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'''एकांतवासी योगी''' पण्डित श्रीधर पाठक द्वारा लिखा गया प्रसिद्ध [[खण्ड काव्य]] है। यह एक प्रेम काव्य है।
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'''एकांतवासी योगी''' [[श्रीधर पाठक|पण्डित श्रीधर पाठक]] द्वारा लिखा गया प्रसिद्ध [[खण्ड काव्य]] है। यह एक प्रेम काव्य है।
  
*नई धारा के काव्यों में भारतेन्दु युग में प्राय: [[मुक्तक|मुक्तकों]] और प्रासंगिक काव्यों का ही बोलबाला रहा। काव्य रूप की दृष्टि से खण्ड काव्यों की रचना नहीं हुई। नई धारा में पं. श्रीधर पाठक गोल्डस्मिथ के ‘द हरमिट’ या ‘ऐडविन ऐंड ऐन्जेलिना’ नामक [[नाटक]] को, जिसकी रचना बैलेडकाव्य में हुई है, [[खड़ी बोली]] में पद्यानुवाद की एक मात्र कृति कहा जा सकता है।
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*नई धारा के काव्यों में [[भारतेन्दु युग]] में प्राय: [[मुक्तक|मुक्तकों]] और प्रासंगिक काव्यों का ही बोलबाला रहा। काव्य रूप की दृष्टि से खण्ड काव्यों की रचना नहीं हुई। नई धारा में पं. श्रीधर पाठक गोल्डस्मिथ के ‘द हरमिट’ या ‘ऐडविन ऐंड ऐन्जेलिना’ नामक [[नाटक]] को, जिसकी रचना बैलेडकाव्य में हुई है, [[खड़ी बोली]] में पद्यानुवाद की एक मात्र कृति कहा जा सकता है।
 
*[[संवत]] 1943 में पं. श्रीधर पाठक ने ‘द हरमिट’ का लावनी के ढंग पर खड़ी बोली पद्य में ‘एकांतवासी योगी’ नाम से अनुवाद किया।
 
*[[संवत]] 1943 में पं. श्रीधर पाठक ने ‘द हरमिट’ का लावनी के ढंग पर खड़ी बोली पद्य में ‘एकांतवासी योगी’ नाम से अनुवाद किया।
 
*'एकांतवासी योगी' एक प्रेम काव्य है। एक रमणी द्वारा उपेक्षित पुरुष एकांतवासी योगी बन जाता है। उसके पास एक दिन एक युवक वेशधारी व्यक्ति उस पुरुष की खोज में आता है। योगी उसे दु:खी देखकर उसकी दु:ख गाथा सुनना चाहता है। उसे अचानक ज्ञात होता है कि वह युवक वेशधारी व्यक्ति उसकी प्रियतमाही है। ‘किसी के प्रेम में योगी होना और प्रकृति के निर्धन क्षेत्र में कूटी छाकर रहना एक ऐसी भावना है, जो समान रूप से सब देशों के और सब श्रेणीयों के स्त्री पुरुषों के मर्म का स्पर्श स्वभावत: करती आ रही हो।‘<ref>[https://books.google.co.in/books?id=lH3eQ87aD5sC&pg=PA18&lpg=PA18&dq=%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80+%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80&source=bl&ots=-SjVy2irT9&sig=lCUpouhwX4n4Cyu9Gybw2MGvUaE&hl=hi&sa=X&ved=0ahUKEwiC9bKM5o_KAhWHQI4KHaQrDJIQ6AEIKTAE#v=onepage&q=%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80&f=false आधुनिक काल के खंडकाव्य]</ref>
 
*'एकांतवासी योगी' एक प्रेम काव्य है। एक रमणी द्वारा उपेक्षित पुरुष एकांतवासी योगी बन जाता है। उसके पास एक दिन एक युवक वेशधारी व्यक्ति उस पुरुष की खोज में आता है। योगी उसे दु:खी देखकर उसकी दु:ख गाथा सुनना चाहता है। उसे अचानक ज्ञात होता है कि वह युवक वेशधारी व्यक्ति उसकी प्रियतमाही है। ‘किसी के प्रेम में योगी होना और प्रकृति के निर्धन क्षेत्र में कूटी छाकर रहना एक ऐसी भावना है, जो समान रूप से सब देशों के और सब श्रेणीयों के स्त्री पुरुषों के मर्म का स्पर्श स्वभावत: करती आ रही हो।‘<ref>[https://books.google.co.in/books?id=lH3eQ87aD5sC&pg=PA18&lpg=PA18&dq=%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80+%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80&source=bl&ots=-SjVy2irT9&sig=lCUpouhwX4n4Cyu9Gybw2MGvUaE&hl=hi&sa=X&ved=0ahUKEwiC9bKM5o_KAhWHQI4KHaQrDJIQ6AEIKTAE#v=onepage&q=%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80&f=false आधुनिक काल के खंडकाव्य]</ref>

12:47, 9 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

एकांतवासी योगी पण्डित श्रीधर पाठक द्वारा लिखा गया प्रसिद्ध खण्ड काव्य है। यह एक प्रेम काव्य है।

  • नई धारा के काव्यों में भारतेन्दु युग में प्राय: मुक्तकों और प्रासंगिक काव्यों का ही बोलबाला रहा। काव्य रूप की दृष्टि से खण्ड काव्यों की रचना नहीं हुई। नई धारा में पं. श्रीधर पाठक गोल्डस्मिथ के ‘द हरमिट’ या ‘ऐडविन ऐंड ऐन्जेलिना’ नामक नाटक को, जिसकी रचना बैलेडकाव्य में हुई है, खड़ी बोली में पद्यानुवाद की एक मात्र कृति कहा जा सकता है।
  • संवत 1943 में पं. श्रीधर पाठक ने ‘द हरमिट’ का लावनी के ढंग पर खड़ी बोली पद्य में ‘एकांतवासी योगी’ नाम से अनुवाद किया।
  • 'एकांतवासी योगी' एक प्रेम काव्य है। एक रमणी द्वारा उपेक्षित पुरुष एकांतवासी योगी बन जाता है। उसके पास एक दिन एक युवक वेशधारी व्यक्ति उस पुरुष की खोज में आता है। योगी उसे दु:खी देखकर उसकी दु:ख गाथा सुनना चाहता है। उसे अचानक ज्ञात होता है कि वह युवक वेशधारी व्यक्ति उसकी प्रियतमाही है। ‘किसी के प्रेम में योगी होना और प्रकृति के निर्धन क्षेत्र में कूटी छाकर रहना एक ऐसी भावना है, जो समान रूप से सब देशों के और सब श्रेणीयों के स्त्री पुरुषों के मर्म का स्पर्श स्वभावत: करती आ रही हो।‘[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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