सी. डी. देशमुख

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सी. डी. देशमुख
डॉ. चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख
पूरा नाम डॉ. चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख
जन्म 14 जनवरी, 1896
जन्म भूमि रायगढ़ ज़िला, महाराष्ट्र
मृत्यु 2 अक्टूबर, 1982
अभिभावक द्वारकानाथ देशमुख और भागीरथी बाई
पति/पत्नी दुर्गाबाई देशमुख
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सी.डी. देशमुख ब्रिटिश शासन के अधीन आई.सी.एस. अधिकारी और भारतीय रिज़र्व बैंक के तीसरे गवर्नर थे

चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख (अंग्रेज़ी: Chintamani Dwarakanath Deshmukh, जन्म: 14 जनवरी, 1896 – मृत्यु: 2 अक्टूबर, 1982) ब्रिटिश शासन के अधीन आई.सी.एस. अधिकारी और भारतीय रिज़र्व बैंक के तीसरे गवर्नर थे।

जीवन परिचय

चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में 14 जनवरी, 1896 ई. को हुआ। इनके पिता द्वारकानाथ देशमुख एक सम्मानित वकील थे तथा उनकी माँ भागीरथी बाई एक धार्मिक महिला थी। देशमुख ने 1912 में बंबई विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। साथ ही उन्होंने संस्कृत की जगन्नाथ शंकर सेट छात्रवृत्ति भी हासिल की। 1917 में उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से नेचुरल साइंस से, वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र तथा भूगर्भ शास्त्र लेकर, ग्रेजुएशन पास किया। साथ ही उन्होंने वनस्पति शास्त्र में फ्रैंक स्मार्ट प्राइस भी जीता। 1918 में लन्दन में आयोजित इण्डियन सिविल सर्विस की परीक्षा में वह बैठे और उन्हें सफल उम्मीदवारों में पहला स्थान मिला। लन्दन में छट्टियाँ बिताने के दौरान देशमुख ने दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में बतौर एक सेक्रेटरी काम किया। उस कांफ्रेंस में महात्मा गाँधी भी भाग ले रहे थे। उस कांफ्रेंस में सेन्ट्रल प्राविंस तथा बेटर सरकार की ओर से एक ज्ञापन रखा गया जिसे देशमुख ने तैयार किया था। यह ज्ञापन सर आटो नीमेय्यर द्वारा की जाने वाली जाँच से सम्बन्धित था, जिसके आधार पर भारत सरकार के एक्ट 1935 के अन्तर्गत केन्द्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय सम्बन्धों की नीति तय की जानी थी। यह ज्ञापन इतना सूझ-बूझ भरा तथा योग्यतापूर्ण था कि उसकी सबने प्रशंसा की और देशमुख की राजनीतिक हलके में तथा वित्तीय प्रशासन क्षेत्र में पहचान बन गई।

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर

1939 में देशमुख रिज़र्व बैंक के लायजन ऑफिसर बने। इनका काम बैंक, व्यवस्था तथा सरकार के बीच तालमेल बनाए रखना था। तीन महीने के भीतर ही अपनी कार्य कुशलता के कारण देशमुख बैंक के सेन्ट्रल बोर्ड के सेक्रेटरी बना दिए गए। दो वर्ष बाद वह डिप्टी गवर्नर बने तथा 11 अगस्त 1943 को उन्हें गवर्नर बना दिया गया। यह पद उन्होंने 30 जून 1949 तक सम्भाला। अपने कार्यकाल में देशमुख एक बेहद प्रभावी गवर्नर सिद्ध हुए। उन्होंने रिज़र्व बैंक को निजी शेषन धारकों के बैंक से एक राष्ट्रीय बैंक के रूप में बदले जाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। देशमुख ने बैंकों की गतिविधियों को संयोजित करने के लिए ऐसा कानूनी ढाँचा तैयार करके दिया जो बिना किसी, बाधा के लम्बे समय तक चल सके। इसी के आधार पर ऋण नीतियाँ स्थापित की गईं और इण्डस्ट्रियल फाइनेंस कारपोरेशन ऑफ इण्डिया का गठन हो सका। ऐसा संवैधानिक ढाँचा बैंकिंग उद्योग के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ। चिन्तामन देशमुख ने ग्रामीण वित्तीय ऋण भी तय किया जो रिज़र्व बैंक के कृषि ऋण कार्यक्रमों से तालमेल बैठाने में सफल हुआ और गाँव के ऋण पाने वालों, तथा रिज़र्व बैंक की व्यवस्था में किसी हिचकिचाहट की भी गुंजाइश नहीं रह गई। देशमुख की इस सूझबूझ भरी युक्ति की बड़ी प्रशंसा की गई और कहा गया कि इससे पूरी व्यवस्था में आमूल परिवर्तन आया है, जो लाभकारी है। जुलाई 1944 में चिन्तामन देशमुख ब्रेटन वुड्स कांफ्रेस में भाग ले रहे थे। वहाँ इनकी सक्रिय भूमिका से संयुक्त राष्ट्रसंघ की इकाई इन्टरनैशनल मॉनीटरी फंड (IMF) की स्थापना सम्भव हुई। इसी तरह इन्टरनैशनल बैंक फॉर रिकांस्ट्रक्शन एण्ड डवलेपमेंट की स्थापना भी हुई। इन दोनों संस्थानों के गवर्नर्स बोर्ड के सदस्य के रूप में देशमुख ने दस वर्षों तक काम किया और पेरिस में 1950 में जब इन दोनों संस्थानों की संयुक्त वार्षिक बैठक हुई उसमें देशमुख ने अध्यक्ष का दायित्व सम्भाला।

स्वतंत्र भारत के तीसरे वित्तमंत्री

सितम्बर 1949 में भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने देशमुख को भारत का स्पेशल फाइनेन्शियल अम्बेस्डर बनाकर अमेरिका तथा यूरोप में भेज दिया। वहाँ देशमुख ने अमरीका से गेहूँ की उधार योजना पर निर्णायक बातचीत की। उसी साल वर्ष के अंत में नेहरू जी ने योजना आयोग की सदस्यता का प्रस्ताव दिया। 1 अप्रैल 1920 में जब आयोग शुरू हुआ देशमुख उसके सदस्य बने। जल्दी ही देशमुख ने संसद में वित्तमंत्री का पद सम्भाला जहाँ वह जुलाई 1956 तक बने रहे। उनके इस मंत्री पद सम्भाल ने के दौरान देश की वित्तीय योजनाओं और उनके दृष्टिकोण में बड़े व्यापक परिवर्तन आए जिनका प्रभाव विकास की गति पर स्पष्ट देखा गया। देशमुख ने देश की पहली और दूसरी पंचवर्षीय योजनाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। चिन्तामन देशमुख ने वित्तीय संरचना में सामाजिक नियन्त्रण की जगह बनाई जिससे नया कम्पनी एक्ट बनाया जा सका। इंपीरियल बैंक का राष्ट्रीयकरण हुआ और जीवन बीमा कम्पनियों की संकल्पना की जा सकी। वर्ष 1956 से 1960 के बीच जब चिन्तामन देशमुख विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन थे, तब शिक्षा तथा समाज सेवाओं के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार सामने आए जिनसे विश्वविद्यालयों के कार्य स्तर में देशव्यापी विकास देखा जा सका।[1]

सम्मान और पुरस्कार

निधन

डॉ. चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख का निधन 2 अक्टूबर, 1982 को हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सी. डी. देशमुख का जीवन परिचय (हिन्दी) Kaise Aur Kya कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 26 अगस्त, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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