राष्ट्रपति का अभिभाषण
भारत के राष्ट्रपति में सभी कार्यकारी शक्तियां निहित होती हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति की सहायता करती है तथा उन्हें सलाह देती है जो कि उस सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं। संविधान के अनुच्छेद 87 में ऐसी दो स्थितियों का उल्लेख किया गया है जब राष्ट्रपति द्वारा विशेष रूप से संसद के दोनों सदनों को संबोधित किया जाएगा। प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरुआत होने पर, जब निचले सदन की पहली बार बैठक होगी, राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा और लोकसभा, दोनों को संबोधित किया जाएगा। प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र की शुरुआत में भी राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों को संबोधित किया जाएगा।
अभिभाषण
राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकार की नीतिगत प्राथमिकताओं और आने वाले वर्ष की योजनाओं का अनिवार्य रूप से उल्लेख होता है। अभिभाषण सरकार के एजेंडा और दिशा का व्यापक फ्रेमवर्क प्रदान करता है।
400 साल पुरानी परंपरा
सदन को संबोधित करने की परंपरा भारतीय नहीं, बल्कि अंग्रेजों की है। ब्रिटिश पार्लियामेंट की वेबसाइट के मुताबिक़, सदन को संबोधित करने की परंपरा 16वीं सदी से भी ज्यादा पुरानी है। उस वक्त वहां के राजा या रानी सदन को संबोधित करती थीं। लेकिन, 1852 के बाद से हर साल ब्रिटेन में सदन को वहां की क्वीन संबोधित करती आ रही हैं। यही सिस्टम अंग्रेजों के साथ भारत में भी आया। 1919 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में 'भारत सरकार अधिनियम' पास किया।
सन 1919 में ही भारत राज्यसभा का गठन हुआ, लेकिन उसे उस समय ‘काउंसिल ऑफ स्टेट’ कहा जाता था। हालांकि, लोकसभा का इतिहास 1853 से शुरू होता है। शुरुआत में लोकसभा को ‘लेजिस्लेटिव काउंसिल’ कहा जाता था, जिसमें 12 सदस्य थे। आजादी के बाद 1950 से सत्र शुरू होने से पहले राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है। संविधान के आर्टिकल 86 (1) में इसका प्रावधान है। इसके तहत आम चुनावों के बाद के पहले और साल के पहले सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होती है और उसके बाद दोनों सदनों का काम शुरू होता है।[1]
दस देशों से ली गई बातें
15 अगस्त, 1947 में आजादी मिलने के बाद संविधान सभा का गठन हुआ, जिसके अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद थे। 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में संविधान पारित हुआ और 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ। हमारा संविधान 10 देशों के संविधान से मिलकर तैयार हुआ है। इन देशों में से कुछ न कुछ बातें हमारे संविधान में जोड़ी गईं। हमारी संसदीय प्रणाली ब्रिटेन से ली गई, इसलिए आज भी बहुत सारी संसदीय परंपराएं, जो ब्रिटेन में चलती हैं, वही हमारे यहां भी हैं। क्योंकि ब्रिटेन में सत्र की शुरुआत से पहले उसे किंग या क्वीन संबोधित करती थीं, इसलिए भारत में भी ऐसा ही होने लगा। इसके लिए संविधान में व्यवस्था की गई।
कॉजेस ऑफ समन
ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली में राजपरिवार का प्रमुख भारतीय संसदीय प्रणाली के राष्ट्रपति के बराबर होता है। ब्रिटेन में वहां के किंग या क्वीन को राष्ट्र प्रमुख का दर्जा दिया गया है। ब्रिटिश सिस्टम में किंग या क्वीन के भाषण को 'कॉजेस ऑफ समन' कहा जाता था। इसमें सेशन बुलाने का कारण बताया जाता था। पहले जब भी राजघराने को पैसे की जरूरत होती थी, तब वह सदन की बैठक बुलाते थे और इस बैठक को बुलाने का कारण बताते थे। लेकिन, धीरे-धीरे सरकार अपनी नीतियां, कार्यक्रम और उपलब्धियां भी बताने लगी, क्योंकि किंग या क्वीन का भाषण सरकार ही तैयार करती थी। भारत में भी ऐसा ही होता है। ब्रिटिश इंडिया के वक्त जब भारत में संवैधानिक संशोधन होने लगे तो यहां पर भी किंग/क्वीन की जगह गवर्नर जनरल या वायसराय सदन में भाषण देते थे। उसके बाद हमारे संविधान में भी इसे जोड़ा गया।
अभिभाषण को लेकर प्रावधान
संसद के किसी एक सदन या एक साथ दोनों सदनों के सामने राष्ट्रपति के अभिभाषण का प्रावधान संविधान में किया गया है। इसका प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1919 में किया गया था और 1921 से यह चला आ रहा है। राष्ट्रपति जो अभिभाषण देते हैं, वह सरकार ही तैयार करती है। संविधान के आर्टिकल 86 (1) में राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वे जब चाहें तब संसद के किसी एक सदन या दोनों सदनों में अभिभाषण दे सकते हैं और इसके लिए सदस्यों को बुला सकते हैं। हालांकि, आज तक इस आर्टिकल का इस्तेमाल नहीं हुआ है। संविधान के आर्टिकल 87 (1) में यह प्रावधान है कि आम चुनाव के बाद पहले सत्र और हर साल के पहले सत्र में संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति अभिभाषण देंगे।
महत्त्व
राष्ट्रपति का अभिभाषण संवैधानिक जरूरत है, क्योंकि उनके अभिभाषण के बिना सत्र शुरू नहीं हो सकता। संसद के दोनों सदनों में सालभर में तीन सत्र होते हैं।
- बजट सत्र
- मानसून सत्र
- शीतकालीन सत्र
साल में सबसे पहले बजट सत्र होता है। इसलिए राष्ट्रपति इसी सत्र में दोनों सदनों को संबोधित करते हैं। लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था। आजादी के बाद 1950 में जब संविधान लागू हुआ तो राष्ट्रपति को हर सत्र को संबोधित करना होता था, लेकिन बाद में इसमें संशोधन हुआ। संशोधन के बाद राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद के पहले सत्र और साल के पहले सत्र को ही संबोधित करने लगे। लोकसभा चुनावों के बाद हर सांसद की शपथ के बाद और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है। जब तक राष्ट्रपति दोनों सदनों में अभिभाषण नहीं दे देते, तब तक कोई अन्य कार्य नहीं किया जा सकता। वहीं, हर साल के पहले सत्र के पहले दिन ही राष्ट्रपति दोनों सदनों में अभिभाषण देते हैं।
संसद को इस बात को जानने का अधिकार है कि सरकार क्या कर रही है और क्या करने वाली है। इसलिए राष्ट्रपति संसद को संबोधित करते हैं और उसे सरकार की नीतियों और कामकाज के बारे में बताते हैं, क्योंकि राष्ट्रपति भी संसद का ही हिस्सा हैं। क्योंकि राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार ही तैयार करती है, इसलिए इसमें सरकार के अगले एक साल के कामकाज का ब्योरा भी रहता है।
अभिभाषण पर चर्चा
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद इस पर चर्चा होती है। इस चर्चा के लिए समय दोनों सदनों के अध्यक्ष तय करते हैं। लोकसभा के नियम 16 और राज्यसभा के नियम 14 के मुताबिक़, अध्यक्ष सदन के नेता या प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का समय तय करेगा। इसके बाद लोकसभा के नियम 17 के तहत, सदन का कोई सदस्य धन्यवाद प्रस्ताव पेश करता है, जिसका अनुमोदन कोई दूसरा सदस्य करता है। इसके बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होती है। सांसद धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधन की मांग भी कर सकते हैं। ये संशोधन उन विषयों के बारे में दिए जाते हैं, जिनका जिक्र राष्ट्रपति के अभिभाषण में किया गया हो या ऐसे विषयों पर भी दे सकते हैं जिनका जिक्र अभिभाषण में किया जाना चाहिए था।
लोकसभा के नियम 20 (1) और राज्यसभा के नियम 18 के तहत, धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देने का अधिकार सरकार के पास है। प्रधानमंत्री चाहें तो खुद या सरकार की तरफ से कोई मंत्री चर्चा के बाद जवाब दे सकता है। भले ही वे चर्चा के दौरान सदन में मौजूद रहे हों या न रहे हों। प्रधानमंत्री या किसी मंत्री की तरफ से सरकार का जवाब दिए जाने के बाद सदन के अन्य सदस्य को उत्तर देने का अधिकार नहीं होता।
सवाल उठाने का अधिकार नहीं
दोनों सदनों के किसी भी सदस्य को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है। लेकिन, धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदस्य बहस कर सकते हैं। इस दौरान सदस्य ऐसे विषय नहीं उठा सकते, जिसका सीधा संबंध सरकार से नहीं है। इसके साथ ही बहस के दौरान राष्ट्रपति का नाम भी नहीं ले सकते, क्योंकि अभिभाषण का प्रस्ताव सरकार तैयार करती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राष्ट्रपति के अभिभाषण की परंपरा देश में कैसे शुरू हुई और क्या है इसका इतिहास? (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 29 जनवरी, 2020।