साधना (अभिनेत्री)
साधना (अभिनेत्री) | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- साधना (बहुविकल्पी) |
साधना (अभिनेत्री)
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पूरा नाम | साधना शिवदासानी |
प्रसिद्ध नाम | साधना |
जन्म | 2 सितम्बर, 1941 |
जन्म भूमि | कराची |
अभिभावक | शेवाराम (पिता), लालीदेवी (माता) |
पति/पत्नी | आर.के. नैय्यर |
कर्म भूमि | मुंबई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनय |
मुख्य फ़िल्में | 'लव इन शिमला', 'मेरे मेहबूब', 'आरज़ू', 'वक़्त', 'मेरा साया', 'हम दोनों', 'अमानत', 'इश्क पर ज़ोर नहीं', 'परख', 'प्रेमपत्र', 'गबन', 'एक फूल दो माली' और 'गीता मेरा नाम' |
पुरस्कार-उपाधि | अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी (आईफा) द्वारा 2002 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | अपने बालों की स्टाइल की वजह से साधना बहुत प्रसिद्ध थीं, उनके बालों की कट स्टाइल 'साधना कट' के नाम से जानी जाती है। |
अद्यतन | 14:37, 16 दिसम्बर 2014 (IST)
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साधना (अंग्रेज़ी: Sadhana, जन्म: 2 सितम्बर, 1941, कराची) भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री रही हैं। उन्होंने फ़िल्म 'अबाणा' से अपना फ़िल्मी सफर आरम्भ किया था। साधना ने हिन्दी फ़िल्मों से जो शोहरत पाई और जो मुकाम हासिल किया, वह किसी से छिपा नहीं है। साधना का पूरा नाम 'साधना शिवदासानी' (बाद में नैय्यर) था। वह अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थीं। अपने बालों की स्टाइल की वजह से भी साधना प्रसिद्ध थीं, उनके बालों की कट स्टाइल 'साधना कट' के नाम से जानी जाती है।
शिक्षा तथा विवाह
साधना के पिता का नाम शेवाराम और माता का नाम लालीदेवी था। माता-पिता की एकमात्र संतान होने के कारण साधना का बचपन बड़े प्यार के साथ व्यतीत हुआ था। 1947 में भारत के बंटवारे के बाद उनका परिवार कराची छोड़कर मुंबई आ गया था। इस समय साधना की आयु मात्र छ: साल थी। साधना का नाम उनके पिता ने अपने समय की पसंदीदा अभिनेत्री 'साधना बोस' के नाम पर रखा था। साधना ने आठ वर्ष की उम्र तक अपनी शिक्षा घर पर ही पूरी की थी। ये शिक्षा उन्हें उनकी माँ से प्राप्त हुई थी। रूपहले पर्दे पर अपनी दिलकश अदाकारी से घर-घर में पसंद की जाने वाली साधना का विवाह आर.के. नैय्यर के साथ हुआ था, जिस कारण वह साधना नैय्यर के नाम से भी जानी गईं, किंतु उनका साधना नाम ही ज़्यादा प्रसिद्ध रहा।
नृत्य के लिए चुनाव
जब साधना स्कूल की छात्रा थीं और नृत्य सीखने के लिए एक डांस स्कूल में जाती थीं, तभी एक दिन एक नृत्य-निर्देशक उस डांस स्कूल में आए। उन्होंने बताया कि राजकपूर को अपनी फ़िल्म के एक ग्रुप-डांस के लिए कुछ ऐसी छात्राओं की ज़रूरत है, जो फ़िल्म के ग्रुप डांस में काम कर सकें। साधना की डांस टीचर ने कुछ लड़कियों से नृत्य करवाया और जिन लड़कियों को चुना गया, उनमें से साधना भी एक थीं। इससे साधना बहुत खुश थीं, क्योंकि उन्हें फ़िल्म में काम करने का मौका मिल रहा था। राजकपूर की वह फ़िल्म थी- 'श्री 420'। डांस सीन की शूटिंग से पहले रिहर्सल हुई। वह गाना था- 'रमैया वस्ता वइया..।' साधना शूटिंग में रोज़ शामिल होती थीं। नृत्य-निर्देशक जब जैसा कहते साधना वैसा ही करतीं। शूटिंग कई दिनों तक चली। लंच-चाय तो मिलते ही थे, साथ ही चलते समय नगद मेहनताना भी मिलता था।
एक दिन साधना ने देखा कि 'श्री 420' के शहर में बड़े-बड़े बैनर लगे हैं। फ़िल्म रिलीज हो रही है। ऐसे में एक्स्ट्रा कलाकार और कोरस डांसर्स को कोई प्रोड्यूसर प्रीमियर पर नहीं बुलाता, इसलिए साधना ने खुद अपने और अपनी सहेलियों के लिए टिकटें ख़रीदीं। दरअसल, साधना यह चाहती थीं कि वे पर्दे पर डांस करती हुई कैसी लगती हैं, उनकी सहेलियाँ भी देखें। सहेलियों के साथ साधना सिनेमा हॉल पहुँचीं। फ़िल्म शुरू हुई। जैसे ही गीत 'रमैया वस्तावइया..' शुरू हुआ, तो साधना ने फुसफुसाते हुए सहेलियों से कहा, इस गीत को गौर से देखना, मैंने इसी में काम किया है। सभी सहेलियाँ आंखें गड़ाकर फ़िल्म देखने लगीं। लेकिन गाना समाप्त हो गया और वे कहीं भी नज़र नहीं आईं। तभी सहेलियों ने पूछा, अरे तू तो कहीं भी नज़र ही नहीं आई। साधना की आंखें उनकी बात सुनकर डबडबा गईं। उन्हें क्या पता था कि फ़िल्म के संपादन में राजकपूर उनके चेहरे को काट देंगे। लेकिन यह एक संयोग ही कहा जायेगा कि जिस राजकपूर ने साधना को उनकी पहली फ़िल्म में आंसू दिए थे, उन्होंने आठ साल बाद उनके साथ 'दूल्हा दुल्हन' में हीरो का रोल निभाया।[1]
फ़िल्मी सफ़र
वर्ष 1955 में "राज कपूर" की फ़िल्म 'श्री 420' के गीत 'ईचक दाना बीचक दाना' में एक कोरस लड़की की भूमिका मिली थी साधना को, उस वक़्त वो 15 साल की थीं, दरअसल साधना को वह एक विज्ञापन कपनी ने अपने उत्पादकों के लिए मौक़ा दिया था। इन्हें भारत की पहली सिंधी फ़िल्म 'अबाणा' (1958) में काम करने का मौक़ा मिला जिसमें उन्होंने अभिनेत्री शीला रमानी की छोटी बहन की भूमिका निभाई थी और इस फ़िल्म के लिए इन्हें 1 रुपए की टोकन राशि का भुगतान किया गया था। इस सिंधी ख़ूबसूरत बाला को सशधर मुखर्जी ने देखा, जो उस वक़्त बहुत बड़े फ़िल्मकार थे। सशधर मुखर्जी को अपने बेटे जॉय मुखर्जी के लिए एक हिरोइन के लिए नये चेहरे की तलाश कर रहे थे।
'साधना कट' हेयर स्टाइल
वर्ष 1960 में "लव इन शिमला" रिलीज़ हुई, इस फ़िल्म के निर्देशक थे आर.के. नैयर, और उन्होंने ही साधना को नया लुक दिया "साधना कट"। दरअसल साधना का माथा बहुत चौड़ा था उसे कवर किया गया बालों से, उस स्टाईल का नाम ही पड़ गया "साधना कट" । 1961 में एक और "हिट" फ़िल्म हम दोनों में देव आनंद के साथ इस B/W फ़िल्म को रंगीन किया गया था और 2011 में फिर से रिलीज़ किया गया था। 1962 में वह फिर से निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा असली-नकली में देव आनंद के साथ थीं।[2]
रंगीन फ़िल्मों का दौर
1963 में, टेक्नीकलर फ़िल्म 'मेरे मेहबूब' एच. एस. रवैल द्वारा निर्देशित उनके फ़िल्मी कैरियर ब्लॉकबस्टर फ़िल्म थी। यह फ़िल्म 1963 की भी ब्लॉकबस्टर फ़िल्म थी और 1960 के दशक के शीर्ष 5 फ़िल्मों में स्थान पर रहीं। मेरे मेहबूब में निम्मी पहले साधना वाला रोल करने जा रही थी न जाने क्या सोच कर निम्मी ने साधना वाला रोल ठुकरा कर राजेंद्र कुमार की बहन वाला का रोल किया। साधना के बुर्के वाला सीन इंडियन क्लासिक में दर्ज है। साल 1964 में उनके डबल रोल की फ़िल्म रिलीज़ हुई जिसमें मनोज कुमार हीरो थे और फ़िल्म का नाम था "वो कौन थी"। सफेद साड़ी पहने महिला भूतनी का यह किरदार हिन्दुस्तानी सिनेमा में अमर हो गया। इस फ़िल्म से हिन्दुस्तानी सिनेमा को नया विलेन भी मिला जिसका नाम था 'प्रेम चोपड़ा'। साधना को लाज़वाब एक्टिंग के लिए प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में पहला फ़िल्मफेयर नामांकन भी मिला था। क्लासिक्स फ़िल्म वो कौन थी, मदन मोहन के लाज़वाब संगीत और लता मंगेशकर की लाज़वाब गायकी के लिए भी याद की जाती है। "नैना बरसे रिमझिम" का आज भी कोई जवाब नहीं है। इस फ़िल्म के लिए साधना को मोना लिसा की तरह मुस्कान के साथ 'शो डाट' कहा गया था। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर "हिट" थी। साल 1964 में साधना का नाम एक हिट से जुड़ा यह फ़िल्म थी राजकुमार, हीरो थे शम्मी कपूर। राजकुमार भी साल 1964 की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म थी। साल 1965 की मल्टी स्टार कास्ट की फ़िल्म 'वक़्त' रिलीज़ हुई जो इस साल की ब्लॉकबस्टर भी थी जिसमें राज कुमार सुनील दत्त, शशि कपूर, बलराज साहनी, अचला सचदेव और शर्मिला टैगोर जैसे सितारे थे। 'वक़्त' में साधना ने तंग चूड़ीदार- कुर्ता पहना जो इस पहले किसी भी हेरोइन ने नहीं पहना था। साल 1965 साधना के लिए एक और कामयाबी लाया था इसी साल रिलीज़ हुई रामानन्द सागर की "आरजू" जिसमें शंकर जयकिशन का लाजवाब संगीत और हसरत जयपुरी का लिखा यह गीत जो गाया था लता मंगेशकर ने "अजी रूठ कर अब कहाँ जायेगा" ने तहलका मचा दिया था। फ़िल्म "आरजू" में भी साधना ने अपनी स्टाईल को बरकरार रखा। साधना ने रहस्यमयी फ़िल्में 'मेरा साया' (1966) सुनील दत्त के साथ और 'अनीता' (1967) मनोज कुमार के साथ कीं। दोनों फ़िल्मों की हिरोइन साधना डबल रोल में थी, संगीतकार एक बार फिर मदन मोहन ही थे। फ़िल्म 'मेरा साया' का थीम सोंग "तू जहाँ जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा" और "नैनो में बदरा छाए" जैसे गीत आज भी दिल को छुते हैं। अनीता (1967) से कोरियोग्राफ़र सरोज खान को मौक़ा मिला था। सरोज खान उन दिनों के मशहूर डांस मास्टर सोहन लाल की सहायक थी, गाना था 'झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में' इस गाने को आवाज़ दी दी थी [आशा भोंसले]] ने। उस दौर में जब यह यह गाना स्क्रीन पर आता था तो दर्शक दीवाने हो जाते थे और परदे पर सिक्कों की बौछार शुरू हो जाती थी जिन्हें लुटने के लिए लोग आपस में लड़ जाते थे। इस फ़िल्म के गीत भी राजा मेंहदी अली खान ने लिखे थे। कहते हैं कि साधना को नजर लग गयी जिससे उन्हें थायरॉयड हो गया था। अपने ऊँचे फ़िल्मी कैरियर के बीच वो इलाज़ के लिए अमेरिका के बोस्टन चली गयी। अमेरिका से लौटने के बाद, वो फिर फ़िल्मी दुनिया में लौटी और कई कामयाब फ़िल्में उन्होंने की। इंतकाम (1969) में अभिनय किया, एक फूल माली इन दोनों फ़िल्मों के हीरो थे संजय ख़ान। बीमारी ने साधना का साथ नहीं छोड़ा अपनी बीमारी को छिपाने के लिए उन्होंने अपने गले में पट्टी बंधी अक्सर गले में दुपट्टा बांध लेती थी, यही साधना आइकन बन गया था और उस दौर की लड़कियों ने इसे भी फैशन के रूप में लिया था। साल 1974 में 'गीता मेरा नाम' रिलीज़ हुई जो उनकी आखिरी कमर्शियल हिट थी, इस फ़िल्म की निर्देशक स्वयं थी और इस फ़िल्म में भी उनका डबल रोल था। सुनील दत्त और फ़िरोज़ ख़ान हीरो थे। साधना की कई फ़िल्में बहुत देर से रिलीज़ हुई। 1970 के आस पास 'अमानत' को रिलीज़ होना था लेकिन वो 1975 में रिलीज़ हुई तब बहुत कुछ बदल चुका था। 1978 में 'महफ़िल' और 1994 में 'उल्फ़त की नयी मंजिलें'।[2]
पारिवारिक परिचय
साधना ने 6 मार्च, 1966 को निर्देशक आर.के. नैयर के साथ शादी कर ली जो 1995 में हमेशा के लिए उनका साथ छोड़ गये। इस शादी से साधना के पिता खुश नहीं थे। आर.के. नैयर दमे के मरीज़ थे। साधना के कोई संतान नहीं हुई। साधना की चचेरी बहन बबिता ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा। यह बात और है कि बबिता अपनी बहन से बहुत ज्यादा प्रभावित थी। लिहाजा उन्होंने ने भी साधना स्टाईल को अपनाया। बबिता ने फ़िल्म अभिनेता रंधीर कपूर से शादी कर फ़िल्मों को अलविदा कह दिया। अपने फ़िल्मी करियर को लेकर साधना बहुत संजीदा थीं।[2]
सम्मान और पुरस्कार
हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए, अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी (आईफा) द्वारा 2002 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है। कई हिंदी फ़िल्मों में उनके पिता का रोल उनके सगे चाचा हरी शिवदासानी ने किया था जो अभिनेत्री बबिता के पिता हैं।
प्रमुख फ़िल्में
1958 में साधना ने अपनी पहली सिंधी फ़िल्म 'अबाणा' की थी। इस फ़िल्म को करते समय उनकी आयु 16-17 वर्ष थी। अभिनेत्री शीला रमानी इस फ़िल्म की नायिका थीं और साधना ने इस फ़िल्म में उनकी छोटी बहन का किरदार निभाया था। उनकी देवआनंद के साथ एक फ़िल्म 'साजन की गलियाँ' कुछ कारणों से थियेटर तक नहीं पहुँच सकी और प्रदर्शित नहीं हो पाई। साधना ने कई कला फ़िल्मों में भी अभिनय किया। रोमांटिक और रहस्यमयी फ़िल्मों के अलावा उन्हें कला फ़िल्मों में भी बहुत सराहा गया। उनकी हेयर स्टाइल आज भी साधना कट के नाम से जानी जाती है। चूड़ीदार कुर्ता, शरारा, गरारा, कान में बड़े झुमके, बाली और लुभावनी मुस्कान यह सब साधना की विशिष्ट पहचान रही है। चार फ़िल्मों में साधना ने दोहरी भूमिका निभाई थी। साधना की जो बेहद कामयाब फ़िल्में रही है, उनमें 'आरज़ू', 'वक़्त', 'वो कौन थी', 'मेरा साया', 'हम दोनों', 'वंदना', 'अमानत', 'उल्फ़त', 'बदतमीज', 'इश्क पर ज़ोर नहीं', 'परख', 'प्रेमपत्र', 'गबन', 'एक फूल दो माली' और 'गीता मेरा नाम' आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।
फ़िल्म सूची
वर्ष | फ़िल्म | वर्ष | फ़िल्म |
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1955 | श्री 420[3] | 1958 | अबाणा[4] |
1960 | लव इन शिमला | 1960 | परख |
1961 | हम दोनों | 1962 | एक मुसाफिर एक हसीना |
1962 | प्रेम पत्र | 1962 | मन मौजी |
1962 | असली नकली | 1963 | मेरे मेहबूब |
1964 | वो कौन थी | 1964 | राजकुमार |
1964 | पिकनिक | 1964 | दूल्हा दुलहन |
1965 | वक़्त | 1965 | आरजू |
1966 | मेरा साया | 1967 | अनीता |
1968 | स्त्री[5] | 1969 | सच्चाई |
1969 | इंतकाम | 1969 | एक दो फूल माली |
1970 | इश्क पर ज़ोर नहीं | 1971 | आप आये बहार आई |
1972 | दिल दौलत दुनिया | 1973 | हम सब चोर हैं |
1974 | गीता मेरा नाम | 1974 | छोटे सरकार |
1974 | वंदना | 1975 | अमानत |
1978 | महफ़िल | 1987 | नफ़रत |
1988 | आख़िरी निश्चय | 1994 | उल्फ़त की नयी मंज़िलें |
प्रमुख नायक
साधना के प्रमुख नायकों में जॉय मुखर्जी, देव आनंद, सुनील दत्त, मनोज कुमार, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, राज कपूर, फ़िरोज़ ख़ान, शशि कपूर, किशोर कुमार, संजय ख़ान और वसंत चौधरी आदि का नाम आता है। इन दिनों साधना प्रशंसकों के बीच नहीं आती।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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