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*रामपाल की शासन अवधि में ही 'कैवतों का विद्रोह' हुआ था, जिसका वर्णन 'रामपालचरित' में हुआ है। | *रामपाल की शासन अवधि में ही 'कैवतों का विद्रोह' हुआ था, जिसका वर्णन 'रामपालचरित' में हुआ है। | ||
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*विद्वान संध्याकर नंदी ने 'रामपालचरित' नामक पुस्तक में पाल सम्राट रामपाल की प्रशंसा की है। पाल नरेश विद्वानों के संरक्षक और आश्रयदाता थे। | *विद्वान संध्याकर नंदी ने 'रामपालचरित' नामक पुस्तक में पाल सम्राट रामपाल की प्रशंसा की है। पाल नरेश विद्वानों के संरक्षक और आश्रयदाता थे। | ||
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12:25, 8 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
संध्याकर नंदी पाल राजाओं द्वारा आश्रय प्राप्त एक विद्वान थे। उसने 'रामपालचरित' नामक एक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की थी। संध्याकर नंदी कृत 'रामपालचरित' पुस्तक में रामपाल को पाल वंश का अंतिम शासक बताया गया है।
परिचय
- संध्याकर नंदी द्वारा रचित ऐतिहासिक संस्कृत काव्य 'रामपालचरित' में राजा रामपाल (लगभग 1075 - 1120 ई.) की उपलब्धियों का वर्णन है।
- रामपाल की शासन अवधि में ही 'कैवतों का विद्रोह' हुआ था, जिसका वर्णन 'रामपालचरित' में हुआ है।
- पाल नरेशों ने साहित्य की उन्नति में काफ़ी रुचि ली थी। देशी, संस्कृत तथा बौद्ध साहित्य इस काल में बहुत विकसित हुआ।
- विद्वान संध्याकर नंदी ने 'रामपालचरित' नामक पुस्तक में पाल सम्राट रामपाल की प्रशंसा की है। पाल नरेश विद्वानों के संरक्षक और आश्रयदाता थे।
- इस काल में विद्वानों ने संस्कृत के कई ग्रंथों का तिब्बतीय भाषा में अनुवाद किया। तिब्बत से भी कई विद्वान भारत आये थे और यहाँ आकर शिक्षा का आदान-प्रदान किया।[1]
- संध्याकर नंदी ने अपने ग्रंथ 'रामपालचरित' में पाल शासकों को 'समुद्रदेव की संतान' कहा है। इन विचारों से यह बात स्पष्ट होती है कि पाल वंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में इतिहासकार एक मत नहीं हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सांस्कृतिक उपलब्धि (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 अक्टूबर, 2013।