वाक्य
सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट हो, वाक्य कहलाता है। एक विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाला शब्द-समूह वाक्य कहलाता है। जैसे-
- श्याम दूध पी रहा है।
- यह कितना सुंदर उपवन है।
- ओह ! आज तो गरमी के कारण प्राण निकले जा रहे हैं।
ये सभी मुख से निकलने वाली सार्थक ध्वनियों के समूह हैं। अतः ये वाक्य हैं। वाक्य भाषा का चरम अवयव है।
वाक्य के अंग
वाक्य के दो अंग है:-
उद्देश्य
जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं; जैसे- अनुराग खेलता है। सचिन दौड़ता है। इन वाक्यों में 'अनुराग' और 'सचिन' के विषय में बताया गया है। अत: ये उद्देश्य हैं। इसके अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है जैसे- 'परिश्रम करने वाला व्यक्ति सदा सफल होता है।' इस वाक्य में कर्ता (व्यक्ति) का विस्तार 'परिश्रम करने वाला' है।
विधेय
वाक्य के जिस भाग में उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं; जैसे- अनुराग खेलता है। इस वाक्य में 'खेलता है' विधेय है। विधेय के विस्तार के अंतर्गत वाक्य के कर्ता (उद्देश्य) को अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है, जैसे- लंबे-लंबे बालों वाली लड़की अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई'। इस वाक्य में 'अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई' विधेय का विस्तार है तथा 'लंबे-लंबे बालों वाली लड़की' उद्देश्य का विस्तार है।
- उद्देश्य का विस्तार-
कई बार वाक्य में उसका परिचय देने वाले अन्य शब्द भी साथ आए होते हैं। ये अन्य शब्द उद्देश्य का विस्तार कहलाते हैं। जैसे-
- सुंदर पक्षी डाल पर बैठा है।
- काला साँप पेड़ के नीचे बैठा है।
इनमें सुंदर और काला शब्द उद्देश्य का विस्तार हैं। उद्देश्य में निम्नलिखित शब्द-भेदों का प्रयोग होता है-
- संज्ञा- घोड़ा भागता है।
- सर्वनाम- वह जाता है।
- विशेषण- विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है।
- क्रिया-विशेषण- (जिसका) भीतर-बाहर एक-सा हो।
- वाक्यांश- झूठ बोलना पाप है।
वाक्य के साधारण उद्देश्य में विशेषणादि जोड़कर उसका विस्तार करते हैं। उद्देश्य का विस्तार नीचे लिखे शब्दों के द्वारा प्रकट होता है-
- विशेषण से- अच्छा बालक आज्ञा का पालन करता है।
- संबंध कारक से- दर्शकों की भीड़ ने उसे घेर लिया।
- वाक्यांश से- काम सीखा हुआ कारीगर कठिनाई से मिलता है।
विधेय का विस्तार- मूल विधेय को पूर्ण करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है वे विधेय का विस्तार कहलाते हैं। जैसे-वह अपने पैन से लिखता है। इसमें अपने विधेय का विस्तार है। कर्म का विस्तार- इसी तरह कर्म का विस्तार हो सकता है। जैसे-मित्र, अच्छी पुस्तकें पढ़ो। इसमें अच्छी कर्म का विस्तार है। क्रिया का विस्तार- इसी तरह क्रिया का भी विस्तार हो सकता है। जैसे-श्रेय मन लगाकर पढ़ता है। मन लगाकर क्रिया का विस्तार है।[1]
वाक्य में अनिवार्य तत्व
वाक्य में निम्नलिखित छ: तत्त्व अनिवार्य हैं-
- सार्थकता
- योग्यता
- आकांक्षा
- निकटता
- पदक्रम
- अन्वय
- सार्थकता
वाक्य का कुछ न कुछ अर्थ अवश्य होता है। अत: इसमें सार्थक शब्दों का ही प्रयोग होता है।
- योग्यता
वाक्य में प्रयुक्त शब्दों में प्रसंग के अनुसार अपेक्षित अर्थ प्रकट करने की योग्यता होती है; जैसे- 'चाय खाई', यह वाक्य नहीं है क्योंकि चाय खाई नहीं जाती बल्कि पी जाती है।
- आकांक्षा
'आकांक्षा' का अर्थ है 'इच्छा', वाक्य अपने आप में पूरा होना चाहिए। उसमें किसी ऐसे शब्द की कमी नहीं होनी चाहिए जिसके कारण अर्थ की अभिव्यक्ति में अधूरापन लगे। जैसे पत्र लिखता है, इस वाक्य में क्रिया के कर्ता को जानने की इच्छा होगी। अत: पूर्ण वाक्य इस प्रकार होगा- राम पत्र लिखता है।
- निकटता
बोलते तथा लिखते समय वाक्य के शब्दों में परस्पर निकटता का होना बहुत आवश्यक है, रूक-रूक कर बोले या लिखे गए शब्द वाक्य नहीं बनाते। अत: वाक्य के पद निरंतर प्रवाह में पास-पास बोले या लिखे जाने चाहिए।
- पदक्रम
वाक्य में पदों का एक निश्चित क्रम होना चाहिए। 'सुहावनी है रात होती चाँदनी' इसमें पदों का क्रम व्यवस्थित न होने से इसे वाक्य नहीं मानेंगें। इसे इस प्रकार होना चाहिए- 'चाँदनी रात सुहावनी होती है'।
- अन्वय
अन्वय का अर्थ है- मेल। वाक्य में लिंग, वचन, पुरुष, काल, कारक आदि का क्रिया के साथ ठीक-ठीक मेल होना चाहिए; जैसे- 'बालक और बालिकाएँ गईं', इसमें कर्ता क्रिया अन्वय ठीक नहीं है। अत: शुद्ध वाक्य होगा 'बालक और बालिकाएँ गए'।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाक्य-प्रकरण (हिन्दी) (html) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 22 जनवरी, 2016।
संबंधित लेख