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धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें
 
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छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग में हिरणें,
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छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग़ में हिरणें,
 
दोनों हाथ बुढ़ापे के थर-थर काँपे सब ओर
 
दोनों हाथ बुढ़ापे के थर-थर काँपे सब ओर
 
किन्तु आँसुओं का होता है कितना पागल ज़ोर-
 
किन्तु आँसुओं का होता है कितना पागल ज़ोर-

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बसंत मनमाना -माखन लाल चतुर्वेदी
माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, गरीब इरादे
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

चादर-सी ओढ़ कर ये छायाएँ
तुम कहाँ चले यात्री, पथ तो है बाएँ।

धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें
छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग़ में हिरणें,
दोनों हाथ बुढ़ापे के थर-थर काँपे सब ओर
किन्तु आँसुओं का होता है कितना पागल ज़ोर-
बढ़ आते हैं, चढ़ आते हैं, गड़े हुए हों जैसे
उनसे बातें कर पाता हूँ कि मैं कुछ जैसे-तैसे।
पर्वत की घाटी के पीछे लुका-छिपी का खेल
खेल रही है वायु शीश पर सारी दनिया झेल।

छोटे-छोटे खरगोशों से उठा-उठा सिर बादल
किसको पल-पल झांक रहे हैं आसमान के पागल?
ये कि पवन पर, पवन कि इन पर, फेंक नज़र की डोरी
खींच रहे हैं किसका मन ये दोनों चोरी-चोरी?
फैल गया है पर्वत-शिखरों तक बसन्त मनमाना,
पत्ती, कली, फूल, डालों में दीख रहा मस्ताना।

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