चंद्रशेखरसिंह सामंत
चंद्रशेखरसिंह सामंत (जन्म- 1835, पुरी, उड़ीसा; मृत्यु- 1904, पुरी) प्रसिद्ध भारतीय ज्योतिष थे। इनके पिता एक अच्छे विद्वान् थे, जिन्होंने इन्हें ज्योतिष का ज्ञान कराया था। चंद्रशेखरसिंह जी को उड़िया तथा संस्कृति का अच्छा ज्ञान प्राप्त था। ये बालकों के समान सरल स्वभाव के, अति धार्मिक तथा सत्यवादी थे। इन्होंने अपने सारे जीवन का परिश्रम, अर्थात् स्वरचित 'बृहद्ग्रंथ सिद्धांतदर्पण' भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर दिया था।
जन्म तथा शिक्षा
चंद्रशेखरसिंह सामंत का जन्म सन 1835 ई. में पुरी, उड़ीसा के पास की खंडपाड़ा नामक एक छोटी रियासत के राजवंश में हुआ था। कुछ वैधानिक कठिनाइयों के कारण राजगद्दी किसी अन्य को मिली। चंद्रशेखरसिंह सामंत ने अपना अधिकांश जीवन गरीबी में व्यतीत किया था। 'उड़िया साहित्य' के साथ-साथ इन्हें संस्कृत के व्याकरण, काव्य तथा साहित्य की उच्च शिक्षा मिली थी।[1]
ज्योतिष ग्रंथों का अध्ययन
चंद्रशेखरसिंह सामंत के पिता ने, जो स्वयं अच्छे विद्वान् थे, इन्हें ज्योतिष का ज्ञान कराया था। उड़िया और संस्कृत को छोड़ अन्य भाषाओं का ज्ञान इन्हें नहीं था और न ही उस समय छपी हुई पुस्तकें उपलब्ध थीं, परंतु ग्रह, नक्षत्र और तारों की विद्या ने इन्हें आकर्षित किया। फलत: ताड़पत्रों पर हस्तलिखित, गणित ज्योतिष के प्राचीन सिद्धांत ग्रंथों का इन्होंने अध्ययन आरंभ किया। इन्हें यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि इन ग्रंथों के कथनों और निरीक्षण से देखी हुई बातों में बड़ा भेद था। अत: इन्होंने आवश्यक सरल यंत्रों का स्वयं निर्माण किया तथा ग्रहों और नक्षत्रों के उदय, अस्त और गति का, बिना किसी दूरदर्शक यंत्र की सहायता के, निरीक्षण कर अपनी नापों और फलों को उड़िया लिपि तथा संस्कृत भाषा के लिखे 'सिद्धांतदर्पण' नामक ग्रंथों में नियमानुसार क्रमबद्ध किया।
यूरोपीय विद्वानों द्वारा प्रशंसा
भारतीय ज्योतिषियों में केवल चंद्रशेखर ही ऐसे थे, जिन्होंने चंद्रमा की गति के संबंध में स्वतंत्र तथा मौलिक रूप से चांद्र क्षोभ, विचरण और वार्षिक समीकार का पता लगाया। पहले के भारतीय ग्रंथों में इनका कहीं पता नहीं है। इन्होंने और लंबन की अधिक यथार्थ नाप भी ज्ञात की। बिना किसी दूरदर्शक की सहायता तथा गाँव में बनाए, सस्ते और सरल यंत्रों से ज्ञात की गई इनकी नापों की परिशुद्धता की भूरि-भूरि प्रशंसा यूरोपीय विद्वानों ने की है। 'मॉण्डर' के अनुसार- "यूरोपीय ज्योतिषियों द्वारा आधुनिक, बहूमूल्य एवं जटिल यंत्रों की सहायता से ज्ञात की हुई नापों और इनकी नापों में आश्चर्यजनक अत्यल्प अंतर है। यह अंतर बुध के नाक्षत्र काल में केवल 0.00007 दिन तथा शुक्र के नाक्षत्र काल में केवल 0.0028 दिन है। इनकी दी हुई ग्रहों की रविमार्ग (क्रांति वृत्त) से कक्षानति की नाप चाप की एक कला तक शुद्ध है।" इन बातों से इनके कार्य की महत्ता का ज्ञान होता है।[1]
निधन
ज्योतिष विद्या (फलित और गणित) से ग्रामवासियों की सेवा करते हुए, इन्होंने सारा जीवन गरीबी में साधुओं सा बिताया। ये बालकों के समान सरल स्वभाव के, अति धार्मिक तथा सत्यवादी थे। इन्होंने अपने सारे जीवन का परिश्रम, अर्थात् स्वरचित 'बृहद्ग्रंथ सिद्धांतदर्पण' जगन्नाथ जी को समर्पित किया था और उन्हीं की पुरी में सन 1904 में इन्होंने मोक्षलाभ प्राप्त किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 चंद्रशेखरसिंह सामंत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 अप्रैल, 2014।