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खड़ा हिमालय शीश झुकाये  
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<poem>खड़ा हिमालय शीश झुकाये  
 
 
द्रवित हो रहा पल पल मन  
 
द्रवित हो रहा पल पल मन  
 
देख रहा निर्वाक शिखर से  
 
देख रहा निर्वाक शिखर से  
भव्य राष्ट का जाति विभाजन
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भव्य राष्ट्र का जाति विभाजन
  
एक विषादित शिला बन गया  
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          एक विषादित शिला बन गया  
चपल कूलों के मनुजोचित कारण  
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          चपल कूलों के मनुजोचित कारण  
दुखित हुवा वच्छल मन अंतस्तल
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          दुखित हुआ वच्छल मन अंतस्तल
खोया उर आत्म चेतना अंतर्नभ
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          खोया उर आत्म चेतना अंतर्नभ
  
 
भूल रहा मनुजत्व कृत्य  
 
भूल रहा मनुजत्व कृत्य  
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भूल भूलकर प्रेम-युक्ति
 
भूल भूलकर प्रेम-युक्ति
  
कही जीर्ण जाति में डूब डूब
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          कहीं जीर्ण जाति में डूब डूब
कही धर्म कौम में घूम घूम  
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          कहीं धर्म कौम में घूम घूम  
भू पर विचर रहे कुछ हिंसक मानव  
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          भू पर विचर रहे कुछ हिंसक मानव  
बहु रूढि जाति धर्म के वशीभूत</poem>
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          बहु रूढि जाति धर्म के वशीभूत
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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[[Category:दिनेश सिंह]]
 
[[Category:दिनेश सिंह]]

13:18, 26 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

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खड़ा हिमालय शीश झुकाये
द्रवित हो रहा पल पल मन
देख रहा निर्वाक शिखर से
भव्य राष्ट्र का जाति विभाजन

          एक विषादित शिला बन गया
          चपल कूलों के मनुजोचित कारण
          दुखित हुआ वच्छल मन अंतस्तल
          खोया उर आत्म चेतना अंतर्नभ

भूल रहा मनुजत्व कृत्य
भर भरकर मानस मन विकृति
विद्वेष, घृणा मन रक्ता रंजीत
भूल भूलकर प्रेम-युक्ति

          कहीं जीर्ण जाति में डूब डूब
          कहीं धर्म कौम में घूम घूम
          भू पर विचर रहे कुछ हिंसक मानव
          बहु रूढि जाति धर्म के वशीभूत

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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