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'''नारायण मोरेश्वर खरे''' [[भारत]] के प्रख्यात गायकों में से एक थे। [[विष्णु दिगम्बर पलुस्कर|पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर]] के प्रमुख शिष्य़ों में उनका नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। [[महाराष्ट्र]] के [[सतारा]] ज़िले के अन्तर्गत 'तास' नामक गाँव के एक साधारण [[ब्राह्मण]] परिवार में इनका जन्म हुआ था। खरे जी के नाना केशव बुआ भी एक प्रख्यात गायक रहे थे। अतः इन्हें अपनी [[माता|माताजी]] के द्वारा [[संगीत]] के आनुवंशिक संस्कार विरासत में प्राप्त हुए थे।
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'''नारायण मोरेश्वर खरे''' [[भारत]] के प्रख्यात शास्त्रीय गायकों में से एक थे। [[विष्णु दिगम्बर पलुस्कर|पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर]] के प्रमुख शिष्य़ों में उनका नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। [[महाराष्ट्र]] के [[सतारा]] ज़िले के अन्तर्गत 'तास' नामक गाँव के एक साधारण [[ब्राह्मण]] परिवार में इनका जन्म हुआ था। खरे जी के नाना केशव बुआ भी एक प्रख्यात गायक रहे थे। अतः इन्हें अपनी [[माता|माताजी]] के द्वारा [[संगीत]] के आनुवंशिक संस्कार विरासत में प्राप्त हुए थे।
  
 
*नारायण मोरेश्वर खरे ने बहुत मधुर कंठ पाया था। मिरज के एक जलसे में संयोग वंश पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने किशोर पंडित खरे के भजन सुने तो उन्होंने इन्हें शिष्य रूप में ग्रहण कर लिया।
 
*नारायण मोरेश्वर खरे ने बहुत मधुर कंठ पाया था। मिरज के एक जलसे में संयोग वंश पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने किशोर पंडित खरे के भजन सुने तो उन्होंने इन्हें शिष्य रूप में ग्रहण कर लिया।
*सन [[1912]] में गुरूजी की आज्ञा से मोरेश्वर खरे ने [[बम्बई]] के 'गाँधर्व विद्यालय' की व्यवस्था सँभाली।
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*सन [[1912]] में गुरुजी की आज्ञा से मोरेश्वर खरे ने [[बम्बई]] के 'गाँधर्व विद्यालय' की व्यवस्था सँभाली।
*इन्होंने [[1918]] में [[अहमदाबाद]] स्थित [[महात्मा गाँधी]] के 'सत्याग्रह आश्रम' में आकर वहाँ के प्रार्थना संगीत का परिष्कार एंव परिवर्द्धन किया।
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*इन्होंने [[1918]] में [[अहमदाबाद]] स्थित [[महात्मा गाँधी]] के 'सत्याग्रह आश्रम' में आकर वहाँ के प्रार्थना संगीत का परिष्कार एवं परिवर्द्धन किया।
 
*खरे जी के द्वारा निर्मित लगभग 400 भजनों का संग्रह 'आश्रम भजनावली' के नाम से [[इलाहाबाद]] से प्रकाशित हुआ था।
 
*खरे जी के द्वारा निर्मित लगभग 400 भजनों का संग्रह 'आश्रम भजनावली' के नाम से [[इलाहाबाद]] से प्रकाशित हुआ था।
 
*[[गुजरात]] में [[संगीत]] की [[कला]] का काफ़ी प्रचार नारायण मोरेश्वर खरे के सहयोग से हुआ।
 
*[[गुजरात]] में [[संगीत]] की [[कला]] का काफ़ी प्रचार नारायण मोरेश्वर खरे के सहयोग से हुआ।
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नारायण मोरेश्वर खरे भारत के प्रख्यात शास्त्रीय गायकों में से एक थे। पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर के प्रमुख शिष्य़ों में उनका नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के अन्तर्गत 'तास' नामक गाँव के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में इनका जन्म हुआ था। खरे जी के नाना केशव बुआ भी एक प्रख्यात गायक रहे थे। अतः इन्हें अपनी माताजी के द्वारा संगीत के आनुवंशिक संस्कार विरासत में प्राप्त हुए थे।

  • नारायण मोरेश्वर खरे ने बहुत मधुर कंठ पाया था। मिरज के एक जलसे में संयोग वंश पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने किशोर पंडित खरे के भजन सुने तो उन्होंने इन्हें शिष्य रूप में ग्रहण कर लिया।
  • सन 1912 में गुरुजी की आज्ञा से मोरेश्वर खरे ने बम्बई के 'गाँधर्व विद्यालय' की व्यवस्था सँभाली।
  • इन्होंने 1918 में अहमदाबाद स्थित महात्मा गाँधी के 'सत्याग्रह आश्रम' में आकर वहाँ के प्रार्थना संगीत का परिष्कार एवं परिवर्द्धन किया।
  • खरे जी के द्वारा निर्मित लगभग 400 भजनों का संग्रह 'आश्रम भजनावली' के नाम से इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ था।
  • गुजरात में संगीत की कला का काफ़ी प्रचार नारायण मोरेश्वर खरे के सहयोग से हुआ।
  • सन 1912 में अहमदाबाद में इन्होंने 'संगीत मण्डल' की स्थापना भी की थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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