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− | * शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और 1885 में मद्रास आ गये। उनकी प्रतिभा देखकर 1888 में उन्हें सरकारी वकील | + | * शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और 1885 में मद्रास आ गये। उनकी प्रतिभा देखकर 1888 में उन्हें सरकारी वकील बना दिया गया। |
− | * 1884 ई. में पत्नी का देहांत हो जाने के बाद से सुब्रह्मण्य [[धर्म]] और [[दर्शन]] की ओर आकृष्ट हुए और | + | * [[1895]] में मद्रास हाईकोर्ट का जज नियुक्त किये गये। इस पद पर वे [[1907]] ई. तक रहे। |
− | * राजनीतिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए मद्रास में जो 'महाजन सभा' स्थापित हुई, सुब्रह्मण्य उसके प्रमुख व्यक्तियों में थे। 1885 ई. में [[मुम्बई]] में हुए [[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस]] की प्रथम स्थापना अधिवेशन में मद्रास प्रान्त के प्रतिनिधियों का उन्होंने ही नेतृत्व किया था। | + | * 1884 ई. में पत्नी का देहांत हो जाने के बाद से सुब्रह्मण्य [[धर्म]] और [[दर्शन]] की ओर आकृष्ट हुए और [[थियोसोफ़िकल सोसाइटी]] से उनका सम्पर्क हुआ जो जीवन-भर बना रहा। |
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− | * सुब्रह्मण्य कुछ समय तक [[मद्रास विश्वविद्यालय]] के कुलपति रहे। उन्होंने एनी बीसेंट को [[वाराणसी]] में सेंट्रल हिंदू स्कूल की स्थापना में भी सहायता पहुँचाई। | + | * राजनीतिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए मद्रास में जो 'महाजन सभा' स्थापित हुई, सुब्रह्मण्य उसके प्रमुख व्यक्तियों में थे। |
+ | * 1885 ई. में [[मुम्बई]] में हुए [[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस]] की प्रथम स्थापना अधिवेशन में मद्रास प्रान्त के प्रतिनिधियों का उन्होंने ही नेतृत्व किया था। | ||
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+ | * होमरूल लीग की गतिविधियों के कारण जब एनी बीसेंट मद्रास में नज़रबंद कर ली गईं तो सुब्रह्मण्य ने उनकी रिहाई में मदद करने के लिए [[अमेरिका]] के [[राष्ट्रपति]] विल्सन को पत्र लिखा था। इस पर वायसराय चेम्सफोर्ड ने जब उनकी आलोचना की तो अय्यर ने ब्रिटिश सरकार की दी हुई 'सर' की उपाधि लौटा दी थी। | ||
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12:43, 23 सितम्बर 2013 का अवतरण
एस. सुब्रह्मण्य अय्यर
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पूरा नाम | सर सुब्बियर सुब्रह्मण्य अय्यर |
अन्य नाम | एस. मनी अय्यर |
जन्म | 1 अक्टूबर, 1842 |
जन्म भूमि | मद्रास |
मृत्यु | 5 दिसंबर, 1924 |
मृत्यु स्थान | मद्रास |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | वकील, न्यायाधीश, शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता |
विशेष योगदान | हिंदू तीर्थों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने 'धर्म संरक्षण सभा' बनाई और धार्मिक साहित्य प्रकाशित करने के लिए 'शुद्ध धर्म मंडली' की स्थापना की। |
अन्य जानकारी | एनी बेसेंट ने जब होमरूल लीग की स्थापना की तो वे इस संस्था के मानद अध्यक्ष बनाए गए। |
सर सुब्बियर सुब्रह्मण्य अय्यर (अंग्रेज़ी: Sir Subbier Subramania Iyer, जन्म: 1 अक्टूबर, 1842 – मृत्यु: 5 दिसंबर, 1924) की गणना अपने समय के दक्षिण भारत के प्रमुख नेताओं में होती है। प्रादेशिक कौंसिल के सदस्य के रूप में, वकील के रूप में, एक जज के रूप में, काँग्रेस जन के रूप में, शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लगभग 30 वर्षों तक वे सार्वजनिक जीवन में व्यस्त रहे। वे एस. मनी अय्यर के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे।
जीवन परिचय
- सुब्रह्मण्य अय्यर का जन्म 1 अक्टूबर, 1842 ई. को मदुरा ज़िले, मद्रास राज्य में हुआ था।
- शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और 1885 में मद्रास आ गये। उनकी प्रतिभा देखकर 1888 में उन्हें सरकारी वकील बना दिया गया।
- 1895 में मद्रास हाईकोर्ट का जज नियुक्त किये गये। इस पद पर वे 1907 ई. तक रहे।
- 1884 ई. में पत्नी का देहांत हो जाने के बाद से सुब्रह्मण्य धर्म और दर्शन की ओर आकृष्ट हुए और थियोसोफ़िकल सोसाइटी से उनका सम्पर्क हुआ जो जीवन-भर बना रहा।
- वे अनेक वर्षों तक थियोसोफ़िकल सोसाइटी के उपाध्यक्ष भी रहे।
- राजनीतिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए मद्रास में जो 'महाजन सभा' स्थापित हुई, सुब्रह्मण्य उसके प्रमुख व्यक्तियों में थे।
- 1885 ई. में मुम्बई में हुए भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की प्रथम स्थापना अधिवेशन में मद्रास प्रान्त के प्रतिनिधियों का उन्होंने ही नेतृत्व किया था।
- एनी बेसेंट ने जब होमरूल लीग की स्थापना की तो वे इस संस्था के मानद अध्यक्ष बनाए गए।
- होमरूल लीग की गतिविधियों के कारण जब एनी बीसेंट मद्रास में नज़रबंद कर ली गईं तो सुब्रह्मण्य ने उनकी रिहाई में मदद करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन को पत्र लिखा था। इस पर वायसराय चेम्सफोर्ड ने जब उनकी आलोचना की तो अय्यर ने ब्रिटिश सरकार की दी हुई 'सर' की उपाधि लौटा दी थी।
- सुब्रह्मण्य कुछ समय तक मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
- उन्होंने एनी बीसेंट को वाराणसी में सेंट्रल हिंदू स्कूल की स्थापना में भी सहायता पहुँचाई।
- सुब्रह्मण्य संस्कृत की शिक्षा पर जोर देते थे।
- हिंदू तीर्थों की दशा सुधारने के लिए उन्होंने 'धर्म संरक्षण सभा' बनाई और धार्मिक साहित्य प्रकाशित करने के लिए 'शुद्ध धर्म मंडली' की स्थापना की।
- 1915 में गाँधीजी के भारत लौटने के बाद मद्रास में उनका स्वागत करने के लिए जो सभा आयोजित की गई उसकी अध्यक्षता एस. मनी अय्यर ने ही की थी।
- 5 दिसम्बर, 1924 को सुब्रह्मण्य अय्यर का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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