चमार उत्तर भारत में बहुतायत में पाई जाने वाली एक जाति, जिसका वंशानुगत व्यवसाय चमड़ा साफ़ करना है। इस नाम की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द 'चर्मकार' या 'चमड़े का काम करने वाला' से हुई है।[1]
- सुसंगठित पंचायतों से 150 से अधिक उपजातियों की पहचान होती है, चूंकि उनका कार्य उन्हें मृत पशुओं का व्यापार करने पर मजबूर करता है।
- चमार एक अत्यधिक अपवित्र जाति के रूप में पहचान के कलंक से पीड़ित हुए हैं। सामान्यत: इनका निवास हिन्दुओं के गांवों के बाहर होता है।
- प्रत्येक बस्ती का एक मुखिया (प्रधान) होता है और बड़े शहरों में प्रधान की अध्यक्षता में ऐसे एक से अधिक समुदाय होते हैं।
- जाति की विधवा स्त्री को पति के छोटे भाई से या उसी उपजाति के किसी विधुर से पुनर्विवाह की अनुमति है।
- इस जाति का एक हिस्सा संत शिवनारायण की शिक्षा का पालन करता है और उनका उद्देश्य अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने के लिए अपने रीति-रिवाजों का शुद्धिकरण करना है।
- आज भी कई लोग चर्मकारी का परंपरागत व्यवसाय करते हैं और बहुत से लोग खेतिहर मज़दूर हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 149 |