प्रभा अत्रे
प्रभा अत्रे
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पूरा नाम | प्रभा अत्रे |
जन्म | 13 सितम्बर, 1932 |
जन्म भूमि | पुणे, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 13 जनवरी, 2024 |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय शास्त्रीय संगीत |
विद्यालय | बीए, पुणे विश्वविद्यालय पीएचडी, गंधर्व महाविद्यालय |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण, 2022 पद्म भूषण, 2002 |
प्रसिद्धि | शास्त्रीय गायिका |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | प्रभा अत्रे ने संगीत के विभिन्न विषयों पर अलग-अलग पुस्तकें लिखी हैं। उनके द्वारा लिखी गई पहली किताब 'स्वरामयी' है। स्वरामयी उनके संगीत पर लिखे गए लेख का एक संकलन है। |
अद्यतन | 16:54, 14 जनवरी 2024 (IST)
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प्रभा अत्रे (अंग्रेज़ी: Prabha Atre, जन्म- 13 सितम्बर, 1932; मृत्यु- 13 जनवरी, 2024) भारत की किराना घराने की प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत गायिका थीं। शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाना उनका सपना था। उनका मानना था कि इसके लिये सभी को मिलकर काम करना होगा। किराना घराने की सशक्त हस्ताक्षर ‘स्वरयोगिनी’ प्रभा अत्रे को संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिये देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण (2022) से सम्मानित किया गया था। प्रभा अत्रे भारतीय शास्त्रीय संगीत के विषय पर संगीत पढ़ाती रही थीं, व्याख्यान-प्रदर्शन करती रहीं और लिखती रहीं। विदेशों में कई यूनिवर्सिटीज़ में विज़िटिंग प्रोफेसर भी रहीं। उनके नाम 11 पुस्तकें (एक चरण से) जारी करने का विश्व रिकॉर्ड भी है।
परिचय
मूल रूप से महाराष्ट्र के पुणे में 13 सितम्बर, सन 1932 को जन्मी प्रभा अत्रे ने शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक जाना माना नाम है। वह शास्त्रीय परंपरा की शीर्ष गायिकाओं में से एक हैं। वैश्विक स्तर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने में प्रभा अत्रे की अहम भूमिका रही है। प्रभा अत्रे उन दुर्लभ कलाकारों मे से हैं जिन्हें अलग-अलग तरह के संगीत के विधाओं में महारत हासिल है, जैसे- खयाल, ठुमरी, दादरा, ग़ज़ल और गीत इत्यादी।[1]
संगीत में अपने पदार्पण के बारे में प्रभा अत्रे ने कहा था- "मेरी मां की तबीयत ठीक नहीं रहती थी और उस समय एक गुरुजी उन्हें हारमोनियम सिखाने आते थे और मैं वहीं उनके पास बैठती थी। वहीं से रूचि जगी और मेरे गायन की शुरूआत हुई।" गायिका होने के साथ संगीत विचारक, चिंतक, शोधकर्ता, शिक्षिका, लेखिका, संगीतकार और गुरु प्रभा अत्रे ने कहा- "मैं अंतिम सांस तक गाना चाहती हूं लेकिन संगीत के बाकी पहलुओं पर भी काम करना चाहती हूं। शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने का सपना है क्योंकि जब तक आम जनता तक नहीं पहुंचेगा, यह चलने वाला नहीं है। मैं इसे सीखने में आसान बनाने और लोकप्रिय बनाने के लिये काम करना चाहती हूं। मैं फिल्म संगीत, सुगम संगीत, गजल, फ्यूजन सब सुनती हूं। सभी में कुछ कुछ अच्छा रहता है और आजकल बहुत प्रतिभाशाली बच्चे हैं, जिनमें बस प्रतिबद्धता और गंभीरता लाने की जरूरत है। अब 90 वर्ष की उम्र में नाम याद नहीं रहते, लेकिन आजकल संगीत में बहुत अच्छा काम हो रहा है।"[1]
शिक्षण
प्रभा अत्रे ने साइंस से ग्रेजुएशन के साथ-साथ लॉ की शिक्षा भी ली थी। वह गंधर्व विद्यालय से संगीत अलंकार थीं। साथ ही उनके पास संगीत डॉक्टरेट की डिग्री भी थी। उन्होंने लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज से वेस्टर्न म्यूजिक की भी शिक्षा ली।
कई राग बनाए
मंच पर मधुर आवाज के साथ जिस नियंत्रण से प्रभा अत्रे सुरों को आलाप और तानों में पिरोती थीं, संगीत प्रेमी शायद ही उसे कभी भुला पाएंगे। उनमें एक और खासियत थी, स्पष्टता की। कठिन बोलों को भी सरलता से श्रोताओं के दिल तक पहुंचा पाना आसान नहीं है, लेकिन यही प्रतिभा प्रभा अत्रे को श्रेष्ठ कलाकार बनाती थी। संगीत की तमाम विधाओं जैसे- ठुमरी, दादरा, ग़जल, गीत, ख्याल, भक्ति गीतों को उसी परफेक्शन से गाना दुर्लभ है, लेकिन संगीत के प्रति डॉ. प्रभा अत्रे की लगन ने इसे बेहद आसान बना दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने अपूर्वा कल्याण, दादरी कौंस, पटदीप मल्हार, तिलंग भैरवी, रवि भैरवी और मधुर कौन जैसे कई रागों को अपनी अद्भुत कल्पना से जन्म दिया।[2]
लेखन
प्रभा अत्रे ने संगीत के विभिन्न विषयों पर अलग-अलग पुस्तकें लिखीं। उनके द्वारा लिखी गई पहली किताब 'स्वरामयी' है। स्वरामयी उनके संगीत पर लिखे गए लेख का एक संकलन है। संगीत पर उनकी तमाम किताबें ये बताती हैं कि एक अच्छे कलाकार को इमैजिनेटिव यानी कल्पनाशील क्यों होना चाहिए। उनकी पहली किताब स्वरामयी को 1989 में महाराष्ट्र स्टेट सरकार पुरस्कार से नवाजा गया। उसके बाद उन्होंने संगीत के अनछुए पहलुओं पर कई किताबें लिखीं, ताकि विदेशों में भी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की पहचान बढ़े। उन्होंने सीडी सहित अंग्रेजी में किताबें लिखना शुरू किया। खत्म होती गुरु शिष्य परंपरा को जिंदा रखने का प्रयास करते हुए प्रभा अत्रे ने पुणे में कुछ साल पहले ही 'स्वरमई गुरुकुल' नाम की स्थापना की थी।
सम्मान व पुरस्कार
- शास्त्रीय संगीत को दुनिया भर में एक नई पहचान देने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया।
- संगीत जगत के जाने-माने पुरस्कारों के साथ-साथ भारत सरकार ने उन्हें 1990 में 'पद्म श्री' और 2002 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था।
- साल 2022 में प्रभा अत्रे को पद्म विभूषण से नवाजा गया था।
मृत्यु
किराना घराने की नायाब धरोहर को देश-दुनिया में लोकप्रिय बनाने वाली 92 साल की दिग्गज गायिका प्रभा अत्रे का निधन दिल का दौरा पड़ने से 13 जनवरी, 2024 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ। अस्पताल ले जाते समय ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1
शास्त्रीय संगीत की दुनिया में जाना माना नाम है Prabha Atre (हिंदी) abplive.com। अभिगमन तिथि: 27 जनवरी, 2022। सन्दर्भ त्रुटि:
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अमान्य टैग है; "pp" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है - ↑ क्लासिकल सिंगर प्रभा अत्रे का निधन (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 14 जनवरी, 2024।
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