद्मावती (अंग्रेज़ी: S. I. Padmavati) भारत की पहली महिला हृदय रोग विशेषज्ञ (कार्डियोलॉजिस्ट) हैं। इनका जन्म 1917 में हुआ। वर्तमान में इनकी उम्र 107 वर्ष है और ये आज भी अपने पेशे में सक्रिय है। इस उम्र में भी वे मरीजों का भरपूर खयाल रखती हैं। वे खुश हैं कि भारत में महिलाओं में दिल का डॉक्टर बनने का क्रेज बढ़ रहा है।

जीवन परिचय

म्यांमार (बर्मा) में जन्मी पद्मावती ने रंगून मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की डिग्री ली एवं लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिसियंस से एफ.आर.सी.पी. एवं इडिनबर्ग के रॉयल कालेज ऑफ फिजिशियंश से एफ.आर.सी.पी.ई. की डिग्री हासिल की। वे 1953 में भारत आ गईं एवं दिल्ली के लेडी हार्डिंग्स मेडिकल कालेज में लेक्चरर हो गईं, जहां उन्होंने एक कार्डियोलॉजी क्लिनीक भी स्थापित की। वे कहती हैं, जब मैं लेडी हार्डिग अस्पताल से जुड़ी, वहां सभी महिलाएं अंग्रेज़ थीं। वहां कार्डियोलॉजी विभाग नहीं था। हमने इसे शुरू किया। फिर जी.बी. पंत हॉस्पिटल में मैंने कार्डियोलॉजी विभाग शुरू किया। इसके लिए हमें पांच लाख रुपये दिए गए थे।[1]

नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट की स्थापना

डॉ. पद्मावती की योग्यता में स्वीडन से एक कार्डियोलॉजी कोर्स, जॉन हॉपकिन्स हॉस्पिटल, बाल्टीमोर एवं हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से फेलोशिप भी शामिल हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए वह कहती हैं, पहले के नेता मिलने-जुलने में काफी उदार थे। 1981 में जब नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट के उद्घाटन का मौका आया तो मैंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अनुरोध किया कि वे 20 अगस्त को इस संस्थान का उद्घाटन कर दें। उन्होंने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया जब कि उस दिन वे काफी व्यस्त थीं, क्योंकि राजीव गांधी का जन्मदिन भी उसी दिन था। वे महान नेता थीं। वे आगे कहती हैं, मेरे कई नेताओं से अच्छे तालुकात थे। मैंने राजकुमारी अमृत कौर की प्रेरणा से भारत में बसने का फैसला किया था। कौर आजादी के बाद 10 वर्षो तक देश की स्वास्थ्य मंत्री थीं। उन्होंने कहा कि अपने इतने लंबे करियर में उन्हें कभी लैंगिक भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। वे कहती हैं, 'आज भी मेरा मानना है कि देश में मेडिकल क्षेत्र में भेदभाव कम से कम है।

वर्तमान में भी सक्रियता

अपने द्वारा स्थापित अस्पताल के वार्डो का चक्कर लगाकर मरीजों का हाल-चाल जानने का उनका दशकों पुराना रूटीन बरकरार है। नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट के हृदय रोग विभाग में चीफ कंसल्टेंट पद्मावती ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, हृदय रोग चिकित्सा बेहद व्यस्तता एवं जिम्मेवारी भरा क्षेत्र है, जिसमें काम का कोई तय रूटीन नहीं होता। यह काफी दबाव एवं उच्च जिम्मेवारी वाला क्षेत्र रहा है, इसलिए महिलाएं इसमें आने से परहेज करती रही हैं, पर अब स्थिति बदल रही है। महिलाओं में कार्डियोलॉजिस्ट बनने का क्रेज बढ़ रहा है। यह सच है कि यह चिकित्सा क्षेत्र पुरुषों के दबदबे वाला रहा है। वैश्विक स्तर पर यह स्थिति बनी हुई है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ़ कार्डियोलॉजी के वर्ष 2010 के आंकड़े के अनुसार अमेरिका में कुल हृदय रोग विशेषज्ञों में महिलाओं की तादाद 20 फीसदी से भी कम है। वहीं, ब्रिटेन के रॉयल कालेज ऑफ़ फिजिशियंस द्वारा देश के तीन इलाकों में कराये गए सर्वेक्षण में कुल 799 कार्डियोलॉजिस्ट में से महज 90 कार्डियोलॉजिस्ट ही महिला थीं। यह प्रतिशतता 11.75 से थोड़ी अधिक है। भारत में भी स्थिति इससे भिन्न नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पहली महिला कार्डियोलॉजिस्ट 93 वर्ष की उम्र में भी सक्रिय (हिन्दी) हिन्दुस्तान लाइव। अभिगमन तिथि: 29 सितम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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