"मिलखा सिंह" के अवतरणों में अंतर

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|अन्य जानकारी='मिलखा सिंह' अपनी अदभुत गति के कारण 'उड़ता सिख' (FLYING SIKH) के नाम से जाने गए। मिल्खा सिंह देश के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों में एक जाना पहचाना नाम है। उनका गौरवपूर्ण खेल जीवन सदैव युवा खिलाड़ियों को अधिक से अधिक शानदार प्रदर्शन के लिए प्रेरणा मिलती है।
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|अन्य जानकारी='मिलखा सिंह' अपनी अदभुत गति के कारण 'उड़ता सिख' (FLYING SIKH) के नाम से जाने गए। मिलखा सिंह देश के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों में एक जाना पहचाना नाम है। उनका गौरवपूर्ण खेल जीवन सदैव युवा खिलाड़ियों को अधिक से अधिक शानदार प्रदर्शन के लिए प्रेरणा मिलती है।
 
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}}'''मिलखा सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Milkha Singh'', जन्म- [[20 नवंबर]], [[1929]]; मृत्यु- [[18 जून]], [[2021]]) [[भारत]] के ऐसे प्रसिद्ध धावक थे जिन्हें लोग '''फ्लाइंग सिक्ख''' के नाम से जानते हैं। सन [[1956]] में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया था। मिल्खा सिंह ने [[1958]] में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल [[1958]] में ही [[इंग्लैंड]] के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिलखा सिंह ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस  में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। उस समय आज़ाद [[भारत]] में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय थे।
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}}'''मिलखा सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Milkha Singh'', जन्म- [[20 नवंबर]], [[1929]]; मृत्यु- [[18 जून]], [[2021]]) [[भारत]] के ऐसे प्रसिद्ध धावक थे जिन्हें लोग '''फ्लाइंग सिक्ख''' के नाम से जानते हैं। सन [[1956]] में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया था। मिलखा सिंह ने [[1958]] में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल [[1958]] में ही [[इंग्लैंड]] के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिलखा सिंह ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस  में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। उस समय आज़ाद [[भारत]] में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय थे।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर, 1929 गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं) में एक [[सिक्ख]] [[परिवार]] में हुआ था। उनका बचपन बेहद कठिन दौर से गुजरा। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिल्खा सिंह ने अपने [[माता]]-[[पिता]] और कई भाई-बहन को खो दिया। उनके अंदर दौड़ने को लेकर एक जुनून बचपन से ही था। वह अपने घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे। 9वीं पास करने के बाद वे मेकैनिकल व्यवसाय में संलग्न हो गए। [[1953]] में वे सेना में भर्ती हो गये। सेना में रहकर उन्होंने दौड़-कूद की और विशेष ध्यान दिया और 400 मीटर की दौड़ की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दीं।
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मिलखा सिंह का जन्म 20 नवम्बर, 1929 गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं) में एक [[सिक्ख]] [[परिवार]] में हुआ था। उनका बचपन बेहद कठिन दौर से गुजरा। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने [[माता]]-[[पिता]] और कई भाई-बहन को खो दिया। उनके अंदर दौड़ने को लेकर एक जुनून बचपन से ही था। वह अपने घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे। 9वीं पास करने के बाद वे मेकैनिकल व्यवसाय में संलग्न हो गए। [[1953]] में वे सेना में भर्ती हो गये। सेना में रहकर उन्होंने दौड़-कूद की और विशेष ध्यान दिया और 400 मीटर की दौड़ की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दीं।
 
=='फ्लाइंग सिक्ख' का खिताब==
 
=='फ्लाइंग सिक्ख' का खिताब==
मिल्खा सिंह को मिले 'फ्लाइंग सिक्ख' के खिताब की [[कहानी]] बेहद दिलचस्प है और इसका संबंध पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है। [[1960]] के रोम ओलिंपिक में पदक से चूकने का मिल्खा सिंह के मन में खासा मलाल था। इसी साल उन्हें पाकिस्तान में आयोजित इंटरनेशनल एथलीट कम्पटिशन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। मिल्खा के मन में लंबे समय से बंटवारे का दर्द था और वहां से जुड़ी यादों के चलते वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। हालांकि बाद में तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.abplive.com/news/india/milkha-singh-death-this-is-what-pakistan-s-president-said-to-milkha-story-behind-the-name-of-flying-sikh-1929075 |title=जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा था 'आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो', मिल्खा सिंह बन गए 'फ्लाइंग सिख'|accessmonthday=19 जून|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=abplive.com |language=हिंदी}}</ref>
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पाकिस्तान में उस समय एथलेटिक्स में अब्दुल खालिक का नाम बेहद मशहूर था। उन्हें वहां का सबसे तेज धावक माना जाता था। यहां मिल्खा सिंह का मुकाबला उन्हीं से था। अब्दुल खालिक के साथ हुई इस दौड़ में हालात मिल्खा के खिलाफ थे और पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। '''रेस के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को 'फ्लाइंग सिक्ख' का नाम दिया और कहा "आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं"।''' इसके बाद से ही मिलखा सिंह इस नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए। खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिये [[भारत सरकार]] ने उन्हें [[भारत]] के चौथे सर्वोच्च सम्मान '[[पद्मश्री]]' से भी सम्मानित किया।  
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पाकिस्तान में उस समय एथलेटिक्स में अब्दुल खालिक का नाम बेहद मशहूर था। उन्हें वहां का सबसे तेज धावक माना जाता था। यहां मिलखा सिंह का मुकाबला उन्हीं से था। अब्दुल खालिक के साथ हुई इस दौड़ में हालात मिलखा के खिलाफ थे और पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिलखा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। '''रेस के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिलखा सिंह को 'फ्लाइंग सिक्ख' का नाम दिया और कहा "आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं"।''' इसके बाद से ही मिलखा सिंह इस नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए। खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिये [[भारत सरकार]] ने उन्हें [[भारत]] के चौथे सर्वोच्च सम्मान '[[पद्मश्री]]' से भी सम्मानित किया।
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==भारतीय सेना में आगमन==
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चार बार कोशिश करने के बाद साल [[1951]] में मिलखा सिंह सेना में भर्ती हुए। भर्ती के दौरान हुई क्रॉस-कंट्री रेस में वह छठे स्थान पर आये थे, इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था। इस दौरान सिकंदराबाद के ईएमई सेंटर में ही उन्हें धावक के तौर पर अपने टैलेंट के बारे में पता चला और वहीं से उनके कॅरियर की शुरुआत हुई। मिलखा पर एथलीट बनने का जुनून इस कदर हावी हो गया था कि वह अभ्यास के लिए चलती ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे। इस दौरान कई बार उनका खून भी बह जाता था और सांस भी नहीं ली जाती थी, लेकिन फिर भी वह दिन-रात लगातार अभ्यास करते रहते थे। 
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सन [[1956]] में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया। एक एथलीट के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका ये पहला अनुभव भले ही अच्छा न रहा हो लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर बेहद फायदेमंद साबित हुआ। उस दौरान विश्व चैंपियन एथलीट चार्ल्स जेनकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उनके लिए भविष्य में बहुत बड़ी प्रेरणा का काम किया।<ref name="pp">
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==भारत को स्वर्ण दिलाने वाले प्रथम भारतीय==
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मिलखा सिंह ने साल [[1958]] में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल [[1958]] में ही [[इंग्लैंड]] के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिलखा ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल अपने नाम किया.।उस समय आजाद भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वे पहले भारतीय थे।
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सन 1958 के एशियाई खेलों में मिली सफलता के बाद मिलखा सिंह को सेना में जूनियर कमीशन का पद मिला। [[1960]] में [[रोम]] में आयोजित ओलंपिक खेलों में उन्होंने 400 मीटर की रेस में शानदार प्रदर्शन किया लेकिन अंतिम पलों में वे [[जर्मनी]] के एथलीट कार्ल कूफमैन से सेकेंड के सौवें हिस्से से पिछड़ गए और कांस्य पदक जीतने से मामूली अंतर से चूक गए। इस दौरान उन्होंने इस रेस में पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान भी तोड़ा और 400 मीटर की दौड़ 45.73 सेकेंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया। 400 मीटर की रेस में उनका ये रिकॉर्ड 40 साल बाद जाकर टूटा। [[1960]] के रोम ओलंपिक और टोक्यो में आयोजित [[1964]] के ओलंपिक में मिलखा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक [[भारत]] के सबसे महान ओलंपियन बने रहे। [[1962]] के जकार्ता एशियाई खेलों में मिलखा सिंह ने 400 मीटर और चार गुना 400 मीटर रिले दौड़ में भी गोल्ड मेडल हासिल किया था।
  
 
==उपलब्धियाँ==
 
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* इन्होंने [[1958]] के [[कॉमनवेल्थ खेल|कॉमनवेल्थ खेलों]] में स्वर्ण पदक जीता।
 
* इन्होंने [[1958]] के [[कॉमनवेल्थ खेल|कॉमनवेल्थ खेलों]] में स्वर्ण पदक जीता।
 
==पुरस्कार एवं सम्मान==
 
==पुरस्कार एवं सम्मान==
*मिल्खा सिंह 1959 में '[[पद्मश्री]]' से अलंकृत किये गये।
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*मिलखा सिंह 1959 में '[[पद्मश्री]]' से अलंकृत किये गये।
  
 
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08:03, 19 जून 2021 का अवतरण

मिलखा सिंह
मिलखा सिंह
पूरा नाम मिलखा सिंह
अन्य नाम 'उड़ता सिख'
जन्म 20 नवंबर, 1929
जन्म भूमि गोविंदपुरा, पंजाब (आज़ादी पूर्व)
मृत्यु 18 जून, 2021
मृत्यु स्थान चंडीगढ़, पंजाब
कर्म भूमि भारत
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री (1959), एशियाई खेलों (1958), (1962), कॉमनवेल्थ खेलों, (1958)
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख पी. टी. उषा, शायनी विल्सन
अन्य जानकारी 'मिलखा सिंह' अपनी अदभुत गति के कारण 'उड़ता सिख' (FLYING SIKH) के नाम से जाने गए। मिलखा सिंह देश के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों में एक जाना पहचाना नाम है। उनका गौरवपूर्ण खेल जीवन सदैव युवा खिलाड़ियों को अधिक से अधिक शानदार प्रदर्शन के लिए प्रेरणा मिलती है।

मिलखा सिंह (अंग्रेज़ी: Milkha Singh, जन्म- 20 नवंबर, 1929; मृत्यु- 18 जून, 2021) भारत के ऐसे प्रसिद्ध धावक थे जिन्हें लोग फ्लाइंग सिक्ख के नाम से जानते हैं। सन 1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया था। मिलखा सिंह ने 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल 1958 में ही इंग्लैंड के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिलखा सिंह ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। उस समय आज़ाद भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय थे।

परिचय

मिलखा सिंह का जन्म 20 नवम्बर, 1929 गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं) में एक सिक्ख परिवार में हुआ था। उनका बचपन बेहद कठिन दौर से गुजरा। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माता-पिता और कई भाई-बहन को खो दिया। उनके अंदर दौड़ने को लेकर एक जुनून बचपन से ही था। वह अपने घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे। 9वीं पास करने के बाद वे मेकैनिकल व्यवसाय में संलग्न हो गए। 1953 में वे सेना में भर्ती हो गये। सेना में रहकर उन्होंने दौड़-कूद की और विशेष ध्यान दिया और 400 मीटर की दौड़ की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दीं।

'फ्लाइंग सिक्ख' का खिताब

मिलखा सिंह को मिले 'फ्लाइंग सिक्ख' के खिताब की कहानी बेहद दिलचस्प है और इसका संबंध पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है। 1960 के रोम ओलिंपिक में पदक से चूकने का मिलखा सिंह के मन में खासा मलाल था। इसी साल उन्हें पाकिस्तान में आयोजित इंटरनेशनल एथलीट कम्पटिशन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। मिलखा के मन में लंबे समय से बंटवारे का दर्द था और वहां से जुड़ी यादों के चलते वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। हालांकि बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया।[1]

पाकिस्तान में उस समय एथलेटिक्स में अब्दुल खालिक का नाम बेहद मशहूर था। उन्हें वहां का सबसे तेज धावक माना जाता था। यहां मिलखा सिंह का मुकाबला उन्हीं से था। अब्दुल खालिक के साथ हुई इस दौड़ में हालात मिलखा के खिलाफ थे और पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिलखा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। रेस के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिलखा सिंह को 'फ्लाइंग सिक्ख' का नाम दिया और कहा "आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं"। इसके बाद से ही मिलखा सिंह इस नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए। खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिये भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान 'पद्मश्री' से भी सम्मानित किया।

भारतीय सेना में आगमन

चार बार कोशिश करने के बाद साल 1951 में मिलखा सिंह सेना में भर्ती हुए। भर्ती के दौरान हुई क्रॉस-कंट्री रेस में वह छठे स्थान पर आये थे, इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था। इस दौरान सिकंदराबाद के ईएमई सेंटर में ही उन्हें धावक के तौर पर अपने टैलेंट के बारे में पता चला और वहीं से उनके कॅरियर की शुरुआत हुई। मिलखा पर एथलीट बनने का जुनून इस कदर हावी हो गया था कि वह अभ्यास के लिए चलती ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे। इस दौरान कई बार उनका खून भी बह जाता था और सांस भी नहीं ली जाती थी, लेकिन फिर भी वह दिन-रात लगातार अभ्यास करते रहते थे।

सन 1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया। एक एथलीट के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका ये पहला अनुभव भले ही अच्छा न रहा हो लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर बेहद फायदेमंद साबित हुआ। उस दौरान विश्व चैंपियन एथलीट चार्ल्स जेनकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उनके लिए भविष्य में बहुत बड़ी प्रेरणा का काम किया।<ref name="pp">

भारत को स्वर्ण दिलाने वाले प्रथम भारतीय

मिलखा सिंह ने साल 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल 1958 में ही इंग्लैंड के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिलखा ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल अपने नाम किया.।उस समय आजाद भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वे पहले भारतीय थे।

सन 1958 के एशियाई खेलों में मिली सफलता के बाद मिलखा सिंह को सेना में जूनियर कमीशन का पद मिला। 1960 में रोम में आयोजित ओलंपिक खेलों में उन्होंने 400 मीटर की रेस में शानदार प्रदर्शन किया लेकिन अंतिम पलों में वे जर्मनी के एथलीट कार्ल कूफमैन से सेकेंड के सौवें हिस्से से पिछड़ गए और कांस्य पदक जीतने से मामूली अंतर से चूक गए। इस दौरान उन्होंने इस रेस में पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान भी तोड़ा और 400 मीटर की दौड़ 45.73 सेकेंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया। 400 मीटर की रेस में उनका ये रिकॉर्ड 40 साल बाद जाकर टूटा। 1960 के रोम ओलंपिक और टोक्यो में आयोजित 1964 के ओलंपिक में मिलखा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे। 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में मिलखा सिंह ने 400 मीटर और चार गुना 400 मीटर रिले दौड़ में भी गोल्ड मेडल हासिल किया था।

उपलब्धियाँ

पुरस्कार एवं सम्मान

  • मिलखा सिंह 1959 में 'पद्मश्री' से अलंकृत किये गये।


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