खंडोबा मंदिर, महाराष्ट्र
खंडोबा मंदिर, महाराष्ट्र
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राज्य | महाराष्ट्र |
ज़िला | पुणे |
भौगोलिक स्थिति | एक छोटी-सी पहाड़ी पर 718 मीटर (करीब 2,356 फीट) की ऊंचाई पर। |
मार्ग स्थिति | पुणे से लगभग 48 कि.मी. और सोलापुर से लगभग 60 कि.मी. की दूरी पर। |
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक स्थल |
जेजुरी रेलवे स्टेशन | |
देवता | भगवान खंडोबा |
अन्य जानकारी | खंडोबा का महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई लोक गीतों और साहित्यिक कृतियों में उल्लेख है। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार, राक्षसों मल्ला और मणि को ब्रह्मा से वरदान द्वारा संरक्षण प्राप्त था। |
खंडोबा मंदिर (अंग्रेज़ी: Khandoba Temole) भारत के प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक स्थलों में से एक है। देश में ऐसे कई मंदिर हैं, जो अपने आप में कोई न कोई कहानी या रहस्य समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर महाराष्ट्र के पुणे में जेजुरी नामक नगर में है। इसे खंडोबा मंदिर के नाम से जाना जाता है। मराठी में इसे 'खंडोबाची जेजुरी' (खंडोबा की जेजुरी) कहकर पुकारा जाता है। मंदिर एक छोटी-सी पहाड़ी पर 718 मीटर (करीब 2,356 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए दो सौ के करीब सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इस मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, जो हैरान कर देंगी।[1]
देवता
इस मंदिर में विराजमान देवता को भगवान खंडोबा कहा जाता है। उन्हें मार्तण्ड भैरव और मल्हारी जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है, जो शिव का ही दूसरा रूप है। भगवान खंडोबा की मूर्ति घोड़े की सवारी करते एक योद्धा के रूप में है। उनके हाथ में राक्षसों को मारने के लिए कि एक बड़ी सी तलवार (खड्ग) है। भगवान खंडोबा को एक उग्र देवता के रूप में माना जाता है, इसलिए इनकी पूजा के नियम बेहद ही कड़े हैं। किसी साधारण पूजा की तरह उन्हें हल्दी और फूल तो चढ़ाया ही जाता है, लेकिन कभी-कभी बकरी का मांस भी मंदिर के बाहर भगवान को चढ़ाया जाता है।
स्थापत्य
खंडोबा मंदिर मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है। पहला भाग मंडप कहलाता है जबकि दूसरे भाग में गर्भगृह है, जिसमें भगवान खंडोबा की मूर्ति स्थापित है। हेमाड़पंथी शैली में बने इस मंदिर में पीतल से बना एक बड़ा सा कछुआ भी है। इसके अलावा मंदिर में एतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कई हथियार भी रखे गए हैं। दशहरे के दिन यहां भारी भरकम तलवार को दांत के सहारे अधिक समय तक उठाए रखने की एक प्रतियोगिता भी होती है, जो बहुत प्रसिद्ध है।[1]
मंदिर अनिवार्य रूप से दो भागों में विभाजित है – मंडप और गर्भगृह और भगवान खंडोबा की मूर्ति को गर्भगृह में रखा गया है। भगवान की मूर्ति ऐसी दिखती है जैसे वह घोड़े पर सवार एक योद्धा हो और उसके पास एक बड़ी तलवार (खड्ग) भी हो, जिसके बारे में माना जाता है कि वह दुनिया में राक्षसों को मारती है।
धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि धरती पर मल्ल और मणि नाम के दो राक्षस भाईयों का अत्याचार काफी बढ़ गया था, जिसे खत्म करने के लिए भगवान शिव ने मार्तंड भैरव का अवतार लिया था। कहते हैं कि भगवान ने मल्ला का सिर काट कर मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया था जबकि मणि ने मानव जाति की भलाई का वरदान भगवान से मांगा था, इसलिए उसे उन्होंने छोड़ दिया। इस पौराणिक कथा का उल्लेख ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है।
खंडोबा का महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई लोक गीतों और साहित्यिक कृतियों में उल्लेख है। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार, राक्षसों मल्ला और मणि को ब्रह्मा से वरदान द्वारा संरक्षण प्राप्त था। इस वरदान के साथ वे अपने आपको अजेय मानने लगे और पृथ्वी पर संतों और लोगों को आतंकित करने लगे। यह सब देख गुस्से में शिव ने मार्तण्ड भैरव के रूप में जिन्हें खंडोबा भी कहते हैं, नंदी की सवारी करते हुए पृथ्वी को बचाने के लिए दोनों राक्षसों को मारने का जिम्मा उठाया। कहा जाता है कि इस उत्तेजना में मार्तण्ड भैरव चमकते हुए सुनहरे सूरज की तरह लग रहे थे, पूरे शरीर पर हल्दी लगा हुआ था जिसकी वजह से उन्हें हरिद्रा भी कहा जाता है। जब भगवान मार्तण्ड ने दोनों राक्षसों को मर दिया, तब मरने के दौरान मणि ने पश्चाताप के रूप में उन्हें अपना सफ़ेद घोडा प्रदान किया और उनसे वरदान माँगा। वरदान यह था कि वह खंडोबा के हर मंदिर में स्थापित होगा जिससे कि मानव जाति की भलाई हो। खंडोबा ने ख़ुशी ख़ुशी यह वरदान दे दिया। इसके उलट मल्ला ने वरदान माँगा कि मानव जाति का विनाश हो। जिससे भगवान ने गुस्से में आकर उसका सर धड़ से अलग कर दिया और मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया ताकि मंदिर में प्रवेश करने वाले भक्तों द्वारा वह कुचला जा सके।[2]
त्योहारों के दौरान, ‘येलकोट येलकोट’ और ‘जय मल्हार’ के मंत्रों की गूँज हवा में छा जाती है क्योंकि भक्त हवा में हल्दी फेंककर मनाते हैं। इस प्रथा का एक सिद्धांत यह है कि हल्दी सोने का प्रतीक है और इस प्रकार, हल्दी को हवा में फेंक कर, भक्त भगवान से उन्हें भाग्य और धन का आशीर्वाद देने के लिए कह रहे हैं। हालांकि, दूसरों का मानना है कि यह भगवान खंडोबा और उनकी पत्नी मालशा के मिलन का जश्न मनाने के लिए किया जाता है। पूरा अनुभव रोमांचित करने वाला है और देखने लायक है। राज्य भर के नवविवाहित जोड़े इस मंदिर में इस अनुष्ठान को करने और दिव्य आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। यह जानकर स्तब्ध हो जाएंगे कि दशहरा पर एक प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसमें प्रतिभागियों को अपने दांतों में तलवार पकड़नी होती है और जो सबसे अधिक समय तक सबसे भारी तलवार रखता है वह जीत जाता है।[1]
कैसे पहुँचें
जेजुरी में स्थित खंडोबा मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थापित है, जहाँ पहुँचने के लिए करीब दो सौ से अधिक सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। जब इस पहाड़ी पर पहुँच जाते हैं तो यहाँ से सम्पूर्ण जेजुरी का मनमोहक दृश्य दिखाई पड़ता है। जेजुरी मुख्यतः अपनी दीपमालाओं के लिए बहुत प्रसिद्ध है जिनका चढ़ाई करते समय मंदिर के प्रांगण से अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। पुणे से जेजुरी लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और सोलापुर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर।
सड़क यात्रा द्वारा- पुणे से और महाराष्ट्र के कई अन्य प्रमुख शहरों से जेजुरी तक के लिए कई बस सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
रेल यात्रा द्वारा- जेजुरी रेलवे स्टेशन यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है, जहाँ तक के लिए पुणे और महाराष्ट्र के मुख्य शहरों से कई लोकल ट्रेनें चलती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2
खंडोबा मंदिर का रहस्य, प्रचलित हैं कई हैरान करने वाली कहानियां (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 1 जनवरी, 2021। सन्दर्भ त्रुटि:
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अमान्य टैग है; "pp" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है - ↑ जेजुरी के सुनहरे मंदिर खंडोबा की सुनहरी यात्रा! (हिंदी) hindi.nativeplanet.com। अभिगमन तिथि: 02 जनवरी, 2021।
बाहरी कड़ियाँ
- यहां शिव ने लिया था भैरव का रूप, 42 किलो की तलवार से किया था राक्षस का वध
- जानें खंडोबा मंदिर के अनोखे किस्से?