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विजय मर्चेन्ट का जन्म 12 अक्टूबर सन 1911 को तत्कालीन बम्बई प्रेसीडेंसी, [[महाराष्ट्र]] के एक धनी परिवार में हुआ था। जब वह मात्र 15 वर्ष के थे, तब उन्होंने एक मैच में दो शतक बना दिए। 5 फुट 7 इंच की ऊंचाई हो जाने पर उन्होंने अपना फुटवर्क सुधारते हुए गेंद के बेहतरीन ‘कट’ लगाने आरम्भ कर दिए। उन्होंने [[1929]] से [[1946]] के बीच बम्बई टूर्नामेंट्स में ‘हिन्दूज’ का प्रतिनिधित्व किया। [[1933]] से [[1952]] में अपने रिटायरमेंट तक विजय मर्चेन्ट ने रणजी ट्राफी में [[बम्बई]] का प्रतिनिधित्व किया। उनके प्रथम श्रेणी मैचों के 44 शतकों में 11 में 200 से अधिक रन बने थे, जिनमें 9 [[भारत]] के ब्राबोर्न स्टेडियम में बने थे।<ref name="a">{{cite web |url=https://www.kaiseaurkya.com/vijay-merchant-biography-in-hindi-language/|title=विजय मर्चेन्ट का जीवन परिचय |accessmonthday=30 सितम्बर|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= कैसे और क्या|language= हिंदी}}</ref> | विजय मर्चेन्ट का जन्म 12 अक्टूबर सन 1911 को तत्कालीन बम्बई प्रेसीडेंसी, [[महाराष्ट्र]] के एक धनी परिवार में हुआ था। जब वह मात्र 15 वर्ष के थे, तब उन्होंने एक मैच में दो शतक बना दिए। 5 फुट 7 इंच की ऊंचाई हो जाने पर उन्होंने अपना फुटवर्क सुधारते हुए गेंद के बेहतरीन ‘कट’ लगाने आरम्भ कर दिए। उन्होंने [[1929]] से [[1946]] के बीच बम्बई टूर्नामेंट्स में ‘हिन्दूज’ का प्रतिनिधित्व किया। [[1933]] से [[1952]] में अपने रिटायरमेंट तक विजय मर्चेन्ट ने रणजी ट्राफी में [[बम्बई]] का प्रतिनिधित्व किया। उनके प्रथम श्रेणी मैचों के 44 शतकों में 11 में 200 से अधिक रन बने थे, जिनमें 9 [[भारत]] के ब्राबोर्न स्टेडियम में बने थे।<ref name="a">{{cite web |url=https://www.kaiseaurkya.com/vijay-merchant-biography-in-hindi-language/|title=विजय मर्चेन्ट का जीवन परिचय |accessmonthday=30 सितम्बर|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= कैसे और क्या|language= हिंदी}}</ref> | ||
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10:34, 4 नवम्बर 2016 का अवतरण
विजय मर्चेन्ट
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पूरा नाम | विजयसिंह माधवजी ठाकरसे |
अन्य नाम | विजय मर्चेन्ट |
जन्म | 12 अक्टूबर, 1911 |
जन्म भूमि | मुम्बई, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 27 अक्टूबर, 1987 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | क्रिकेट |
पुरस्कार-उपाधि | ‘विजडन क्रिकेटर आफ द ईयर’ (1937) |
प्रसिद्धि | भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर |
अन्य जानकारी | विजय मर्चेन्ट अपनी पारियों की फिल्म बनाते थे, फिर उन्हें गौर से स्टडी करते थे। यद्यपि उन्होंने प्रारम्भिक दिनों में खेलने की कोई कोचिंग नहीं ली थी, परन्तु वह एल.पी. राय की स्टाइल-भरी बल्लेबाजी से बहुत प्रभावित थे। |
विजयसिंह माधवजी ठाकरसे (अंग्रेज़ी: Vijay Madhavji Thakersey, जन्म- 12 अक्टूबर, 1911, मुम्बई, महाराष्ट्र; मृत्यु- 27 अक्टूबर, 1987) डॉन ब्रैडमैन के ज़माने के महान क्रिकेट खिलाड़ी थे, जितने आज सचिन तेंदुलकर हैं। उनका वास्तविक नाम 'विजयसिंह माधवजी ठाकरसे' था। यदि उनके प्रथम श्रेणी के आकड़ों पर नजर डालें तो वह डॉन ब्रैडमैन के बाद अगले नम्बर पर आते हैं। उनका इन मैचों में औसत 71.64 रहा था।
परिचय
विजय मर्चेन्ट का जन्म 12 अक्टूबर सन 1911 को तत्कालीन बम्बई प्रेसीडेंसी, महाराष्ट्र के एक धनी परिवार में हुआ था। जब वह मात्र 15 वर्ष के थे, तब उन्होंने एक मैच में दो शतक बना दिए। 5 फुट 7 इंच की ऊंचाई हो जाने पर उन्होंने अपना फुटवर्क सुधारते हुए गेंद के बेहतरीन ‘कट’ लगाने आरम्भ कर दिए। उन्होंने 1929 से 1946 के बीच बम्बई टूर्नामेंट्स में ‘हिन्दूज’ का प्रतिनिधित्व किया। 1933 से 1952 में अपने रिटायरमेंट तक विजय मर्चेन्ट ने रणजी ट्राफी में बम्बई का प्रतिनिधित्व किया। उनके प्रथम श्रेणी मैचों के 44 शतकों में 11 में 200 से अधिक रन बने थे, जिनमें 9 भारत के ब्राबोर्न स्टेडियम में बने थे।[1]
क्रिकेट में सफलता
क्रिकेट में सफलता का पैमाना ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी डॉन ब्रैडमैन को माना जाता है, जो क्रिकेट के बादशाह समझे जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया में 1948 के बाद से प्रति वर्ष हर सफल खिलाड़ी को डॉन ब्रैडमैन घोषित किया जाता है। वेस्टइंडीज के जार्ज हेडली को ‘ब्लैक ब्रैडमैन’ कहा जाता है। यद्यपि सुनील गावस्कर ने क्रिकेट में अनेकों रिकॉर्ड तोड़े, परन्तु वह ब्रैडमैन से कुछ पीछे रह गए। लेकिन भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी विजय मर्चेन्ट ने प्रथम श्रेणी मैचों में अपना औसत 71.64 बना लिया जो केवल डॉन ब्रैडमैन के बाद दूसरे नम्बर पर आता है। यद्यपि विजय मर्चेन्ट के टैस्ट मैचों में आंकड़े काफी अलग हैं, जिनमें उनका औसत 47.72 है। घरेलू पिच पर उन्होंने हजारों रन बना डाले। उन्होंने इंग्लैंड के दो दौरों पर, जो दस वर्ष के अन्तराल पर हुए, बेहद शानदार खेल प्रदर्शन किया और कुल मिलाकर 4000 रन बना लिए। भारतीय घरेलू स्तर पर भी उन्होंने रणजी ट्रॉफी मैच में प्रथम श्रेणी मैचों से बेहतर प्रदर्शन किया और 47 पारियों में उनका 98.75 का औसत रहा।
रनों का कारनामा
विजय मर्चेन्ट ने एक बार 359 का स्कोर बनाया था और 10 घंटा 45 मिनट की पारी में आउट नहीं हुए थे। यह रनों का कारनामा उन्होंने 1943-1944 में बम्बई में महाराष्ट्र के विरुद्ध बनाया था। इन रनों को बनाने के दौरान उन्होंने छठे विकेट की साझेदारी के लिए मोदी के साथ 371 रन तथा आठवें विकेट की साझेदारी के लिए आर.एस. कूपर के साथ 210 रन की पारी खेली। इसके एक वर्ष बाद 1945 में उन्होंने मोदी के साथ मिलकर तीसरे विकेट की साझेदारी के लिए पश्चिमी भारत के विरुद्ध 373 रनों की साझेदारी की। 1938-1939 से 1941-1942 के बीच लगातार सात पारियों में विजय मर्चेन्ट ने रणजी ट्रॉफी में 6 शतक बनाए। विजय मर्चेन्ट ने 10 टैस्ट मैच खेले और अंत में सर्वाधिक 154 रन बनाए। ये रन उन्होंने 1951-1952 में दिल्ली में इंग्लैंड के विरुद्ध बनाए। तभी क्षेत्र-रक्षण (फील्डिंग) के दौरान उनके कन्धे में गम्भीर चोट लगी, जिसके कारण उन्हें तुरन्त क्रिकेट से रिटायर होना पड़ा। इसके पहले उन्होंने 5 वर्ष पूर्व ओवल में अगस्त, 1946 में 128 रन की बेहतरीन पारी खेली थी।[1]
विजडन क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर
विजय मर्चेन्ट अपनी पारियों की फिल्म बनाते थे, फिर उन्हें गौर से स्टडी करते थे। यद्यपि उन्होंने प्रारम्भिक दिनों में खेलने की कोई कोचिंग नहीं ली थी, परन्तु वह एल.पी. राय की स्टाइल-भरी बल्लेबाजी से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने 1933-1934 में सबसे पहले टैस्ट मैच खेलना आरम्भ किया था। अपनी शुरू की छह पारियों में वे कलकत्ता में सर्वाधिक स्कोर 54 ही बना सके थे। उन्होंने 1936 में इंग्लैंड का दौरा किया और 51.32 के औसत से सर्वाधिक 1745 रन बनाए। मानचेस्टर टैस्ट में विजय मर्चेन्ट ने 114 तथा मुश्ताक अली ने 112 रन बनाए। प्रथम विकेट की साझेदारी के लिए दोनों ने मिलकर 203 रन बनाए। लंकाशायर मैच में मर्चेन्ट ने ओल्ड ट्रैफर्ड में दोनों पारियों में बेहतरीन खेल दिखाते हुए 135 व 77 रन बनाए। 1936 में मिली सफलता के कारण ही विजय मर्चेन्ट को ”विजडन क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर” चुना गया।
विजय मर्चेन्ट बहुत प्रसिद्ध हो चुके थे। वे 1946 में सीनियर नवाब पटौदी की टीम में उप-कप्तान थे। उस समय उन्होंने कमाल का प्रदर्शन करते हुए 74 के औसत से 2385 रन बनाए, जिनमें 7 शतक शामिल थे। ये रन उन्होंने लंकाशायर तथा ससेक्स के विरुद्ध बनाए थे। अपने अन्तिम टैस्ट मैचों में उन्होंने 5 पारियों में 245 रन बनाए। अपने अंतिम ओवल टैस्ट में उन्होंने 128 रन बना लिए, फिर वे रन आउट हो गए। वे अपनी खराब सेहत के कारण ऑस्ट्रेलिया व वेस्टइंडीज के दौरों पर नही जा सके, परन्तु उन्होंने अपना अंतिम मैच 1951-52 में इंग्लैंड के विरुद्ध खेला। उन्होंने अपना तीसरा शतक लगाते हुए टैस्ट मैच में अपना सर्वाधिक स्कोर 154 रन बना लिए। क्रिकेट के खेल मैदान में फील्डिंग के दौरान उन्हें कन्धे में गहरी चोट लगी जिसके कारण उन्हें क्रिकेट से रिटायरमेंट लेना पड़ा, उस वक्त वह कुछ दिन पूर्व 40 वर्ष के हो चुके थे।
कॅरियर
विजय मर्चेन्ट ने 18 वर्षों के दौरान 10 टैस्ट मैच खेले, जिनमें उन्होंने 859 रन बनाए। रणजी ट्राफी मैचों में उन्होंने 47 पारी खेलीं, जिसमें 16 बार शतक लगाए और आश्चर्यजनक औसत (98.75) से उन्होंने 3639 रन बनाए और उन्होंने मीडियम पेस ऑफ स्पिन गेंद फेंकते हुए 31.87 के औसत से 65 विकेट लिए। खेलों से संन्यास लेने के पश्चात् वह एक प्रशासक, लेखक तथा कार्यक्रम प्रस्तुतकर्ता बन गए। वह खेल चयन समिति के सदस्य भी रहे। उन्होंने ही पटौदी जूनियर के स्थान पर वाडेकर को टीम का कप्तान बनाया था। उन्होंने सामाजिक कार्यों में भी भरपूर सहयोग दिया।[1]
- मृत्यु
उनकी मृत्यु 27 अक्टूबर, 1987 को बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में 76 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से हुई।
उपलब्धियां
- उनका प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कैरियर अत्यन्त शानदार रहा। इसमें उनका बल्लेबाजी का औसत 71.64 रहा। यह औसत क्रिकेट के सम्राट डान ब्रैडमैन के बाद दूसरे नम्बर पर आता है।
- उन्होंने मात्र 10 टैस्ट मैच खेले जिनमें उनका अधिकतम स्कोर 154 रहा जो उन्होने 1951-52 में बनाया था।
- इंग्लैंड के दो दौरों के दौरान जो 10 वर्ष के अन्तराल पर थे, उन्होंने 4000 से अधिक रन बनाए।
- उन्होंने प्रथम श्रेणी मैचों में 44 शतक बनाए जिनमें 11 बार 200 से अधिक रन बनाए।
- एक बार वह 359 नॉट आउट नाबाद भी रहे थे।
- 1937 में उन्हें ‘विजडन क्रिकेटर आफ द ईयर’[2] चुना गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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संबंधित लेख