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कर्री [[पाकिस्तान]] के झेलम से प्राय: दस मील उत्तर पूर्वं वही रणस्थल है जहाँ [[अलक्ष्येन्द्र]] ([[सिकंदर]]) और [[पुरु]] या पोरस की सेनाओं के बीच 326 ई. पू. में [[इतिहास]] प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। ग्रीक लेखकों ने युद्ध को झेलम का युद्ध कहा है और घटना-स्थली का नाम निकाइया लिखा है। यह मैदान लगभग पांच मील चौड़ा था। पुरु के पास तीस सहस्त्र पैदल सेना के अतिरिक्त दो सौ [[हाथी]] भी थे जिनको उसने हरावल में खड़ा किया था। सेना के पार्श्वो की रक्षा के लिए तीन सौ रथ थे। प्रत्येक रथ में चार घोड़े और छ: रथारोही थे। इनके पीछे चार सहस्त्र अश्वारोही सैनिक थे। पै
कर्री [[पाकिस्तान]] के झेलम से प्राय: दस मील उत्तर पूर्वं यह वही रणस्थल है जहाँ अलक्षेद्र ([[सिकंदर]]) और पुरु या पोरस की सेनाओं के बीच 326 ई. पू. में [[इतिहास]] प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। ग्रीक लेखकों ने युद्ध को झेलम का युद्ध कहा है और घटना-स्थली का नाम निकाइया लिखा है। यह मैदान लगभग पांच मील चौड़ा था। पुरु के पास तीस सहस्त्र पैदल सेना के अतिरिक्त दो सौ [[हाथी]] भी थे जिनको उसने हरावल में खड़ा किया था। सेना के पार्श्वो की रक्षा के लिए तीन सौ रथ थे। प्रत्येक रथ में चार घोड़े और छ: रथारोही थे। इनके पीछे चार सहस्त्र अश्वारोही सैनिक थे। पैदल सेना चौड़ी तलवारों, ढालों, भालों और [[धनुष अस्त्र|धनुष]] [[बाण अस्त्र|बाणों]] से सुसज्जित थी। अलक्षेंद्र ने पुरु की सेना के सम्मुखीन भाग को अजेय समझ कर उसके वामपार्श्व पर आक्रमण किया। इसमें उसने अपनी अश्वारोही सेना का प्रयोग किया था। सायंकाल तक युद्ध समाप्त हो गया। अपनी सेना के पैर उखड़ जाने पर भी पुरु अंत तक अविजित तथा अडिग बना रहा और उसके वीरता और दर्पपूर्ण व्यवहार ने कुटिल अलक्षेंद्र को भी मोह लिया और उसने भारतीय वीर को उसका देश लौटा कर अपना मित्र बना लिया।  
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06:33, 6 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

कर्री पाकिस्तान के झेलम से प्राय: दस मील उत्तर पूर्वं वही रणस्थल है जहाँ अलक्ष्येन्द्र (सिकंदर) और पुरु या पोरस की सेनाओं के बीच 326 ई. पू. में इतिहास प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। ग्रीक लेखकों ने युद्ध को झेलम का युद्ध कहा है और घटना-स्थली का नाम निकाइया लिखा है। यह मैदान लगभग पांच मील चौड़ा था। पुरु के पास तीस सहस्त्र पैदल सेना के अतिरिक्त दो सौ हाथी भी थे जिनको उसने हरावल में खड़ा किया था। सेना के पार्श्वो की रक्षा के लिए तीन सौ रथ थे। प्रत्येक रथ में चार घोड़े और छ: रथारोही थे। इनके पीछे चार सहस्त्र अश्वारोही सैनिक थे। पै

दल सेना चौड़ी तलवारों, ढालों, भालों और धनुष बाणों से सुसज्जित थी। अलक्षेंद्र ने पुरु की सेना के सम्मुखीन भाग को अजेय समझ कर उसके वामपार्श्व पर आक्रमण किया। इसमें उसने अपनी अश्वारोही सेना का प्रयोग किया था। सायंकाल तक युद्ध समाप्त हो गया। अपनी सेना के पैर उखड़ जाने पर भी पुरु अंत तक अविजित तथा अडिग बना रहा और उसके वीरता और दर्पपूर्ण व्यवहार ने कुटिल अलक्षेंद्र को भी मोह लिया और उसने भारतीय वीर को उसका देश लौटा कर अपना मित्र बना लिया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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