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'''पिप्पलिवन''' [[बुद्ध]] के समकालीन [[मौर्य वंश|मौर्य वंशीय]] [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] की राजधानी था। सम्भवत: [[युवानच्वांग]] द्वारा उल्लिखित न्यग्रोधवन यही है<ref>(देखें वाटर्स 2, पृष्ठ 23-24)।</ref> [[फ़ाह्यान]] ने यहाँ के [[स्तूप]] की स्थिति [[कुशीनगर]] से 12 योजन पश्चिम की ओर बताई है। पिप्पलिवन [[भारतीय इतिहास]] में [[मौर्य वंश]] के राजाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। पिप्पलिवन को पहले पिप्पलिवाहन भी कहा जाता था।
 
'''पिप्पलिवन''' [[बुद्ध]] के समकालीन [[मौर्य वंश|मौर्य वंशीय]] [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] की राजधानी था। सम्भवत: [[युवानच्वांग]] द्वारा उल्लिखित न्यग्रोधवन यही है<ref>(देखें वाटर्स 2, पृष्ठ 23-24)।</ref> [[फ़ाह्यान]] ने यहाँ के [[स्तूप]] की स्थिति [[कुशीनगर]] से 12 योजन पश्चिम की ओर बताई है। पिप्पलिवन [[भारतीय इतिहास]] में [[मौर्य वंश]] के राजाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। पिप्पलिवन को पहले पिप्पलिवाहन भी कहा जाता था।
 
;इतिहास
 
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[[इतिहास]] में पिप्पलिवन (पीपल वनों) के निवासी आदिम [[क्षत्रिय]] मौर्य जाति में [[चंद्रगुप्त]] और [[अशोक]] जैसे महान सम्राट हुए। मौर्य, शाक्य-कोलियों के सहोदर वंशज माने गये हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि [[बस्ती ज़िला|ज़िला बस्ती]], [[उत्तर प्रदेश]] में स्थित 'पिपरिया' या '[[पिपरावा]]' नामक स्थान ही पिप्पलिवन है। यहीं के प्राचीन ढूह में से एक मृदभांड प्राप्त हुआ था, जिसके [[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]] [[अभिलेख]] से ज्ञात होता है कि उसमें [[बुद्ध]] के भस्मावशेष निहित थे।
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[[इतिहास]] में पिप्पलिवन (पीपल वनों) के निवासी आदिम [[क्षत्रिय]] मौर्य जाति में [[चंद्रगुप्त]] और [[अशोक]] जैसे महान् सम्राट हुए। मौर्य, शाक्य-कोलियों के सहोदर वंशज माने गये हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि [[बस्ती ज़िला|ज़िला बस्ती]], [[उत्तर प्रदेश]] में स्थित 'पिपरिया' या '[[पिपरावा]]' नामक स्थान ही पिप्पलिवन है। यहीं के प्राचीन ढूह में से एक मृदभांड प्राप्त हुआ था, जिसके [[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]] [[अभिलेख]] से ज्ञात होता है कि उसमें [[बुद्ध]] के भस्मावशेष निहित थे।
 
;बुद्ध से सम्बन्धित
 
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[[बौद्ध साहित्य]] की कथाओं से सूचित होता है कि बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् उनकी अस्थि-भस्म को आठ भागों में बाँट दिया गया था। प्रत्येक भाग को लेकर उसको एक महास्तूप में सुरक्षित किया गया था। इस प्रकार के आठ [[स्तूप]] बनवाए गये थे। इनमें से अंगार स्तूप पिप्पलिवन में था।
 
[[बौद्ध साहित्य]] की कथाओं से सूचित होता है कि बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् उनकी अस्थि-भस्म को आठ भागों में बाँट दिया गया था। प्रत्येक भाग को लेकर उसको एक महास्तूप में सुरक्षित किया गया था। इस प्रकार के आठ [[स्तूप]] बनवाए गये थे। इनमें से अंगार स्तूप पिप्पलिवन में था।

11:18, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

पिप्पलिवन बुद्ध के समकालीन मौर्य वंशीय क्षत्रियों की राजधानी था। सम्भवत: युवानच्वांग द्वारा उल्लिखित न्यग्रोधवन यही है[1] फ़ाह्यान ने यहाँ के स्तूप की स्थिति कुशीनगर से 12 योजन पश्चिम की ओर बताई है। पिप्पलिवन भारतीय इतिहास में मौर्य वंश के राजाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। पिप्पलिवन को पहले पिप्पलिवाहन भी कहा जाता था।

इतिहास

इतिहास में पिप्पलिवन (पीपल वनों) के निवासी आदिम क्षत्रिय मौर्य जाति में चंद्रगुप्त और अशोक जैसे महान् सम्राट हुए। मौर्य, शाक्य-कोलियों के सहोदर वंशज माने गये हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि ज़िला बस्ती, उत्तर प्रदेश में स्थित 'पिपरिया' या 'पिपरावा' नामक स्थान ही पिप्पलिवन है। यहीं के प्राचीन ढूह में से एक मृदभांड प्राप्त हुआ था, जिसके ब्राह्मी अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसमें बुद्ध के भस्मावशेष निहित थे।

बुद्ध से सम्बन्धित

बौद्ध साहित्य की कथाओं से सूचित होता है कि बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् उनकी अस्थि-भस्म को आठ भागों में बाँट दिया गया था। प्रत्येक भाग को लेकर उसको एक महास्तूप में सुरक्षित किया गया था। इस प्रकार के आठ स्तूप बनवाए गये थे। इनमें से अंगार स्तूप पिप्पलिवन में था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (देखें वाटर्स 2, पृष्ठ 23-24)।
  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

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