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− | + | '''ईशापुर''' [[मथुरा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) में स्थित एक ग्राम है। यह ग्राम [[यमुना नदी]] के पार और [[विश्राम घाट मथुरा|विश्राम घाट]] के ठीक सामने स्थित है। 1910 ई. में यहाँ से एक ही पत्थर का बना एक सुन्दर 24 फुट ऊँचा यूपस्तंभ मिला था। स्तंभ के निचले चौकोर भाग पर [[कुषाण काल]] (द्वितीय शती ई.) की [[ब्राह्मी लिपि]] में निम्न लेख खुदा है- | |
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:'सिद्धम्-महाराजस्य राजातिराजस्य देवेपुत्रस्यषाहेर्व्वासिष्कस्य राज्य संवत्सरे (च)-तुर्विशे 24 ग्रिष्मा-(म) मासे चतुर्त्थे 4 दिवसे त्रिंशे 30 अस्यांपुर्व्वायां रुद्रिलपुत्रेण द्रोणलेन ब्राह्मणेन भारद्वाज सगोत्रेण माणच्छंदोगेन इष्ट्वा सत्रेन द्वादशरात्रेण यूप: प्रतिष्ठापित: प्रीयतामग्न्य:'। | :'सिद्धम्-महाराजस्य राजातिराजस्य देवेपुत्रस्यषाहेर्व्वासिष्कस्य राज्य संवत्सरे (च)-तुर्विशे 24 ग्रिष्मा-(म) मासे चतुर्त्थे 4 दिवसे त्रिंशे 30 अस्यांपुर्व्वायां रुद्रिलपुत्रेण द्रोणलेन ब्राह्मणेन भारद्वाज सगोत्रेण माणच्छंदोगेन इष्ट्वा सत्रेन द्वादशरात्रेण यूप: प्रतिष्ठापित: प्रीयतामग्न्य:'। | ||
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:'कल्याण हो, महाराजाधिराज देवपुत्र पाहिवासिष्क के चौबीसवें राज्यवर्ष में, ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास में, 30वें दिन, रुद्रिल के पुत्र भारद्वाजगोत्रीय [[ब्राह्मण]] द्रोणल ने जो माणछन्द का अनुयायी है, द्वादश-रात्रियज्ञ को करके इस स्थान पर यह यूप प्रतिष्ठापित किया। [[अग्नि देवता]] प्रसन्न हों'। | :'कल्याण हो, महाराजाधिराज देवपुत्र पाहिवासिष्क के चौबीसवें राज्यवर्ष में, ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास में, 30वें दिन, रुद्रिल के पुत्र भारद्वाजगोत्रीय [[ब्राह्मण]] द्रोणल ने जो माणछन्द का अनुयायी है, द्वादश-रात्रियज्ञ को करके इस स्थान पर यह यूप प्रतिष्ठापित किया। [[अग्नि देवता]] प्रसन्न हों'। | ||
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12:46, 13 दिसम्बर 2011 का अवतरण
ईशापुर मथुरा (उत्तर प्रदेश) में स्थित एक ग्राम है। यह ग्राम यमुना नदी के पार और विश्राम घाट के ठीक सामने स्थित है। 1910 ई. में यहाँ से एक ही पत्थर का बना एक सुन्दर 24 फुट ऊँचा यूपस्तंभ मिला था। स्तंभ के निचले चौकोर भाग पर कुषाण काल (द्वितीय शती ई.) की ब्राह्मी लिपि में निम्न लेख खुदा है-
- 'सिद्धम्-महाराजस्य राजातिराजस्य देवेपुत्रस्यषाहेर्व्वासिष्कस्य राज्य संवत्सरे (च)-तुर्विशे 24 ग्रिष्मा-(म) मासे चतुर्त्थे 4 दिवसे त्रिंशे 30 अस्यांपुर्व्वायां रुद्रिलपुत्रेण द्रोणलेन ब्राह्मणेन भारद्वाज सगोत्रेण माणच्छंदोगेन इष्ट्वा सत्रेन द्वादशरात्रेण यूप: प्रतिष्ठापित: प्रीयतामग्न्य:'।
अर्थात्
- 'कल्याण हो, महाराजाधिराज देवपुत्र पाहिवासिष्क के चौबीसवें राज्यवर्ष में, ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास में, 30वें दिन, रुद्रिल के पुत्र भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मण द्रोणल ने जो माणछन्द का अनुयायी है, द्वादश-रात्रियज्ञ को करके इस स्थान पर यह यूप प्रतिष्ठापित किया। अग्नि देवता प्रसन्न हों'।