"दिब्येन्दु बरुआ" के अवतरणों में अंतर

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==परिचय==
 
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==राष्ट्रीय चैंपियनशिप खिताब==
 
==राष्ट्रीय चैंपियनशिप खिताब==
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==ग्रैंडमास्टर==
 
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दिब्येन्दु बरुआ की शतरंज में शुरुआत बेहद अच्छी रहने के बावजूद उनका कैरियर उतनी अच्छी उड़ान नहीं भर सका, जैसा कि उनसे उम्मीद की जाने लगी थी। इन्टरनेशनल मास्टर बनने के नौ वर्षों के लंबे अंतराल के पश्चात् बरुआ [[1991]] में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीत सके। ग्रैंड मास्टर बनने के पश्चात् धन की कमी तथा सही तैयारियों के अभाव के कारण बरुआ आशातीत सफलता नहीं प्राप्त कर सके जैसी सफलता [[भारत]] के विश्वनाथन आनंद को मिली थी। दिब्येन्दु बरुआ तीन बार भारत के राष्ट्रीय चैंपियन बने। अंतिम बार वह [[2001]] में राष्ट्रीय चैंपियन बने, जब उन्होंने अनेक युवा खिलाड़ियों से कठिन मुकाबला किया।<ref name="a"/>
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==उपलब्धियां==
 
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05:34, 27 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

दिब्येन्दु बरुआ
दिब्येन्दु बरुआ
पूरा नाम दिब्येन्दु बरुआ
जन्म 27 अक्टूबर, 1966
जन्म भूमि कोलकाता, पश्चिम बंगाल
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र शतरंज
पुरस्कार-उपाधि 'ग्रैंड मास्टर', (1991)
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख परिमार्जन नेगी, मैनुअल आरों, विश्वनाथन आनंद
अन्य जानकारी दिब्येन्दु बरुआ बचपन में दिब्येन्दु ‘चाइल्ड प्राडिजी’ (प्रतिभाशाली बालक) के रूप मे पहचाने जाने लगे थे।

दिब्येन्दु बरुआ (अंग्रेज़ी: Dibyendu Barua, जन्म- 27 अक्टूबर, 1966, कोलकाता, पश्चिम बंगाल) भारत में शतरंज के दूसरे ग्रैंड मास्टर हैं। उन्होंने तीन बार राष्ट्रीय ख़िताब जीता है। वह बचपन से ही एक प्रतिभावान खिलाड़ी थे। 1978 में मात्र 12 वर्ष की आयु में दिब्येन्दु ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और वह भारत के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने। 1991 में उन्होंने ग्रैंड मास्टर का खिताब हासिल किया।

परिचय

दिब्येन्दु बरुआ का जन्म 27 अक्टूबर सन 1966 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। विश्वनाथन आनंद के बाद भारत के दूसरे ग्रैंडमास्टर दिब्येन्दु बरुआ हैं। उन्होंने 1982 में विश्व के नम्बर दो ग्रैंड मास्टर विक्टोर कोर्चोई को लंदन में हरा कर इन्टरनेशनल मास्टर का खिताब जीता था।[1]

राष्ट्रीय चैंपियनशिप खिताब

1978 में मात्र 12 वर्ष की आयु में दिब्येन्दु ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और वह भारत के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने, जिसने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लिया हो। शतरंज के क्षेत्र में हर ओर चर्चा होने लगी कि एक नई शतरंज प्रतिभा ने जन्म लिया है। 1982 में बरुआ जब 16 वर्ष के थे, तब उन्होंने उस समय के विश्व के नंबर दो ग्रैंड मास्टर विक्टोर कोर्चोई को लंदन में हरा दिया और इंटरनेशनल मास्टर्स का खिताब जीत लिया। 1983 में दिब्येन्दु ने पहली बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप का खिताब जीता।

ग्रैंडमास्टर

दिब्येन्दु बरुआ की शतरंज में शुरुआत बेहद अच्छी रहने के बावजूद उनका कॅरियर उतनी अच्छी उड़ान नहीं भर सका, जैसा कि उनसे उम्मीद की जाने लगी थी। इन्टरनेशनल मास्टर बनने के नौ वर्षों के लंबे अंतराल के पश्चात् बरुआ 1991 में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीत सके। ग्रैंड मास्टर बनने के पश्चात् धन की कमी तथा सही तैयारियों के अभाव के कारण बरुआ आशातीत सफलता नहीं प्राप्त कर सके जैसी सफलता भारत के विश्वनाथन आनंद को मिली थी। दिब्येन्दु बरुआ तीन बार भारत के राष्ट्रीय चैंपियन बने। अंतिम बार वह 2001 में राष्ट्रीय चैंपियन बने, जब उन्होंने अनेक युवा खिलाड़ियों से कठिन मुकाबला किया।[1]

उपलब्धियां

  1. दिब्येन्दु बरुआ भारत के द्वितीय ग्रैंड मास्टर बने।
  2. 1978 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेने पर दिब्येन्दु 12 वर्ष की आयु के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने, जिसने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लिया।
  3. बचपन में दिब्येन्दु ‘चाइल्ड प्राडिजी’ (प्रतिभाशाली बालक) के रूप मे पहचाने जाने लगे थे।
  4. 1983 में वह राष्ट्रीय चैंपियन बने।
  5. 1991 में उन्होंने ग्रैंड मास्टर का खिताब हासिल किया।
  6. दिब्येन्दु ने तीन बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 दिब्येन्दु बरुआ का जीवन परिचय (हिंदी) कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 10 सितम्बर, 2016।

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