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'''ओरछा''' [[मध्य प्रदेश]] के [[बुन्देलखण्ड]] सम्भाग में [[बेतवा नदी]] के किनारे स्थित आधुनिक [[मध्य काल]] में परिहार राजाओं की राजधानी थी।  
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'''ओरछा''' [[मध्य प्रदेश]] के [[बुन्देलखण्ड]] सम्भाग में [[बेतवा नदी]] के किनारे स्थित है। [[मध्य काल]] में यहाँ परिहार राजाओं की राजधानी थी। [[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] में यहाँ के राजा मधुकर शाह थे, जिन्होंने मुग़लों के साथ कई युद्ध किए थे। [[औरंगज़ेब]] के राज्य काल में [[छत्रसाल]] की शक्ति बुन्देलखण्ड में बड़ी हुई थी। ओरछा के राजाओं ने कई [[हिन्दी]] कवियों को आश्रय प्रदान किया था। आज भी यहाँ पुरानी इमारतों के [[खंडहर]] बिखरे पड़े हैं।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
परिहार राजाओं के बाद यह [[चन्देल वंश|चन्देलों]] के अधिकार में रहीं। चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया। उसके बाद में बुंदेलों ने ओरछा को राजधानी बनाया और इसने पुनः अपना गौरव प्राप्त किया। राजा रुद्रप्रताप (1501-03ई.) वर्तमान ओरछा को बसाने वाले थे। 1531 ई. में इस नगर की स्थापना की गई और क़िले के निर्माण में आठ वर्ष का समय लगा। ओरछा के महल भारतीचन्द के समय 1539 ई. में बनकर पूर्ण हुए और राजधानी भी इसी वर्ष पुरानी राजधानी गढ़कुंडार से ओरछा लायी गयी।  
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परिहार राजाओं के बाद ओरछा [[चन्देल वंश|चन्देलों]] के अधिकार में रहा था। चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया। उसके बाद में [[बुन्देला|बुंदेलों]] ने ओरछा को राजधानी बनाया और इसने पुनः अपना गौरव प्राप्त किया। राजा रुद्रप्रताप (1501-1531 ई.) वर्तमान ओरछा को बसाने वाले थे। 1531 ई. में इस नगर की स्थापना की गई और क़िले के निर्माण में आठ वर्ष का समय लगा। ओरछा के महल भारतीचन्द के समय 1539 ई. में बनकर पूर्ण हुए और राजधानी भी इसी वर्ष पुरानी राजधानी गढ़कुंडार से ओरछा लायी गयी। [[अकबर]] के समय यहाँ के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुग़ल सम्राट ने कई युद्ध किए थे। [[जहाँगीर]] ने [[वीरसिंहदेव बुंदेला]] को, जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे, पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी। वीरसिंहदेव ने ही अकबर के शासन काल में जहाँगीर के कहने से अकबर के विद्वान् दरबारी [[अबुल फज़ल|अबुलफजल]] की हत्या करवा दी थी। [[शाहजहाँ]] ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयाँ लड़ीं। किंतु अंत में [[जुझार सिंह]] को ओरछा का राजा स्वीकार कर लिया गया। [[बुन्देलखण्ड]] की लोक-कथाओं का नायक हरदौल वीरसिंहदेव का छोटा पुत्र एवं जुझार सिंह का छोटा भाई था। [[औरंगज़ेब]] के राज्यकाल में [[छत्रसाल]] की शक्ति बुंदेलखंड में बढ़ी हुई थी। ओरछा की रियासत वर्तमान काल तक बुंदेलखंड में अपना विशेष महत्त्व रखती आई है। यहाँ के राजाओं ने [[हिन्दी]] के [[कवि|कवियों]] को सदा प्रश्रय दिया है। महाकवि [[केशवदास]] वीरसिंहदेव के राजकवि थे।[[चित्र:Orchha.jpg|thumb|left|ओरछा का एक दृश्य (1818)]]
[[चित्र:Orchha-Raj-Mahal.jpg|thumb|left|राजमहल, ओरछा]]
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==स्थापना==
[[अकबर]] के समय यहां के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुग़ल सम्राट के कई युद्ध किए थे। [[जहांगीर]] ने [[वीरसिंहदेव बुंदेला]] को जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी। वीरसिंहदेव ने ही अकबर के शासनकाल में जहांगीर के कहने से अकबर के विद्वान् दरबारी [[अबुल फज़ल|अबुलफजल]] की हत्या करवा दी थी। [[शाहजहां]] ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयां लड़ीं। किंतु अंत में जुझारसिंह को ओरछा का राजा स्वीकार कर लिया गया। [[बुन्देलखण्ड]] की लोक-कथाओं का नायक हरदौल वीरसिंहदेव का छोटा पुत्र एवं जुझारसिंह का छोटा भाई था। [[औरंगजेब]] के राज्यकाल में [[छत्रसाल]] की शक्त् बुंदेलखंड में बढ़ी हुई थी। ओरछा की रियासत वर्तमान काल तक बुंदेलखंड में अपना विशेष महत्त्व रखती आई है। यहाँ के राजाओं ने [[हिन्दी]] के [[कवि|कवियों]] को सदा प्रश्रय दिया है। महाकवि [[केशवदास]] वीरसिंहदेव के राजकवि थे।  
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ओरछा की स्थापना संबंधी जनश्रुतियां भी काफ़ी रोचक हैं। एक जनश्रुति के अनुसार महाराज रुद्रप्रताप ओरछा के समीपस्थ राज कुंडार से आखेट की तलाश में घूमते हुए महर्षि तुंग के आश्रम तुङ्गारण्य तक आ गए। तभी उन्हें प्यास लगी और वे मछली भवन दरवाजे से [[बावली]] में उतरे, किन्तु जल अत्यधिक गंदा था। उनके साथियों ने महाराज को बताया कि थोड़ी दूर पर पावन सलिला [[बेतवा नदी|बेतवा]] (बेत्रवती नदी) बहती है वहीं चलकर जल पिया जाए। महाराज नदी पर गए, अंजलि में लेकर जल पिया। प्यास से तृप्ति पाकर लौटते समय महर्षि तुंग के दर्शन किए। ऋषि ने महाराज से याचना की कि सावन तीज को बावली के समीप मेला लगता है। वहां पर चोर भोले-भाले दुकानदारों को परेशान किया करते हैं, यदि आप रक्षा करें तो अति कृपा होगी। महाराज ने विचार किया कि यहां बावली के समीप तो गोंड राज्य की सीमा लगी हुई है इसलिए बिना नगर बसाए रक्षा करना संभव न हो सकेगा। इस पर ऋषि ने अनुरोध किया कि कुछ भी हो आपको यह पावन कार्य करना ही होगा। महाराज ने उन्हें रक्षा करने का वचन दे दिया और अपने साथियों को आदेश दिया कि इस स्थान पर विराट दुर्ग की नींव डाली जाए। नगर का नाम क्या रखना चाहिये यह तय नहीं हो पा रहा था। सभी पुन: ऋषि के समीप पहुंचे और इस विषय में उनकी राय जाननी चाही। उस समय वे स्नानादि से निवृत्त होकर लौट रहे थे। संयोग से जिस समय महाराज ने प्रश्न किया कि नगर का नाम क्या होना चाहिए उसी समय ऋषि को ठोकर लगी और उनके मुंह से निकला ‘ओच्छा'। यह सुनकर महाराज यहां से लौट आए और ‘ओच्छा’ नाम से नगर बसाना प्रारंभ कर दिया। यही ‘ओच्छा’ शब्द आगे चलकर परिमार्जित हुआ और ‘ओरछा’ में परिवर्तित हो गया। <ref name="ओरछा ">{{cite web |url=http://dainiktribuneonline.com/2010/09/%E0%A4%93%E0%A4%B0%E0%A4%9B%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%AC-%E0%A4%A8/|title=ओरछा : स्थापत्य कला का अजब नमूना|accessmonthday=14 फ़रवरी|accessyear= 2015|last=सिंह |first=डॉ. विभा |authorlink= |format= |publisher=दैनिक ट्रिब्यून |language=हिन्दी}}</ref>
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==स्थापत्य कला==
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[[चित्र:Lakshmi-Narayana-Temple-Orchha.jpg|लक्ष्मीनारायण मंदिर, ओरछा (1869)|thumb]]
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ओरछा अपने में [[भारतीय संस्कृति]] का प्राचीन इतिहास छुपाए हुए अपूर्व शांति और नीरवता में स्थित हज़ारों दर्शकों को देश-विदेश से अपनी ओर आकृष्ट करता रहता है। ओरछा प्रारंभ से ही वीरों और कलाकारों की जन्मस्थली रहा है। महाराज भारती चंद्र मधुकर शाह, रामशहवीर देव और [[चंपतराय]] ने जहां अपनी वीरता और शौर्यपूर्ण कार्यों से संपूर्ण [[भारत]] में ख्याति अर्जित की, वहीं कविप्रिया एवं रसिकप्रिया जैसे उच्च कोटि के [[रस]] से विभोर काव्यों का सृजन करने वाले कवीन्द्र केशव तथा अपने रूप-लावण्य, विद्वत्ता गीत माधुर्य एवं अनुपम नृत्य से भारत के शहंशाह [[अकबर]] को भी अपने समक्ष नतमस्तक होने के लिए विवश कर देने वाली राय प्रवीन जैसी नृत्यांगना एवं कवयित्री को  अपनी कोख से जन्म देने वाली ओरछा की धरती आज भी स्वयं पर गौरवान्वित है। [[कालिंजर]] के महान् सेनापति [[शेरशाह सूरी]] को यहां के बहादुरों ने परास्त कर विजय प्राप्त की थी। जब अकबर ने अपने सर्वाधिक विश्वासपात्र सेनापति [[अबुल फ़ज़ल]] को डेढ़ लाख सैनिकों सहित [[बुंदेलखंड]] को फ़तह करने के लिए भेजा तो ओरछा के शासक वीरसिंह देव ने मोर्चा लेकर उसे खत्म कर दिया। अकबर जैसे महान् सम्राट के छक्के छुड़ा दिए। यह तथ्य भी इतिहास विदित है कि यदि वीरसिंह देव ने जहांगीर की सहायता नहीं की होती, तो वह भारत का सम्राट कभी नहीं बन सकता था। ओरछा के प्राचीन महल और इमारतें आज भी इन महान् शूरवीरों की वीरता और शौर्यपूर्ण कार्यों के मूक गीत गाते हुए अब तक हुए उत्थान और पतन की गवाही दे रहे हैं। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक ओरछा की मनोहारी प्रकृति-छटा एवं ऐतिहासिकता के प्रमाण को देखकर इतने मोहित हो जाते हैं कि यहां अनिंद्य दृश्यों की छवि उनके मानस पटल पर से जीवन पर्यन्त मिट नहीं पाती। प्राचीन नदी [[बेतवा नदी|बेतवा]] कल-कल का प्यारा सा निनाद करती हुई संपूर्ण ओरछा को अपने आगोश में समेटे यहां की प्राकृतिक सुन्दरता में चार चांद लगा रही है।<br />
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काल के कठोर आघातों से स्वयं की रक्षा करते हुए यहां के [[जहाँगीर महल, ओरछा|जहाँगीर महल]], [[शीशमहल, ओरछा|शीशमहल]] और [[राजमहल, ओरछा|राजमहल]] आदि पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। [[वास्तु कला]], [[स्थापत्य कला]] एवं नैपुण्य के कारण इनका स्थान भारत की उन गिनी-चुनी इमारतों में है जिन पर यहां के पुरातत्व विभाग को गर्व रहा है। ओरछा में अनेक दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल हैं जिन्हें देखने के लिए यात्रियों का मन लालायित रहता है।<ref name="ओरछा "/>
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[[चित्र:Laxmi-Narayan-Temple-Orchha-1.jpg|thumb|लक्ष्मीनारायण मंदिर, ओरछा]]
 
==ऐतिहासिक इमारतें==
 
==ऐतिहासिक इमारतें==
ओरछे में जिन पुरानी इमारतों के खंडहर हैं, उनमें मुख्य हैं- जहांगीर-महल जिसे वीरसिंहदेव ने जहांगीर के लिए बनवाया था यद्यपि जहांगीर इस महल में वीरसिंहदेव के जीवनकाल में कभी ठहर सका, केशवदास का भवन, प्रवीण राय का भवन (प्रवीण राय, वीरसिंह देव के दरबार की प्रसिद्ध गायिका थी जिसकी केशवदास ने अपने ग्रंथों में बहुत प्रशंसा की है)।
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ओरछा में जिन पुरानी इमारतों के [[खंडहर]] हैं, उनमें मुख्य हैं-
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===जहाँगीर महल===
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[[चित्र:Jahangir-Mahal-Orchha.jpg|left|thumb|250px|[[जहाँगीर महल, ओरछा]]]]
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{{Main|जहाँगीर महल, ओरछा}}
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जहाँगीर महल को वीरसिंहदेव ने [[जहाँगीर]] के लिए बनवाया था, यद्यपि जहाँगीर इस महल में वीरसिंहदेव के जीवन काल में कभी नहीं ठहर सका। जहांगीर तथा वीरसिंह देव की प्रगाढ़ मैत्री इतिहास प्रसिद्ध है। महल का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर था किन्तु बाद में पश्चिम की ओर से एक प्रवेश द्वार बनवाया गया है। आजकल पूर्व वाला प्रवेश द्वार बंद रहता है तथा पश्चिम वाला प्रवेश द्वार पर्यटकों के आवागमन के लिए खोल दिया गया है। पर्यटकों के विशेष आग्रह पर पुरातत्व विभाग के कर्मचारीगण पूर्व वाला प्रवेश द्वार भी कभी खोल देते हैं जहां से मनोहारी दृश्यों का अवलोकन कर मन प्रकृति में डूब सा जाता है। यहां से नदी, पहाड़ एवं ओरछा के सघन वनों के ऐसे रम्य दृश्य दिखाई देते हैं कि पर्यटकों की सारी थकान स्वत: ही दूर हो जाती है।
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====शीशमहल====
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{{Main|शीशमहल, ओरछा}}
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शीशमहल आजकल [[मध्य प्रदेश]] पर्यटन के अधीन है। निगम ने इसकी काया पलट करने के दृष्टिकोण से काफ़ी कार्य किया है। संपूर्ण महल की पुताई व पेंटिंग आदि भी करायी गयी है जिसमें कई लाख रुपया व्यय हुआ है। महल के प्रांगण के नीचे विशालतम घर है। स्थापत्य कला एवं वास्तुकला का यह महल सर्वाधिक सृजनात्मक एवं उत्कृष्ट उदाहरण है।
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====राजमहल====
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{{Main|राजमहल, ओरछा}}
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अपने प्राचीन वैभव का निरंतर बखान करता हुआ ओरछा का विशाल राजमहल अपनी मिसाल है। इस ऐतिहासिक महल का निर्माण भी महाराज वीरसिंह जू देव ने सन् 1616 ई. में करवाया था। इस महल की सुदृढ़ता एवं आकर्षक भव्यता उस समय के कारीगरों एवं शिल्पियों की अद्भुत प्रतिभा व अनूठी निर्माण कला का प्रमाण है। महल के अंदर अनगिनत विशाल कक्ष हैं। इस महल के दरबारे- आम की भव्यता देखकर तत्कालीन शासकों के शाही ठाठ-बाट का सहज आभास हो उठता है। इस महल के नीचे विशालतम घर है बहुत समय से तलघरों की सफाई न होने के कारण वे खतरनाक हो गए हैं।
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==कैसे पहुँचें==
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[[दिल्ली]], [[भोपाल]], [[इंदौर]] और [[मुंबई]] से इंडियन एयरलाइंस की नियमित उड़ानें [[ग्वालियर]] को जोड़ती हैं, जो नजदीकी हवाई अड्डा है। यह दिल्ली-मुंबई और [[दिल्ली]]-[[चेन्नई]] मुख्य रेलवे लाइनों पर स्थित है। [[उत्तर प्रदेश]] में [[झांसी]] (19 कि.मी.) ओरछा के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन है।<ref>{{cite web |url=http://www.mp.gov.in/web/guest/tourism3|title=ओरछा |accessmonthday=24 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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;हवाई मार्ग
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नजदीकी एयरपोर्ट [[खजुराहो]] है, जो यहां से क़रीब 180 किलोमीटर दूर है।
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; रेल मार्ग
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नजदीक का रेलवे स्टेशन [[झांसी]] है, जो यहां से 16 किलोमीटर दूर है। [[दिल्ली]] के अलावा अन्य शहरों से भी ओरछा रेल मार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है।
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; सड़क मार्ग
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झांसी से यहां ऑटो और टैक्सी बदलते हुए पहुंचा जा सकता है। खजुराहो से यहां के लिए नियमित बसें हैं। [[ग्वालियर]] से भी हर समय ओरछा के लिए बसें चलती हैं।
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==वीथिका==
 
==वीथिका==
 
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चित्र:Orchha.jpg|ओरछा का एक दृश्य (1818)
 
 
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चित्र:Orchha-madhya-pradesh.jpg|ओरछा, [[मध्य प्रदेश]]
 
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चित्र:Orchha-madhya-pradesh-03.jpg|ओरछा, [[मध्य प्रदेश]]
चित्र:Lakshmi-Narayana-Temple-Orchha.jpg|लक्ष्मीनारायण मंदिर, ओरछा (1869)
 
 
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चित्र:Orchha-1.jpg|ओरछा का एक दृश्य (1818)
 
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चित्र:Orchha-madhya-pradesh-2.jpg|ओरछा, [[मध्य प्रदेश]]
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<references/>
 
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==संबंधित लेख==
 
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12:12, 1 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

ओरछा
राजमहल, ओरछा
विवरण 'ओरछा' मध्य प्रदेश में बेतवा नदी के किनारे स्थित है। मुग़ल सम्राट बादशाह अकबर के समय में यहाँ के राजा मधुकर शाह थे।
राज्य मध्य प्रदेश
स्थापना 1531 ई.
हवाई अड्डा ग्वालियर
संबंधित लेख वीरसिंहदेव बुंदेला, छत्रसाल, जहाँगीर, औरंगज़ेब


अन्य जानकारी ओरछा की रियासत वर्तमान काल तक बुंदेलखंड में अपना विशेष महत्त्व रखती आई है। यहाँ के राजाओं ने हिन्दी के कवियों को सदा प्रश्रय दिया है। महाकवि केशवदास वीरसिंहदेव के राजकवि थे।

ओरछा मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड सम्भाग में बेतवा नदी के किनारे स्थित है। मध्य काल में यहाँ परिहार राजाओं की राजधानी थी। मुग़ल बादशाह अकबर में यहाँ के राजा मधुकर शाह थे, जिन्होंने मुग़लों के साथ कई युद्ध किए थे। औरंगज़ेब के राज्य काल में छत्रसाल की शक्ति बुन्देलखण्ड में बड़ी हुई थी। ओरछा के राजाओं ने कई हिन्दी कवियों को आश्रय प्रदान किया था। आज भी यहाँ पुरानी इमारतों के खंडहर बिखरे पड़े हैं।

इतिहास

परिहार राजाओं के बाद ओरछा चन्देलों के अधिकार में रहा था। चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया। उसके बाद में बुंदेलों ने ओरछा को राजधानी बनाया और इसने पुनः अपना गौरव प्राप्त किया। राजा रुद्रप्रताप (1501-1531 ई.) वर्तमान ओरछा को बसाने वाले थे। 1531 ई. में इस नगर की स्थापना की गई और क़िले के निर्माण में आठ वर्ष का समय लगा। ओरछा के महल भारतीचन्द के समय 1539 ई. में बनकर पूर्ण हुए और राजधानी भी इसी वर्ष पुरानी राजधानी गढ़कुंडार से ओरछा लायी गयी। अकबर के समय यहाँ के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुग़ल सम्राट ने कई युद्ध किए थे। जहाँगीर ने वीरसिंहदेव बुंदेला को, जो ओरछा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे, पूरे ओरछा राज्य की गद्दी दी थी। वीरसिंहदेव ने ही अकबर के शासन काल में जहाँगीर के कहने से अकबर के विद्वान् दरबारी अबुलफजल की हत्या करवा दी थी। शाहजहाँ ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयाँ लड़ीं। किंतु अंत में जुझार सिंह को ओरछा का राजा स्वीकार कर लिया गया। बुन्देलखण्ड की लोक-कथाओं का नायक हरदौल वीरसिंहदेव का छोटा पुत्र एवं जुझार सिंह का छोटा भाई था। औरंगज़ेब के राज्यकाल में छत्रसाल की शक्ति बुंदेलखंड में बढ़ी हुई थी। ओरछा की रियासत वर्तमान काल तक बुंदेलखंड में अपना विशेष महत्त्व रखती आई है। यहाँ के राजाओं ने हिन्दी के कवियों को सदा प्रश्रय दिया है। महाकवि केशवदास वीरसिंहदेव के राजकवि थे।

ओरछा का एक दृश्य (1818)

स्थापना

ओरछा की स्थापना संबंधी जनश्रुतियां भी काफ़ी रोचक हैं। एक जनश्रुति के अनुसार महाराज रुद्रप्रताप ओरछा के समीपस्थ राज कुंडार से आखेट की तलाश में घूमते हुए महर्षि तुंग के आश्रम तुङ्गारण्य तक आ गए। तभी उन्हें प्यास लगी और वे मछली भवन दरवाजे से बावली में उतरे, किन्तु जल अत्यधिक गंदा था। उनके साथियों ने महाराज को बताया कि थोड़ी दूर पर पावन सलिला बेतवा (बेत्रवती नदी) बहती है वहीं चलकर जल पिया जाए। महाराज नदी पर गए, अंजलि में लेकर जल पिया। प्यास से तृप्ति पाकर लौटते समय महर्षि तुंग के दर्शन किए। ऋषि ने महाराज से याचना की कि सावन तीज को बावली के समीप मेला लगता है। वहां पर चोर भोले-भाले दुकानदारों को परेशान किया करते हैं, यदि आप रक्षा करें तो अति कृपा होगी। महाराज ने विचार किया कि यहां बावली के समीप तो गोंड राज्य की सीमा लगी हुई है इसलिए बिना नगर बसाए रक्षा करना संभव न हो सकेगा। इस पर ऋषि ने अनुरोध किया कि कुछ भी हो आपको यह पावन कार्य करना ही होगा। महाराज ने उन्हें रक्षा करने का वचन दे दिया और अपने साथियों को आदेश दिया कि इस स्थान पर विराट दुर्ग की नींव डाली जाए। नगर का नाम क्या रखना चाहिये यह तय नहीं हो पा रहा था। सभी पुन: ऋषि के समीप पहुंचे और इस विषय में उनकी राय जाननी चाही। उस समय वे स्नानादि से निवृत्त होकर लौट रहे थे। संयोग से जिस समय महाराज ने प्रश्न किया कि नगर का नाम क्या होना चाहिए उसी समय ऋषि को ठोकर लगी और उनके मुंह से निकला ‘ओच्छा'। यह सुनकर महाराज यहां से लौट आए और ‘ओच्छा’ नाम से नगर बसाना प्रारंभ कर दिया। यही ‘ओच्छा’ शब्द आगे चलकर परिमार्जित हुआ और ‘ओरछा’ में परिवर्तित हो गया। [1]

स्थापत्य कला

लक्ष्मीनारायण मंदिर, ओरछा (1869)

ओरछा अपने में भारतीय संस्कृति का प्राचीन इतिहास छुपाए हुए अपूर्व शांति और नीरवता में स्थित हज़ारों दर्शकों को देश-विदेश से अपनी ओर आकृष्ट करता रहता है। ओरछा प्रारंभ से ही वीरों और कलाकारों की जन्मस्थली रहा है। महाराज भारती चंद्र मधुकर शाह, रामशहवीर देव और चंपतराय ने जहां अपनी वीरता और शौर्यपूर्ण कार्यों से संपूर्ण भारत में ख्याति अर्जित की, वहीं कविप्रिया एवं रसिकप्रिया जैसे उच्च कोटि के रस से विभोर काव्यों का सृजन करने वाले कवीन्द्र केशव तथा अपने रूप-लावण्य, विद्वत्ता गीत माधुर्य एवं अनुपम नृत्य से भारत के शहंशाह अकबर को भी अपने समक्ष नतमस्तक होने के लिए विवश कर देने वाली राय प्रवीन जैसी नृत्यांगना एवं कवयित्री को अपनी कोख से जन्म देने वाली ओरछा की धरती आज भी स्वयं पर गौरवान्वित है। कालिंजर के महान् सेनापति शेरशाह सूरी को यहां के बहादुरों ने परास्त कर विजय प्राप्त की थी। जब अकबर ने अपने सर्वाधिक विश्वासपात्र सेनापति अबुल फ़ज़ल को डेढ़ लाख सैनिकों सहित बुंदेलखंड को फ़तह करने के लिए भेजा तो ओरछा के शासक वीरसिंह देव ने मोर्चा लेकर उसे खत्म कर दिया। अकबर जैसे महान् सम्राट के छक्के छुड़ा दिए। यह तथ्य भी इतिहास विदित है कि यदि वीरसिंह देव ने जहांगीर की सहायता नहीं की होती, तो वह भारत का सम्राट कभी नहीं बन सकता था। ओरछा के प्राचीन महल और इमारतें आज भी इन महान् शूरवीरों की वीरता और शौर्यपूर्ण कार्यों के मूक गीत गाते हुए अब तक हुए उत्थान और पतन की गवाही दे रहे हैं। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक ओरछा की मनोहारी प्रकृति-छटा एवं ऐतिहासिकता के प्रमाण को देखकर इतने मोहित हो जाते हैं कि यहां अनिंद्य दृश्यों की छवि उनके मानस पटल पर से जीवन पर्यन्त मिट नहीं पाती। प्राचीन नदी बेतवा कल-कल का प्यारा सा निनाद करती हुई संपूर्ण ओरछा को अपने आगोश में समेटे यहां की प्राकृतिक सुन्दरता में चार चांद लगा रही है।
काल के कठोर आघातों से स्वयं की रक्षा करते हुए यहां के जहाँगीर महल, शीशमहल और राजमहल आदि पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। वास्तु कला, स्थापत्य कला एवं नैपुण्य के कारण इनका स्थान भारत की उन गिनी-चुनी इमारतों में है जिन पर यहां के पुरातत्व विभाग को गर्व रहा है। ओरछा में अनेक दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल हैं जिन्हें देखने के लिए यात्रियों का मन लालायित रहता है।[1]

लक्ष्मीनारायण मंदिर, ओरछा

ऐतिहासिक इमारतें

ओरछा में जिन पुरानी इमारतों के खंडहर हैं, उनमें मुख्य हैं-

जहाँगीर महल

जहाँगीर महल को वीरसिंहदेव ने जहाँगीर के लिए बनवाया था, यद्यपि जहाँगीर इस महल में वीरसिंहदेव के जीवन काल में कभी नहीं ठहर सका। जहांगीर तथा वीरसिंह देव की प्रगाढ़ मैत्री इतिहास प्रसिद्ध है। महल का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर था किन्तु बाद में पश्चिम की ओर से एक प्रवेश द्वार बनवाया गया है। आजकल पूर्व वाला प्रवेश द्वार बंद रहता है तथा पश्चिम वाला प्रवेश द्वार पर्यटकों के आवागमन के लिए खोल दिया गया है। पर्यटकों के विशेष आग्रह पर पुरातत्व विभाग के कर्मचारीगण पूर्व वाला प्रवेश द्वार भी कभी खोल देते हैं जहां से मनोहारी दृश्यों का अवलोकन कर मन प्रकृति में डूब सा जाता है। यहां से नदी, पहाड़ एवं ओरछा के सघन वनों के ऐसे रम्य दृश्य दिखाई देते हैं कि पर्यटकों की सारी थकान स्वत: ही दूर हो जाती है।

शीशमहल

शीशमहल आजकल मध्य प्रदेश पर्यटन के अधीन है। निगम ने इसकी काया पलट करने के दृष्टिकोण से काफ़ी कार्य किया है। संपूर्ण महल की पुताई व पेंटिंग आदि भी करायी गयी है जिसमें कई लाख रुपया व्यय हुआ है। महल के प्रांगण के नीचे विशालतम घर है। स्थापत्य कला एवं वास्तुकला का यह महल सर्वाधिक सृजनात्मक एवं उत्कृष्ट उदाहरण है।

राजमहल

अपने प्राचीन वैभव का निरंतर बखान करता हुआ ओरछा का विशाल राजमहल अपनी मिसाल है। इस ऐतिहासिक महल का निर्माण भी महाराज वीरसिंह जू देव ने सन् 1616 ई. में करवाया था। इस महल की सुदृढ़ता एवं आकर्षक भव्यता उस समय के कारीगरों एवं शिल्पियों की अद्भुत प्रतिभा व अनूठी निर्माण कला का प्रमाण है। महल के अंदर अनगिनत विशाल कक्ष हैं। इस महल के दरबारे- आम की भव्यता देखकर तत्कालीन शासकों के शाही ठाठ-बाट का सहज आभास हो उठता है। इस महल के नीचे विशालतम घर है बहुत समय से तलघरों की सफाई न होने के कारण वे खतरनाक हो गए हैं।

कैसे पहुँचें

दिल्ली, भोपाल, इंदौर और मुंबई से इंडियन एयरलाइंस की नियमित उड़ानें ग्वालियर को जोड़ती हैं, जो नजदीकी हवाई अड्डा है। यह दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-चेन्नई मुख्य रेलवे लाइनों पर स्थित है। उत्तर प्रदेश में झांसी (19 कि.मी.) ओरछा के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन है।[2]

हवाई मार्ग

नजदीकी एयरपोर्ट खजुराहो है, जो यहां से क़रीब 180 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग

नजदीक का रेलवे स्टेशन झांसी है, जो यहां से 16 किलोमीटर दूर है। दिल्ली के अलावा अन्य शहरों से भी ओरछा रेल मार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग

झांसी से यहां ऑटो और टैक्सी बदलते हुए पहुंचा जा सकता है। खजुराहो से यहां के लिए नियमित बसें हैं। ग्वालियर से भी हर समय ओरछा के लिए बसें चलती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 सिंह, डॉ. विभा। ओरछा : स्थापत्य कला का अजब नमूना (हिन्दी) दैनिक ट्रिब्यून। अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2015।
  2. ओरछा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 जुलाई, 2013।

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