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− | [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] के इतिहास विभाग की ओर से के.ए. निजाती की देख-रेख एवं एम. ड़ी. साही के निर्देशन में यहाँ खुदाई की गई थी। उत्खनन से तीन स्तरों का अभिज्ञान हुआ है। | + | [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] के इतिहास विभाग की ओर से के.ए. निजाती की देख-रेख एवं एम. ड़ी. साही के निर्देशन में यहाँ खुदाई की गई थी। [[उत्खनन]] से तीन स्तरों का अभिज्ञान हुआ है। |
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प्रथम स्तर से काले एवं लाल-काले पुते तथा अपरिष्कृत मृद्भाण्ड मिले हैं। इनके अतिरिक्त कुछ चमकीले धूसर भाण्ड भी हैं। मृद्भाण्ड के झल्ले, गोमेद के क्रोड़, जैस्पर के नालीदार मनके, अस्थियों के बाणाग्र आदि पुरानिधियाँ यहाँ से प्राप्त हुई हैं। यहाँ के मृद्भाण्ड अतरंजीखेड़ा के द्वितीय स्तर के भाण्डों के सादृश हैं। | प्रथम स्तर से काले एवं लाल-काले पुते तथा अपरिष्कृत मृद्भाण्ड मिले हैं। इनके अतिरिक्त कुछ चमकीले धूसर भाण्ड भी हैं। मृद्भाण्ड के झल्ले, गोमेद के क्रोड़, जैस्पर के नालीदार मनके, अस्थियों के बाणाग्र आदि पुरानिधियाँ यहाँ से प्राप्त हुई हैं। यहाँ के मृद्भाण्ड अतरंजीखेड़ा के द्वितीय स्तर के भाण्डों के सादृश हैं। | ||
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− | द्वितीय स्तर दो भागों में विभाजित है- 'ए' स्तर काले-लाल से चित्रित धूसर संस्कृति में संक्रमण का परिचायक है। 'बी' स्तर से बड़ी संख्या में चित्रित धूसर भाण्ड मिलते हैं। इस स्तर की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मिट्टी का बाँध है, जिसका आधार 4.80 मीटर एवं ऊँचाई 80 से.मी. है। मिट्टी की अधखुली फर्शों तथा स्तम्भ-गर्तों से पता चलता है कि मकान वृत्ताकार एवं आयताकार बनाये जाते थे। लोग ईंटों के प्रयोग से परिचित थे किंतु केवल कर्मकाण्डों में वेदी आदि बनाने के लिए ही इनका उपयोग होता था। | + | द्वितीय स्तर दो भागों में विभाजित है- 'ए' स्तर काले-लाल से चित्रित धूसर संस्कृति में संक्रमण का परिचायक है। 'बी' स्तर से बड़ी संख्या में चित्रित धूसर भाण्ड मिलते हैं। इस स्तर की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मिट्टी का बाँध है, जिसका आधार 4.80 मीटर एवं ऊँचाई 80 से.मी. है। [[मिट्टी]] की अधखुली फर्शों तथा स्तम्भ-गर्तों से पता चलता है कि मकान वृत्ताकार एवं आयताकार बनाये जाते थे। लोग ईंटों के प्रयोग से परिचित थे किंतु केवल कर्मकाण्डों में वेदी आदि बनाने के लिए ही इनका उपयोग होता था। |
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तृतीय स्तर यह उत्तरी काली मार्जित पात्र परम्परा (एन.बी.पी.) के प्रयोग का काल है। मृद्भाण्डों के चित्रिकारियों में सजावट दिखाई देती है। प्राप्त पुरानिधियों से पता चलता है कि इस समय अस्थि उद्योग अत्यंत विकसित अवस्था में था। | तृतीय स्तर यह उत्तरी काली मार्जित पात्र परम्परा (एन.बी.पी.) के प्रयोग का काल है। मृद्भाण्डों के चित्रिकारियों में सजावट दिखाई देती है। प्राप्त पुरानिधियों से पता चलता है कि इस समय अस्थि उद्योग अत्यंत विकसित अवस्था में था। | ||
इस प्रकार जखेड़ा चित्रित धूसर मृद्भाण्डकालीन प्रमुख स्थल है। लौह-निर्मित फाल की प्राप्ति से सूचित होता है कि प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य भाग तक भूमि जुताई के लिए लोहे के फालों का प्रयोग किया जाने लगा था। बाँध, परिखा, चौड़ी सड़क के अवशेष समृद्ध जीवन की ओर संकेत करते हैं। | इस प्रकार जखेड़ा चित्रित धूसर मृद्भाण्डकालीन प्रमुख स्थल है। लौह-निर्मित फाल की प्राप्ति से सूचित होता है कि प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य भाग तक भूमि जुताई के लिए लोहे के फालों का प्रयोग किया जाने लगा था। बाँध, परिखा, चौड़ी सड़क के अवशेष समृद्ध जीवन की ओर संकेत करते हैं। | ||
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07:54, 20 फ़रवरी 2012 का अवतरण
जखेड़ा एक ऐतिहासिक स्थान जो उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले में कालिन्दी नदी के तट पर अतरंजीखेड़ा से 16 किमी दूर स्थित है। जखेड़ा के स्थानीय लोग इसे 'कुसुम' कहते हैं।
उत्खनन
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की ओर से के.ए. निजाती की देख-रेख एवं एम. ड़ी. साही के निर्देशन में यहाँ खुदाई की गई थी। उत्खनन से तीन स्तरों का अभिज्ञान हुआ है।
- प्रथम स्तर
प्रथम स्तर से काले एवं लाल-काले पुते तथा अपरिष्कृत मृद्भाण्ड मिले हैं। इनके अतिरिक्त कुछ चमकीले धूसर भाण्ड भी हैं। मृद्भाण्ड के झल्ले, गोमेद के क्रोड़, जैस्पर के नालीदार मनके, अस्थियों के बाणाग्र आदि पुरानिधियाँ यहाँ से प्राप्त हुई हैं। यहाँ के मृद्भाण्ड अतरंजीखेड़ा के द्वितीय स्तर के भाण्डों के सादृश हैं।
- द्वितीय स्तर
द्वितीय स्तर दो भागों में विभाजित है- 'ए' स्तर काले-लाल से चित्रित धूसर संस्कृति में संक्रमण का परिचायक है। 'बी' स्तर से बड़ी संख्या में चित्रित धूसर भाण्ड मिलते हैं। इस स्तर की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मिट्टी का बाँध है, जिसका आधार 4.80 मीटर एवं ऊँचाई 80 से.मी. है। मिट्टी की अधखुली फर्शों तथा स्तम्भ-गर्तों से पता चलता है कि मकान वृत्ताकार एवं आयताकार बनाये जाते थे। लोग ईंटों के प्रयोग से परिचित थे किंतु केवल कर्मकाण्डों में वेदी आदि बनाने के लिए ही इनका उपयोग होता था।
- तृतीय स्तर
तृतीय स्तर यह उत्तरी काली मार्जित पात्र परम्परा (एन.बी.पी.) के प्रयोग का काल है। मृद्भाण्डों के चित्रिकारियों में सजावट दिखाई देती है। प्राप्त पुरानिधियों से पता चलता है कि इस समय अस्थि उद्योग अत्यंत विकसित अवस्था में था।
इस प्रकार जखेड़ा चित्रित धूसर मृद्भाण्डकालीन प्रमुख स्थल है। लौह-निर्मित फाल की प्राप्ति से सूचित होता है कि प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य भाग तक भूमि जुताई के लिए लोहे के फालों का प्रयोग किया जाने लगा था। बाँध, परिखा, चौड़ी सड़क के अवशेष समृद्ध जीवन की ओर संकेत करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख