हिम्मतराव बावस्कर
डॉ. हिम्मतराव बावस्कर (अंग्रेज़ी: Dr. Himmatrao Bawaskar, जन्म- 3 मार्च, 1951) महाराष्ट्र के चिकित्सक हैं। उन्हें भारत सरकार ने साल 2022 में पद्म श्री से सम्मानित किया है। डॉ. हिम्मतराव बावस्कर को लाल बिच्छू से होने वाली मौतों के बारे में शोध के लिए जाना जाता है। वह महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड में रहते हैं। डॉ. हिम्मतराव बावस्कर के 51 शोध को साल 1982 में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल 'द लांसेट' में प्रकाशित किया जा चुका है। उन्हें चिकित्सा क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए भी जाना जाता है।
बचपन
डॉ. हिम्मतराव बावस्कर महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव दानापुर में 3 मार्च, 1951 में पैदा हुए थे। खेती करने वाले उनके परिवार की माली हालत भी कुछ ज्यादा ठीक नहीं थी। उन्हें प्यार से हिम्मतराव के नाम से बुलाया जाता था। जिसे बाद में उन्होंने साबित करके भी दिखाया। उनके पिता को लगा कि सिर्फ शिक्षा के जरिए हैं उनके परिवार का भला हो सकता है। गांव में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार उनके पिता को बैरिस्टर के नाम से भी जाना जाता था।[1]
शिक्षा
डॉ. हिम्मतराव ने मेडिकल की पढ़ाई करने के पहले कई अलग-अलग तरह की नौकरियां भी कीं। ताकि वह अपनी पढ़ाई को जारी रख सकें। एमबीबीएस में एडमिशन लेने के बाद भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई थी। कई बार उन्हें डिप्रेशन का भी शिकार होना पड़ा, लेकिन उन्होंने तमाम मुश्किलों से लड़ते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी। पढ़ाई के बाद ग्रामीण परिवेश से आने वाले डॉ. बावस्कर ने गांव को ही अपना कार्य स्थल बनाने का फैसला किया।
डॉक्टर हिम्मतराव बावस्कर ने महाराष्ट्र के नागपुर जिले से एमबीबीएस की पढ़ाई की है। जिसके बाद में रायगढ़ जिले की महाड तहसील में मौजूद एक सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर बतौर डॉक्टर काम करने लगे थे। इस अस्पताल में उन्होंने 40 साल अपनी सेवाएं दीं। खुद को मिले पद्म श्री सम्मान पर उन्होंने कहा कि मैं अपने तमाम मरीजों का भी शुक्रिया अदा करता हूं, जिन्होंने मुझ पर भरोसा जताया। उन्होंने बताया कि 40 साल पहले तक महाड एक दूरदराज का इलाका माना जाता था। शहरी भाग से कटे होने की वजह से यह ज्यादातर लोग अंधविश्वास में डूबे रहते थे लेकिन जब उन्होंने मुझ पर भरोसा किया, तब मेडिकल जगत के और भी लोग मुझसे जुड़े।
आवश्यकता ही अविष्कार की जननी
रायगढ़ के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बतौर डॉक्टर नौकरी शुरू करने के बाद डॉ. हिम्मतराव बावस्कर को इलाके में बिच्छू के डंक से होने वाली मौतों के बारे में पहली बार पता चला। इस घटना ने उन्हें भी हैरान किया था। क्योंकि इस इलाके में बिच्छू के डंक से होने वाली मौतें बेहद आम बात थी। मौतों के पीछे सबसे बड़ी वजह लोगों के बीच फैला अंधविश्वास था। जिसकी वजह से वह अस्पताल न आकर झाड़-फूंक करवाने में लग जाते थे और इसी वजह से अक्सर उनकी जान भी चली जाती थी। इस घटना के बाद उन्होंने ऐसी मौतों की जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया और लोगों को बिच्छू के डंक का इलाज करवाने के लिए भी प्रेरित करना शुरू किया।
अस्पताल के बेहद सीमित संसाधनों में लोगों के प्रति अच्छी भावना के साथ उन्होंने कई रातें बिना सोए हुए, मरीजों के साथ गुजारी। इस दौरान उन्होंने मरीजों को होने वाली तकलीफ खास तौर पर उल्टी, हाइपरटेंशन, बेहद पसीना होना, सर्दी लगना और दर्द जैसे लक्षणों को नोटिस करना शुरू किया। इस प्रकार उन्होंने बिच्छू के डंक से होने वाली मौतों की वजह का पता लगाया। शुरुआत में उन्होंने ट्रेडिशनल तरीके के जरिए इलाज करने का प्रयास किया लेकिन उसका कोई ज्यादा फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने अपनी रिपोर्ट को हाफ़क़ीन इंस्टीट्यूट के पास आगे की जांच के लिए भेजा।[1]
मरीजों के लिए समर्पित
डॉ. हिम्मतराव बावस्कर अपने मरीजों के लिए कितना ज्यादा समर्पित हैं। इसका पता इस बात से चलता है कि साल 1983 में जब उन्हें अपने पिता की मौत का टेलीग्राम मिला तो अंतिम संस्कार में शामिल होने की जगह वे अपने मरीज के साथ रुके रहे और उसका इलाज किया। दरअसल बिच्छू के डंक से पीड़ित एक 8 साल के बच्चे को उनके अस्पताल में भर्ती किया गया था। बच्चा दर्द से तड़प रहा था। डॉक्टर बावस्कर ने बच्चे के पिता को काफी समझा-बुझाकर, उनकी मंजूरी से बच्चे का इलाज शुरू किया था। वे बच्चे के हर अपडेट पर वह पल-पल नजर रख रहे थे। घंटों के इलाज के बाद आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और बच्चे की हालत में कुछ सुधार होना शुरू हुआ। तकरीबन 24 घंटे बाद उन्होंने बच्चे को खतरे से बाहर लाकर खड़ा कर दिया था। इस घटना के बाद से उन्होंने इलाके के लोगों का भरोसा भी जीत लिया था।
दवा सुंघाकर कोरोना मरीजों का इलाज
'द टाइम्स ऑफ इंडिया' से बात करते हुए डॉ. हिम्मतराव बावस्कर ने बताया था कि 2020 में देश में कोरोना की पहली लहर के दौरान उन्होंने 7 मरीजों को मेथिलीन ब्लू सुंघाकर ठीक किया था। ये लोग बूढ़े थे और पहले ही कई तरह की बीमारियों से पीड़ित थे। इन मरीजों को कोरोना के इलाज में काम आने वाली एंटी वायरल दवाओं जैसे- रेमडेसिविर, फेविपिरवीर और टोसीलिजुमाब से भी आराम नहीं मिला था।[2]
डॉ. बावस्कर के अनुसार, मेथिलीन ब्लू कारगर साबित होने पर उन्होंने 2021 में आई कोरोना की दूसरी लहर में 200 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया। अपने रिसर्च पेपर में डॉ. बावस्कर ने दावा किया कि मेथिलीन ब्लू के उपयोग से कोरोना मरीजों का अच्छे से इलाज हुआ और उनमें से एक की भी मौत नहीं हुई। इन लोगों में पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशन्स भी नहीं हुए।
क्या है मेथिलीन ब्लू?
ये एक प्रकार का क्लोराइड साॅल्ट है। ये आमतौर पर डाई में इस्तेमाल की जाती है। इसे मलेरिया की दवा हाइड्रोक्लोरोक्विन और एंटीपारासाइटिक आइवरमेक्टिन में भी यूज करते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटीडिप्रेसेंट गुण भी होते हैं। ये एक किफायती दवा है। बाजार में 10 रुपए में 5 एमएल मेथिलीन ब्लू खरीदी जा सकती है।
कैसे काम करती है?
डॉ. हिम्मतराव बावस्कर के रिसर्च पेपर के अनुसार, ब्रैडीकिनिन नाम का अमीनो एसिड कोरोना के गंभीर संक्रमण को बढ़ाने में मदद करता है और हमारी इम्यूनिटी को खराब करता है। मेथिलीन ब्लू ब्रैडीकिनिन के प्रोडक्शन को रोकने का काम करती है। इसके अलावा इस दवा से मरीजों के शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा भी सही रहती है। भारत में सदियों से मेथिलीन ब्लू का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन ज्यादा मात्रा में ये दवा जहर का काम कर सकती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 बिच्छुओं के खौफ से 'हिम्मत' देने वाले डॉक्टर बावस्कर कौन (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 30 मई, 2022।
- ↑ सदियों पुरानी दवा से कोरोना का इलाज (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 30 मई, 2022।